जिससे आखिरत संवर जाए वह सवाल किया जाए तो ज़्यादा बेहतर है
सवाल:आज कल बहुत से लोग इमाम साहब से बेतुके सवाल करते हैं मसलन कुछ मुक़तदी हज़रात जिनमें से बहुत सौं को सही तरीक़े से नमाज़ पढ़ना नहीं आता वजू व गुस्ल ठीक से नहीं कर पाते उन लोगों में एक आदत पाई जाती है वह आदत यह है के इमाम साहब से बे ज़रूरत सवाल पूछते रहते हैं और अगर इमाम साहब उन्हें ना बताएं तो वह लोग इमाम साहब को जाहिल समझते हैं इमामत के लायक़ ख्याल नहीं करते हैं,
उनमें के बहुत वह लोग हैं कि खुद उनके बच्चे इसाइयों और गैर मुस्लिमों के स्कूलों में पढ़कर इस्लाम को भूल गए उन्हें सही से कलमे तक नहीं याद है और इमामों से गैर ज़रूरी सवाल करते हैं जैसे
हज़रते खदीजा रज़ि अल्लाह तआला अन्हा का निकाह किसने पढ़ाया ?
उन की नमाज़ ए जनाज़ा किसने पढ़ाई ?
पहला जुम्मा कब और कहां पढ़ाया गया ?
ज़ोहर व असर में आहिस्ता और फज़र व मग़रिब व ईशा में आवाज़ के साथ क़िरात क्यों होती है ?
ज़ोहर, असर, ईशा में चार और मग़रिब में तीन ही फर्ज क्यों ?
और खास कर यह ज़्यादा पूछते हैं
कि किस की नमाज़ ए जनाज़ा किसी ने पढ़ाई और किस का निकाह किसने पढ़ाया ?
और कुछ लोग तारीख की बातों में उलझते और दूसरों को उलझाते हैं जैसे कि
हज़रत इमाम ए हुसैन रज़ि अल्लाह तआला अन्हू का सर मुबारक कहां दफन है ?
या फिर कर्बला वालों की नमाज़ ए जनाज़ा किसने पढ़ाया और किसने पढ़ा ?
या फिर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का मज़ार कहां है ?
या फिर हलीमा की ऊंटनी का रंग कैसा था ?
जन्नती दुंबे का गोश्त किसने खाया ?
हज़रत बिलाल रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू का रंग कैसा था ?
और भी इसी तरह के बेशुमार सवालात करते हैं
जवाब:तारीख की बातें कि कब क्या हुआ ? कैसे हुआ ? क्यों हुआ ? कहां हुआ ? किस लिए हुआ ?
यह सब बातें जानना ज़रूरी नहीं है और ना ही यह अस्ल इल्म है
अस्ल इल्म यह जानना है कि इस्लाम में क्या जायज़ है क्या नाजायज़ है ?
क्या हराम है क्या हलाल है ?
क्या सवाब है क्या गुनाह है ?
किस बात से अल्लाह नाराज़ होता है किस बात से अल्लाह राज़ी ?
और यह भी याद रखिए
शैतान की चालों में से एक चाल यह भी है ज़रूरी बातों के बजाय गैर ज़रूरी बातों में उलझा देना
और कोई बात किसी को ज़लील करने के लिए पूछना हराम है कि मालूम होने के बावजूद फिर भी इसलिए पूछ रहे हैं कि सामने वाला ज़लील हो और लोगों के सामने रुस्वा हो यह गुनाह है
रसूलूल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने बे ज़रूरत मसाईल पूछने से मना फ़रमाया!(फतावा रज़विया शरीफ ५/३४४)
यानी जिस बात की ज़रूरत ना हो, और उसको पूछे बग़ैर भी काम चलता हो उसको पूछने से हुजूर सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने मना फरमाया है
हां अगर आपको ज़्यादा मालूमात हासिल करने का शौक है तो बाक़ायेदा किसी आलिम ए दीन को अपना उस्ताद बनाइए या किसी मदरसे में दाखिला लीजिए और इस तरह चलते फिरते बे ज़रूरत सवालों के लिए इमाम साहब को परेशान मत कीजिए
हां अगर कोई ऐसा दीनी मसअला है कि जिसके जाने बग़ैर आपके दीन में कोई कमी आ रही है तो बाअदब तरीक़े से मालूम कीजिए बताने वाले मिल जाएंगे यह ज़रूरी नहीं है कि इमाम साहब ही बताएं,
इमामत के लिए तो इतना काफी है कि अक़ाईद की दुरुस्तगी के साथ-साथ तहारते नमाज़ के बक़द्र ज़रूरी मसाईल जानते हों और क़ुरान ठीक से पढ़ते हों
हां अगर आलिम फाज़िल भी हों तो सुब्हान अल्लाह लेकिन यह ज़रूरी नहीं है
फतावा रज़विया शरीफ में है आला हज़रत अलैहिर्रहमां से कुछ लोगों ने सवाल किया कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम को अल्लाह तआला ने अपने ज़ाती नूर से पैदा फरमाया जो नूरे मुक़द्दस क़दीम है या नूरे मुबारक से नूरे कुंदरत मुराद है जो हादिस है और यह भी पूछा गया कि (دنی فتدلی) जो क़ुरान में आया है कि हुजूर इतने क़रीब हुए की दो कमानो का फैसला था या उससे भी कम तो यह क़रीब होना अल्लाह से है या जिब्रिल से तो जवाब में इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर्रहमा ने तहरीर फरमाया
अवाम मुस्लिमीन को नमाज़, रोज़ा, वजू, गुस्ल, क़िरात की तसह़ीह फर्ज है जिस से रोज़ ए क़यामत उन से मुवाखज़ा होगा अपने मर्तबे से ऊंची बातों में कचहरियां जमाना और खिचड़ियां पकाना और राऐं लगाना गुमराही का फाटक है (والعیاذ باللہ تعالٰی) (फतावा रज़विया शरीफ)
आला हज़रत अलैहिर्रमां के इस फरमान से वह लोग सबक़ हासिल करें जिन्हें सह़ी तरीक़े से नमाज़ पढ़ना नहीं आता, क़ुरान पढ़ना नहीं आता, सह़ी तरीक़े से गुस्ल नहीं कर पाते और तारीख की बातें पूछते फिरते हैं कब हुआ ? कैसे हुआ ? कहां हुआ ? वगैरा-वगैरा
और खास कर इमाम हज़रात को परेशान करते हैं मैं इस तरह के सवाल करने वालों से यही कहना चाहता हूं कि उन बातों को पूछें जो बरोज़ ए क़यामत आप से पूछी जाएगी या जिनकी मालूमात ना होने पर आप गुनाह कर बैठेंगे या आप की नमाज़ में कमी वाक़े हो गई वगैरा-वगैरा
अज़ क़लम
सय्यद फैज़ानुल क़ादरी साहब क़िब्ला
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी