मदरसा के इजाज़त के बगैर ज़कातफित्रा का आधा पैसा रखना कैसा है

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 मदरसा के इजाज़त के बगैर ज़कात फित्रा का आधा पैसा रखना कैसा है 

 सवाल  : किया फरमाते हैं उलमा ए किराम व मुफ्तियान ए शरअ मतीन इस मसअला के मुतअल्लिक़ एक इमाम है और वह एक मस्जिद में इमामत करता है जिसकी तनख्वाह मुकर्ररा है मगर रमज़नुल मुबारक के महीने में चंद मदरसों की रसीदें लेकर फित्रा ज़कात की रसीदें काटता है और मदरसे वालों से कमीशन लेकर कुछ पैसे मदरसे में वापस कर देता है जिस पर गांव वालों का और मुक़्तदियों का एतराज़ है कि हम लोग अपने मस्जिद में इमाम को रखे हैं ना की मुहसिल को हम अपने इमाम को फित्रा ज़कात का कमीशन नहीं लेने देंगे ऐसे इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ना दुरुस्त है या नहीं बराए करम जवाब इनायत फरमाएं
 साईल :  मोहम्मद इमरान रज़ा (हुसैन नगर)

 जवाब  : दीनी मदरसों की रसीद फित्रा ज़कात का काटना अच्छी बात है यह एक तरह से दीन की खिदमत है लेकिन मज़कूर इमाम ने रसीद से फित्रा ज़कात का पैसा खुद ही कमीशन के तौर पर रख लेता है और कुछ पैसा वापस कर देता है यह नजायज़ हैं हां यह हो सकता है वसूल करदा फित्रा ज़कात का माल बसलामत पूरा के पूरा मदरसा में जमा कर दे अब मदरसे वाले चाहे इस रक़म से दे दे मज़कूर इमाम के लिए लेना जायज़ है वरना नहीं
 जैसा कि उलमा ए दीन शरअ मतीन तहरीर फरमाते हैं लिहाज़ा चंदा करके खुद से आधा कमीशन रख लेना जायज़ नहीं कि यह अमानत में खयानत है और चंदा अगर ज़कात व सदक़ात व फित्रा हो तो ज़कात सदक़ा फित्रा की अदायगी भी ना होगी

 कमीशन पर चंदा करना कुछ शर्तों के साथ जायज़ है पूरी वसूल करदा रक़म बा हिफाज़त तमाम मदरसा में जमा कर दे फिर मदरसा बाद हिला ए शरईया जिस रक़म से भी चाहे उसकी उजरत दे दे आला हज़रत मुहद्दीसे बरैलवी रज़ि अल्लाह तआला अंहू तहरीर फरमाते हैं अगर रुपया बनियत किसी मसरूफ ज़कात को देकर मालिक कर दें और वह अपनी तरफ से मदरसा को दे दे तो तनख्वाह मदरसीन जुमला जमीन जुमला मुसारीफ मदरसा में सर्फ हो सकता है (फतावा रज़विया जिल्द ४ सफा ४६८)

 (और ऐसा ही फतावा अमजदिया जिल्द १ सफा ३७६ में भी है  (बहवाला तरबीयत अल इफ्ता)

 अलबत्ता मज़कूरा इमाम कौ ज़कात फित्रा खुद से रखना जायज़ नहीं और मुतवल्ली मस्जिद और दिगर ज़िम्मादारान हज़रात ने यह कानून बनाया है हम अपने इमाम को ज़कात फित्रा की रक़म नहीं खाने देंगे चूंकि मुतवल्ली ए मस्जिद ने इमाम को सिर्फ इमाम के लिए रखा है और दिगर कामों के लिए नहीं तो बेहतर है उन कामों से खुद को बाज़ रखें लिहाज़ा  खुद से रसीद का पैसा रख लेना बगैर मदरसा की इजाज़त तो यह एक तरह के झूठे और चोरी भी है यह लिहाज़ा ऐसा करने वाला इमाम फासिक़ मुअल्लिन है उसके पीछे नमाज़ पढ़ना मकरूहे तहरीमी है वाजिबुल इयादा है और अगर मदरसा वालों के तरफ से कमीशन दिया जाता है तो उसका लेना हर्ज नहीं
والله و رسولہ اعلم باالصواب

 अज़ क़लम
 मोहम्मद इम्तियाज़ क़मर रज़वी अमजदी
 
 हिंदी ट्रांसलेट 
 मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)



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