काफिर के बच्चों को उर्दू की तालीम देना कैसा है
सवाल मुफ्तियान ए किराम से गुजारिश है कि मंदरजा ज़ेल की अक़्द कुशाई फरमाएं नवाज़िश होगी किसी काफिर के बच्चे को उर्दू ज़बान सिखाना अज़ रूए शरअ कैसा है ? क्या उर्दू ज़बान को दीनी तालीम कहना दुरुस्त होगा
साईलसैयद शफीक़ आलम साहिल साहब क़िबला
जवाब फतवा लिखने के लिए इबारत नक़्ल करना काफी नहीं है बल्कि उसे समझाना भी ज़रूरी है कि फतवा किस वक़्त दिया गया है उस वक़्त हालात क्या थे,
दुर्रे मुख्तार में है
ومن لم یعرف اھل زمانہ فھو جاہل
और जो अपने ज़माना वालों को नहीं जानता वह जाहिल है,
लिहाज़ा मुजीब हज़रात को चाहिए कि ज़माना को देखते हुए फतवा लिखें क्योंकि हालात के पेशे नज़र हुकुम बदल जाता है
जैसा कि बहारे शरीयत हिस्सा दोम निजासत के बयान में
बैल के गोबर और पेशाब को निजासत ए गलिज़ा लिखा है की अगर एक दिरहम से ज़ाइद कपड़े या बदन में लग जाए तो नमाज़ ना होगीलेकिन जब सरकार ए आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से सवाल हुआ की बैलगाड़ी हांकने वाला जिसके पास एक कुर्ता और एक ही पाजामा है यही पेशा है गाड़ी के किराए से शीकम सैरी करता है बैलों को हांकने के वक़्त बैलों के पेशाब व गोबर की झींट दुम बैल के हिलाने से सब जगह लगी बड़े-बड़े दाग कपड़ों पर आए धोने की फुर्सत नहीं मिली उस हालत में नमाज़ पंजगाना अदा करने की शरअ शरीफ में क्या तालीम है ? तो आपने जवाब में तहरीर फरमाया कि बैलों का गोबर पेशाब निजासत ए खफीफा है जब तक चहारूम कपड़ा ना भर जाए या मुतफर्रिक़ इतनी पड़ी हो की जमा करने से चहारूम कपड़े की मिक़दार हो जाए कपड़े को निजासत का हुक्म ना देंगे और उससे नमाज़ जायज़ होगी और बिल फर्ज़ अगर उससे ज़ाइद भी धब्बे हों और धोने से सच्ची माज़ूरी यानी हर्ज शदीद हो तो नमाज़ जायज़ है
فقدطھرہ محمد اخذ عــــہ اللبلوی کمافی الدر المختار
इमाम मोहम्मद रहमतुल्लाह ने उमूम बलवा के पेशे नज़र उसे पाक क़रार दिया है जैसा कि दुर्रे मुख्तार में है
(फतावा ए रिज़वीया जिल्द ४ सफा ५७१५७२दावते इस्लामी)
हालांकि इमामे आज़म के क़ौल के मुताबिक़ बैल का पेशाब निजासत ए ग़लीज़ा है मगर यहां हालात के पेशे नज़र किसानों के लिए निजासत ए खफीफा का हुक्म दिया बल्कि फरमाया कि बिल फर्ज़ अगर उससे जाइद भी धब्बे हों और धोने से सच्ची माज़ूरी यानी हर्ज शदीद हो तो नमाज़ जायज़ है,
दुर्रे मुख्तार बाबूल निजास व कशफुल अस्तार (درمختار باب الانجاس و کشف الاستار) में है
हज़रत इमाम मोहम्मद रहमतुल्लाह अलैह जब खलीफा के साथ (मूलक) रै में दाखिल हुए और रास्तों और दुकानों को गोबर से भरे होने की वजह से लोगों को इबतला ए आम में देखा तो अपने क़ौल से रुजू करके फरमाया की इस सूरत ए तअज़ूर में लिद और गोबर पाक है कि बिल्कुल्लीया सफाई करने में तअज़ूरे शरई है
