बद मज़हब के मरने पर माइक से ऐलान करना कैसा है
सवाल क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसला में की ज़ैद जो एक सुन्नी इदारा का सदर है एक वहाबी के मरने पर ज़ैद ने मस्जिद से ऐलान किया कि आप हज़रात को इत्तिला दी जाती है कि फुलां का इंतक़ाल हो गया है आप हज़रात दुआ ए मगफिरत करें और नमाज़ ए जनाज़ा में शिरकत करके सवाबे दारैन हासिल करेंऐसा कहने वाले पर जो शरई हुक्म हो बहवाला जवाब अता फरमाए
साईलमोहम्मद रजब अली फैज़ी अतरोलवी
जवाब देवबंदी वहाबी अपने अक़ाएदे बातिला की वजह से काफिरो मुर्तद हैं बल्कि उनके कुफ्र में जो शक करे वह भी काफिर है
من شک فی کفرہ وعذابہ فقد کفر
और काफ़िर के लिए दुआ ए मगफिरत करना कुफ्र है
इरशाद ए बारि ए तआला है
ماکان للنبي والذين آمنوا أن یستغفروا للمشرکین ولو کانوا اولی قربی من بعد ما تبين لهم انھم أصحا الجحيم
नबी ﷺ और इमान वालों को लाइक़ नहीं की मुशरिकों की बख्शीश चाहे अगर्चे वह रिश्तेदार हों जबकि उन्हें खुल चुका कि वह दोज़खी हैं (कंज़ुल ईमान सूरह तौबाआयत ११३)
और फतावा रज़विया में हैकाफिर के लिए दुआ ए मगफिरत व फातिहा ख्वानी कुफ्र खालिस व तकज़ीब कुरान अज़ीम है कमा फिल आलमगीरीयह (फतावा रज़विया जिल्द २१ सफा २२८दावते इस्लामी)
सदर साहब अगर उस बहाबी के अक़ाएदे बातिला से वाक़िफ होने के बावजूद मुसलमान समछ कर ऐलान किए तो यह कुफ्र है उन पर तजदीदे ईमान तजदीदे निकाह लाज़ीम है और बैअत हों तो तजदीदे बैअत भी करें,
अगर उस वहाबी के अक़ाएदे बातिला से वाक़िफ थे मगर वहाबी ही समझ कर किसी चापलूसी की वजह से ऐलान किए तो यह नाजायज़ व हराम हैसदर साहब पर लाज़ीम है कि एलानिया तौबा करें और कारे खैर करेंमसलन मस्जिद में जिन चीज़ों की ज़रूरत हो वह लाकर दें और मिलाद वगैरा करें और गरीबों में सदक़ात व खैरात करें की आमाले सालिहा कुबूले तौबा में मआवून हैं
जैसा कि कुरान शरीफ में है
اِلَّا مَنْ تَابَ وَ اٰمَنَ وَ عَمِلَ عَمَلًا صَالِحًا فَاُولٰٓئِکَ یُبَدِّلُ اللّٰہُ سَیِّاٰتِہِمْ حَسَنٰتٍ ؕ وَ کَانَ اللّٰہُ غَفُوْرًا رَّحِیْمًا
मगर जो तौबा करे और ईमान लाए और अच्छा काम करे तो ऐसों की बुराइयों को अल्लाह भलाईयों से बदल देगा और अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है, (सुरह फुरक़ान७०)
और अगर तौबा ना करें तो उनका समाजी बाईकाट किया जाए
जैसा कि इरशाद ए रब्बानी है
وَ اِمَّا یُنْسِیَنَّکَ الشَّیْطٰنُ فَلَا تَقْعُدْ بَعْدَ الذِّکْرٰی مَعَ الْقَوْمِ الظّٰلِمِیْنَ
और जो कहें तुझे शैतान बहलावे तो याद आए पर ज़ालिमों के पास ना बैठ (कंज़ुल इमान सुरह इनआम आयत नंबर ६८)
और अगर उसके अक़ाएदे बातिला से वाक़िफ ना थेना यह जानते थे कि यह वहाबी है तो गुनाहगार ना होंगे मगर फिर भी एहतियातन तौबा कर लेना बेहतर होगा
والله و رسولہ اعلم بالصواب
अज़ क़लम
फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)