भीख़ मांगना कैसा है
_इंसान जब तक ज़िंदा रहता है ज़रुरियाते ज़िन्दगी मसलन रोटी कपड़ा मकान बिजली और दीगर चीज़ों का मोहताज होता है इन तमाम चीज़ों को हासिल करने के लिए माल (रुपया) खर्च करना होता है और माल कारोबार या नौकरी मेहनत मज़दूरी वगैरह से हासिल होता है,कितने ही ऐसे मुसलमान हैं जो मज़दूरी मेहनत कारोबार नौकरी वगैरह कर के अपना घर चला रहें हैं और ऐसे लोग बहुत खुशनसीब हैं क्योंकि हुज़ूर ﷺ सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से पाकीज़ा तरीन कमाई के बारे में पूछा गया तो आपने इरशाद फरमाया
हदीस: हर वोह तिजारत जिस में धोखा न हो और अपने हाथ की कमाई
मुसनद इमाम अहमद जिल्द 06 सफह 112 हदीस 17266"
इस दुनिया में जहां बे शुमार लोग मेहनत मज़दूरी कर के अपने बच्चों की परवरिश करते हैं वहीं पर लाखों लोग ऐसे भी पाए जाते हैं जो बगैर किसी शरई मजबूरी के मुख्तलिफ़ अन्दाज़ में भीख मांग कर दोज़ख का अंगारा जमा करते हैं जो शख़्स अपने माल को बढ़ाने के लिए भीख मांगता है उसके बारे में हुज़ूर ﷺ सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया
हदीस:- जो शख़्स माल बढ़ाने के लिए भीख मांगे तो वोह अंगारा मांगता है अब चाहे कम करे या ज़्यादा(मुस्लिम शरीफ़ सफह 401 हदीस 2399
यानि बगैर सख़्त मजबूरी के जबकि ज़रुरत भर माल मौजूद हो फिर भी माल बढ़ाने के लिए भीख मांगता फिरे तो गोया वोह दोज़ख के अंगारे जमा कर रहा है,एक मस्अला याद रखें कि तंदुरुस्त शख़्स जिसके हाथ पैर सलामत हों और वोह मेहनत मज़दूरी कर सकता हो फिर भी सुस्ती काहिली में मज़दूरी मेहनत न कर के भीख मांग रहा हो ऐसे शख़्स को भीख देना हराम और उसे मांगना भी हराम आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान बरेलवी अलैहिर्रहमा इरशाद फरमाते हैं कि
क़वी तंदुरुस्त जो कमाई के क़ाबिल हो ऐसे लोग भीख मांगते फिरते हैं उनको देना गुनाह है कि उनका भीख मांगना हराम है और उनको देने में इस हराम पर मदद करना है, अगर लोग न दें तो झक मारें और कोई हलाल पेशा अख़्तियार करें(फतावा रज़विया शरीफ़ जिल्द 23 सफह 464)
दुर्रे मुख़्तार में है कि ये हलाल नहीं कि आदमी किसी से रोज़ी वगैरह का सवाल करे जबकि उसके पास एक दिन की रोज़ी मौजूद हो या उस में कमाई की ताक़त मौजूद हो, ऐसे तंदुरुस्त भीख मांगने वाले को भीख देना वाला गुनहगार होता है क्योंकि उसने हराम पर मदद की(दुर्रे मुख़्तार मअ रद्दुल मुहतार जिल्द 03 सफह 357)
छोटे से छोटा काम कर के रोज़ी कमाना भीख मांगने से बेहतर है हां अगर कोई ऐसा शख्स हो कि वोह काम नहीं कर सकता बहुत बूढ़ा हो या बहुत कमज़ोर हो या हाथ पैर वगैरह सही सलामत न हों कि काम मेहनत मज़दूरी नहीं कर सकता और उसके पास कुछ माल भी नहीं है तो ऐसे शख़्स की मदद करनी चाहिए और ज़रुर करना चाहिए ज़कात फित्रा सदक़ा ऐसे लोगों का ही हक़ है उम्मते मुहम्मदिया में जब कोई शख़्स सदक़ा करता है तो जहन्नम रब से अर्ज करता है कि मौला मुझे सजद ए शुक्र की इजाज़त दे कि इस उम्मत से एक शख़्स तो मुझ से निजात पा गया(क्या आप जानते हैं सफह 394)