इल्म इबादत से अफ़ज़ल क्यूं ?
ऐ इख़्लास और ऐ आशिक़ाने इल्मे दीन ! हदीसे पाक में है : अल्लाह जिस के साथ भलाई का इरादा फ़रमाता है उसे दीन की समझ बूझ अता फरमाता है : एक और रिवायत में है उलमा, अम्बिया के वारिस हैं। इस से पता चला कि जिस तरह नुबुव्वत से बढ़ कर कोई मर्तबा नहीं इसी तरह नुबुव्वत की विरासत ( या'नी इल्म ) से बढ़ कर कोई अज़मत नहीं।
तक्लीद का सुबूत हज़रते मुफ्ती अहमद यार खान रहमतुल्लाह तआला अलैह फ़रमाते हैं : इस हदीस से दो मस्अले साबित हुए : एक येह कि कुरआनो हदीस के तरजमे और अल्फ़ाज़ रट लेना इल्मे दीन नहीं, बल्कि इन का समझना इल्मे दीन है, येही मुश्किल है। इसी के लिये फुकहा की तकलीद की जाती है, इसी वजह से तमाम मुफ़स्सिरीन व मुहद्दिसीन आइम्मए मुज्तहिदीन के मुक़ल्लिद हुए, अपनी हदीस दानी पर नाज़ां न हुए, कुरआनो हदीस के तरजमे तो अबू जल भी जानता था। दूसरे येह कि हदीस व कुरआन का इल्म कमाल नहीं, बल्कि इन का समझना कमाल है। आलिमे दीन वोह है जिस की जुबान पर अल्लाह और रसूल ﷺ का फ़रमान हो और दिल में इन का फ़ैज़ान। ( मिरआतुल मनाजीह , 1 / 187 )
तालिबे दुआ
मुहम्मद अनस रज़ा रज़वी