हुज़ूर ﷺ के फ़रमान
हज़रत सैय्यदना इमाम हसन रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने इरशाद फ़रमाया:"कोई औरत अपने ख़ाविंद के घर से भाग निकले तो उसकी नमाज़ क़ुबूल नहीं होती और औरत जब नमाज़ पढ़े मगर अपने ख़ाविंद के लिए दुआ न करे तो उसकी दुआ मरदूद होती है।"(तंबीहुलग़ाफ़िलीन सफ़हा–541】
हदीस: हज़रत अबूसईद से रिवायत है कि हुज़ूर रहमत आलम (ﷺ) ने इरशाद फ़रमाया:
كفران العشير كفر دون كفر فيه
तर्जमा: शौहर की नाशुक्री करना एक तरह का कुफ़्र है और एक कुफ़्र दूसरे से कम होता है।【बुख़ारी शरीफ़ जिल्द–1 बाब–21 हदीस–28 सफ़हा–109】
हदीस: हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने इरशाद फ़रमाया:"मुझे दोज़ख़ दिखाई गई मैने वहाँ औरतों को ज़्यादा पाया। वजह ये कि वह कुफ़्र करती हैं।" सहाबा किराम ने अर्ज़ किया "क्या वह अल्लाह के साथ कुफ़्र करती है? इरशाद फ़रमाया "नहीं! वह शौहर की नाशुक्री करती हैं (जो कि एक तरह का कुफ़्र है) और एहसान नहीं मानती। अगर तू किसी औरत से उमर भर एहसान और नेकी का सुलूक़ करे लेकिन एक बात भी ख़िलाफ़े तबीअत हो जाए तो झट कह देगी मैंने तुझ से आराम और सुकून नहीं पाया।"बुख़ारी शरीफ़ जिल्द–1 बाब–21 हदीस–28 सफ़हा–109】
हदीस: हज़रत उमर से रिवायत है कि हुज़ूर अकरम (ﷺ) ने इरशाद फ़रमाया:"क्या तुम को नहीं मालूम कि औरत के लिए शिर्क के बाद सब से बड़ा गुनाह शौहर की नाफ़रमानी है।"【गुनयतुत्तालिबीन बाब–5 सफ़हा–114】