पस मालूम हुआ कि फतवा वक़्त के पेशे नज़र दिया जाए ना कि सिर्फ इबारत नक़्ल कर दी जाएमैं पूछता हूं कि अगर इबारत नक़्ल कर देना काफी है तो पेंट शर्ट पहनने वालों पर क्या हुक्म होगा ? उनकी नमाज़ होगी या नहीं ? क्योंकि फतावा ए रिज़वीया में नाजायज़ लिखा हैयूं ही बाग़ात को फल आने से पहले बेचने और खरीदने वालों पर क्या हुक्म होगा ? तालाब ठीके पर देने और लेने वालों पर क्या हुक्म होगा ? क्या वह सब गुनाह ए कबीरा के मूरतकीब होंगे ? क्योंकि कुतूबे फिक़्ह में तालाब ठीके पर देना और फल आने से पहले बाग़ को बेचना नाजायज़ लिखा हैजो लड़कियां लिख रही हैं या जो लड़कियों से लिखवा रहे हैं उन पर क्या हुक्म होगा ? औरतों का छत पर जाना कैसा है ? और जो जाती हैं उन पर क्या हुक्म होगा ? क्योंकि हदीस शरीफ में औरतों के लिए किताबत और बाला खाना (छत) पर चढ़ने से मना किया है तो अब उसके खिलाफ करने वालों पर क्या फतवा लगेगा ? मैं कहता हूं किसी पर कोई फतवा ना होगा कि अब हालात के पेशे नज़र जवाज़ का फतवा दिया गया हैयानी वक़्त बदलने पर हुक्म बदल जाता है,
इसीलिए कहा गया
ومن لم یعرف اھل زمانہ فھو جاہل
और जो अपने ज़माना वालों को नहीं जानता तो वह जाहिल हैमज़ीद मालूमात के लिए मजलिस ए शरई के फैसले का मुतालआ करें,
मौलाना मौसूफ का इबारत नक़्ल करके जवाज़ का फतवा देना दौरे हाजिर में बहुत बड़ी हिमाक़त है कि मुसलमानों के बजाय कुफ्फार को उर्दू की तालीम दी जाए,
देखें कुर्बानी करने के बाद साहिबे कुर्बानीगोश्त का मालिक हो जाता हैगोश्त उसकी मलकीयत होती है जो चाहे करे मगर फुक़्हा ने काफिर को देने से मना फ़रमाया है कि मुसलमान को छोड़कर काफिर को देना यह हिमाक़त है हालांकि काफीर को गोश्त देने से कुर्बानी में कोई फर्क़ नहीं पड़ता और नाही मालिक ए निसाब पर सदक़ा वाजिब होता है मगर फुक़्हा ए किराम ने सख्ती से मना फ़रमाया हैयूं हीं कुफ्फार को उर्दू की तालीम देने की इजाज़त नहीं,
दौरे हाजिर में कुफ्फार को उर्दू तालीम देना इस्लाम को खतरे में डालना है और जिन बुजुर्गों ने तालीम दी है या देने का फतवा दिए वह ना इस दौर के कुफ्फार को दिए हैं ना वह हमारी तरह थे कि कि अल्लाह तआला ने उनकी ज़बान में तासीर दी थी कि वह कलामुल्लाह पढ़ाते थे तो उस कलाम की बरकत से अल्लाह तआला उन्हें हिदायत दे दिया करता था और बुजुर्गाने दीन का यही मक़सद होता थामगर यह दौर उसके बरअक्स है कि कुफ्फार को तालीम देने के बाद उनसे भलाई की उम्मीद तो दूर है उल्टा दीन को नुक़सान पहुंच रहा हैकई सालों से कुछ लालच क़िस्म के मौलवी कुफ्फार के बच्चों को उर्दू बोर्ड से इम्तहान दिलवा रहे हैं कई एक कुफ्फार के बच्चे फज़ीलत कि सनदें हासिल किए मैं पूछता हूं कितनों ने इस्लाम कुबूल ? कितने ऐसे कुफ्फार के बच्चे हैं जिनसे इस्लाम को फायदा पहुंचा ? एक भी नहीं सिवाए नुक़सान के कोई पढ़ने के बाद माअज़ अल्लाह माँ आईशा सदिक़ा रज़ि अल्लाहू अन्हा की शान में गुस्ताखी कर रहा हैतो कोई हुजूर ﷺ को माअज़ अल्लाह अपनी तरह अय्याशी करने वाला बता रहा हैतो कोई कुरान का तर्जुमा पढ़कर मुसलमानों के खिलाफ कुफ्फार को भड़का रहा है कि देखो मुसलमानों के कुरान में है कि काफिरों से लड़ो जहां पाओं क़त्ल करो वगैरा वगैरा,
