जमाअत छोड़ने के उज़्र: अह़कामे फिक्हिया

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जमाअत छोड़ने के उज़्र: अह़कामे फिक्हिया 


मसअला :- 1 - मरीज़ जिसे मस्जिद तक जाने में दुश्वारी हो ।

2 - अपाहिज ।

3 - जिसका पाँव कट गया हो ।

4 - जिस पर फालिज गिरा हो ।

5 - इतना बूढ़ा कि मस्जिद तक जाने से आजिज़ है ।

6 - अंधा अगर्चे अंधे के लिये कोई ऐसा हो जो हाथ पकड़ कर मस्जिद तक पहुँचा दे ।

7 - सख्त बारिश ।

8 - और रास्ता में बहुत कीचड़ का होना ।

9 - सख्त सर्दी ।

10 - सख्त तारीकी ( अँधेरा )

11 - सख्त आँधी ।

12 - माल या खाने के तलफ ( बार्बाद ) होने का खौफ हो ।

13 - कर्जख्वाह का खौफ है और यह तंगदस्त हैं ।

14 - ज़ालिम का खौफ ।

15 - पाखाना की हाजते शदीद हो ।

17 - रीह ( गैस ) की हाजते शदीद हो ।

18 - खाना हाज़िर है और नफ्स को उसकी ख्वाहिश हो ।

19 - काफिला चले जाने का अन्देशा हो ।

20 - मरीज़ की तीमारदारी ( देखभाल ) कि जमाअत लिये जाने से उसको तकलीफ होगी और घबरायेगा ।(बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 109)

मसअला :- औरतों को किसी नमाज़ में जमाअत की हाज़िरी जाइज़ नहीं । दिन की नमाज़ हो या रात की , जुमा हो या ईदैन ख्वाह वह जवान या बुढ़िया वाज़ की मजलिसों में भी जाना नाजाइज़ है ।

मसअला :- अकेला मुकतदी मर्द , अगर्चे ( नाबालिग ) लड़का हो इमाम के बराबर दाहिनी जानिब खड़ा हो बायीं तरफ या पीछे खड़ा होना मकरूह है । दो मुक़तदी हों तो पीछे खड़े हों बराबर खड़ा होना मकरूहे तनज़ीही है । दो से जाइद का इमाम के बराबर खड़ा होना मकरूहे तहरीमी ।

मसअला : - दो मुक़तदी हैं एक मर्द और एक लड़का तो दोनों पीछे खड़े हों अगर अकेली औरत मुक़तदी है तो पीछे खड़ी हो । ज़्यादा औरतें हों जब भी यही हुक्म है । दो मुक़तदी हों एक मर्द एक औरत तो मर्द बराबर खड़ा हो और औरत पीछे । दो मर्द हों एक औरत तो मर्द इमाम के पीछे खड़े हों और औरत मुकतदियों के पीछे । एक शख्स इमाम के बराबर खड़ा हुआ और पीछे सफ है तो मकरूह है 

बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 109

तालिबे दुआ

अब्दुल लतीफ क़ादरी

बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ (बिहार )





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