(देवबंदी वहाबी के मदरसे में ज़कात देना कैसा है)

0

 (देवबंदी वहाबी के मदरसे में ज़कात देना कैसा है)


 सवाल  : देवबंदी और वहाबी वगैरा के मदारिस में ज़कात दे सकते हैं या नहीं उलमा ए किराम रहनुमाई फरमाएं फक़त वस्सलाम

 साईल :  अब्दुल्लाह मुस्तफाई फैज़ी (कुछ गुजरात)

 जवाब  : वहाबी देवबंदीयों के अक्सर अकाबिर रहनुमा के अक़वाल कुफ्रिया खबीसा पर उलमा ए अरब व अजन ने कुफ्र व इरताद का फतवा दिया और फरमाया जो उनके कुफ्रियात पर मतलअ होकर उनके आज़ाब व कुफ्र में शक करे वह भी उन्हीं में से काफिर व जहन्नमी है और उनके मुतबईन का हाल अब तक यही है कि वह इन तवाग़ियत को अपना वली व रहनुमा और दीनी पेशवा गर्दानते हैं लिहाज़ा वह सब के सब फिर्क़े बातिला में से हैं उनकी हिमायत हराम और इयानत निहायत बद अंजाम वजह आसाम है

 قال تعالی عز و جل : ولا تعاونوا على الاثم و العدوان " اھ

इन के यहां (قال الله) की तालिम अज़मते इलाही के लिए नहीं बल्की अहानते इलाही और किज़्बे बारी ए तआला साबित करने के लिए है और (قال الرسول) का दर्स ताज़िम ए रसूल ﷺ के लिए नहीं बल्की (معاذ اللہ تعالی) अंबिया व मुरसलिन (علیہم الصلوۃ و السلام) और दिगर मोअज़्ज़मीन के उयूब व नक़ाईस तलाश करने के लिए है

 लिहाज़ा उनके मदारीस में ज़कात व फित्रा की रक़में देना हराम और उनके दिए से फित्रा व ज़कात भी अदा नहीं होगी क्योंकि अदाएं ज़कात के लिए तमलिक फक़ीर शर्त है और फक़ीर का साहिबे ईमान होना ज़रूरी है और वहां तो ईमान ही नहीं तमलिक कियों कर मुतहक़्क़ीक़ हो  जैसा कि तनवीरूल अबसार में है कि 
 " لا يجوز صرفها لاهل البدع " اھ
 यानी अहले बिदअत (बद मज़हब) के लिए उसका सर्फ करना जायज़ नहीं......

 (تنویر الابصار ج 3 ص 305 : كتاب الزكاة ، باب المصرف ، دار الکتب العلمیہ بیروت)

 और (مجمع الانھر) मे है की 

 و ينبغى ان لا يصرف الى من لا يكفر من المبتدعة كما فى القهستانى " اھ

 यानी  और चाहिए कि ऐसे (बद मज़हब) बिदअती जिन की तकफीर की गई को माले ज़कात ना दिया जाए जैसा की (قہستانی) में है.

 (مجمع الانھر ج 1 ص 329 : دار الکتب العلمیہ بیروت)

 और बहारे शरीयत में है कि बद मज़हब को ज़कात देना जायज़ नहीं जब बद मज़हब का यह हुक्म है तो वहाबीया ए ज़माना की तौहीने खुदा व तनक़िसे शाने रिसालत ﷺ करते और शाए करते हैं जिन को अकाबिरे उलमा ए हरमैन तैय्यीबैन ने बिल इत्तेफाक़ काफिर व मुर्तद फरमाया अगरचे वह अपने आप को मुसलमान कहें उन्हें ज़कात देना हराम व सख्त हराम है और दी तो हरगिज़ अदा ना होगी . (बहारे शरीयत जिल्द १ सफा ९३३ माल ज़कात के मसारीफ)

والله و رسولہ اعلم باالصواب

 अज़ क़लम  
 मोहम्मद करीमुल्लाह रिज़वी



 हिंदी ट्रांसलेट 
 मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
एक टिप्पणी भेजें (0)
AD Banner
AD Banner AD Banner
To Top