अब ऐसे माहौल में जवाज़ का फतवा देना इस्लाम को नुक़सान पहुंचाना है कि मदरसे सरकारी होते जा रहे हैं उनमें दाखिला उसी का होता है जो रूपया के साथ अपनी सोरश लगाए और जब कुफ्फार के बच्चे आलिम फाज़िल की सनदें हासिल कर चुके होंगे मुफ्ती मुहक़्क़ीक़ वह होंगे रुपया उनके पास होगा सपोर्ट उनका होगा तो बताओ मदरसों में दाखिला उनका होगा या हमारा और आपका ? मैं कहता हूं हमारा और आपका हरगिज़ नहीं होगा बल्कि उन्हें कुफ्फार के बच्चे मदरसा के रहनुमा मुहक़्क़ीक़ असर रामदेव होगाप्रिंसिपल मुफ्ती चंद्र प्रसाद होगाबोर्ड इम्तहान के बाद कापी के जांचने वाला अदीब शहीर मुफ्ती रामकृष्ण होगाफिर इस्लाम और दीन ए इस्लाम का क्या हाल होगा आप तसव्वुर कर सकते हैं मुसलमानों के साथ क्या सलूक होगा समझ सकते हैं
खुलासा कलाम यह है कि कुफ्फार के बच्चों को उर्दू तालीम देना दौरे हाज़िर में जायज़ नहीं और ना उसके अहल हैं और ना ही उन्हें सिखाने पर दीन इस्लाम को फायदा पहुंचने वाला है,
हदीस शरीफ सुनने है
وَعَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ طَلَبُ الْعِلْمِ فَرِيضَةٌ عَلَى كُلِّ مُسْلِمٍ وَوَاضِعُ الْعِلْمِ عِنْدَ غير أَهله كمقلد الْخَنَازِير الْجَوْهَر واللؤلؤ وَالذَّهَبَ
हज़रत अनस रज़ि अल्लाहू अन्हू से रिवायत है की रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया तलब ए इल्म हर मुसलमान पर फर्ज़ हैकिसी ऐसे शख्स कोजो उसकी अहलियत ना रखता हो पढ़ाने वालाखिनज़िरो के गले में हीरे जवाहरात और सोने के हार डालने की तरह है,
(مشکوۃ کتاب العلم فصل الثانی ص ۳۴)
इस हदीस की शरह करते हुए हज़रत अल्लामा अलहाज अश्शाह मुफ्ती अहमद यार खान नईमी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि यहां इल्म से मुराद दक़ीक़ व बारीक मसाइल और गहरे इल्मी नूकात हैं जिन्हें आवाम ना समझ सकेयानी वह आलिम जो आवाम के सामने गैर ज़रूरी और बारीक पेचीदा मसाइल या क़ाबिल ए शरह आयात व अहादीस पेश करे वह ऐसा ही बेवकूफ है जैसे मोतियों का हार सूअरों को पहनाने वाला की झुलाए ऐसी चीज़ें सुनकर इंकार कर बैठते हैं,
इसीलिए सैयदना अली मुर्तुजा रज़ि अल्लाहू अन्हू फरमाते हैं कि लोगों से उनकी अक़्ल के लाईक़ कलाम करो वरना वह अल्लाह ﷻ और रसूल ﷺ को झुठला देंगे और उसका वबाल तुम पर होगा,
(مراۃ المنا جیح جلد اول ص ۲۰۲؍ضیائ القرآن پبلی کیشنز لا ہور)
यानी उन मुसलमानों को सामने ऐसी बात करना जो उनकी समझ से बाहर हो कि कुछ फायदा ना मिले ऐसा है जैसे खिनज़िर के गले में जवाहरात का हार पहनानाकी खिनज़िर को कितना भी मुज़ैयन कर दिया जाए फिर भी उससे उसके अंदर हुस्न नहीं पैदा हो सकताफिर कुफ्फार तो उससे बदतर हैं कि उन्हें तालीम देने के बाद उनसे दीन का कोई फायदा नहीं सिवाए नुक़सान के और दौरे हाज़िर के कुफ्फार इस के अहल नहीं हैंतो उन काफिरों को उर्दू तालीम देना क्यों कर जायज़ होगा ? क्यों कर वह अहल हो गए ? जिससे एक पैसा भी फायदा की उमीद नहीं अलबत्ता नुक़सान होने का क़ौवी अंदेशा है, अल्लाह तआला मुसलमानों को समझ अता फरमाए और दीन ए इस्लाम की हिफाज़त फरमाए (आमीन बजाए सैयदुल मुरसलीन)
अज़ क़लम
फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)