औरत अगर तलाक़ मांगे महर देना वाजिब होगा ?
सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए दीन शरअ मतिन मसअला ज़ेल में अगर औरत मर्द से तलाक़ मांगे और मर्द औरत की ज़ीद पर तलाक़ दे दें तो क्या शौहर को महर की रक़म अदा करना होगा या नही शौहर ने अगर महर की रक़म अदा नहीं की हो तो क्या हुकुम बराए करम हवाले के साथ जवाब इनायत फरमाए
साईल : सैयद आलम रज़ा रिज़वी
जवाब : सूरत ए मसऊला में तलाक़ देने पर ज़ैद को महर की रक़म अदा करना होगा जैसा की फतावा ए फैज़ूर रसूल फिक़्ह मिल्लत हज़रत अल्लामा मौलाना मुफ्ती जलालुद्दीन अहमद अमजदी अलैहिर्रहमा इसी तरह के सवाल व जवाब में इरशाद फरमाते हैं कि
طلاق البغض مباحات
से बिला वजह शरई तलाक़ लेना देना अल्लाह तबारक व तआला को सख्त ना पसंद है चुनांचे अबू दाऊद सैयदना इब्ने उमर रज़ि अल्लाहू तआला अंहुमा से रावी हैं की सैयदे आलम ﷺ इरशाद फरमाते हैं
"ابغض الحلال الی الله الطلاق "( مشکوۃ شریف)
यानी खुदा ए तआला के नज़दीक हलाल चीजों में सबसे ज़्यादा ना पसंदीदा चीज़ तलाक़ है नेज़ दारे क़तनी सैयदना मआज़ बिन जबल रज़ि अल्लाहू तआला अंह से रावी हैं सरकार ए अक़द्दस ﷺ इरशाद फरमाते हैं
"یا معاذ ماخلق الله شیاء علی وجھ الارض احب الیہ من العتاق ولا خلق الله شیاء علی وجہ الارض ابغض الیہ من الطلاق" (مشکوۃ شریف)
यानी अल्लाह तआला ने रू ए ज़मीन पर कोई चीज़ गुलाम आज़ाद करने से ज्यादा पसंदीदा ना पैदा फरमाई और कोई चीज़ रू ए ज़मीन पर तलाक़ से ज्यादा ना पसंदीदा ना पैदा फरमाई
नेज़ इमाम अहमद तिर्मीजी इब्ने माजा अबू दाऊद दारमी सैयदना सोबान रज़ि अल्लाहू तआला अंह से रावी हैं कि फखरे कायनात ﷺ इरशाद फरमाते हैं
" ایما امراۃ سئلت زوجھاطلاقا فی غیرمابئاس فحرام علیہا رائحتہ الجنة "( مشکوۃ شریف)
यानी जिस औरत ने बगैर किसी सख्त तकलीफ व मजबूरी के शौहर से तलाक़ का सवाल किया तो उस पर जन्नत की खुशबू हराम है बहर हाल अगर तलाक़ देना ही पड़े तो तलाक़ ए अहसन दे यानी तहर पाकी के अय्याम में सिर्फ एक तलाक़ रजई दे कि अगर दौरान इद्दत तरफैन में मसालेहत हो जाए और शौहर रजअत कर ले तो बेहतर है वरना इद्दत पूरी हो जाने पर औरत आज़ाद और मुख्तार है
लिहाज़ा सुरते मसउला मैं क्योंकि औरत ज़ैद की मदखूला है लिहाज़ा तलाक़ हो जाने पर औरत ज़ैद से मुकर्ररा महर ले सकती है ज़ैद को अदा करना वाजिब है नेज़ ज़माना ए इद्दत का खर्चा भी ज़ैद को देना होगा और ना देने पर गुनाहगार होगा लेकिन अगर औरत पहले महर माफ कर चुकी है तो ज़ैद पर अदा वाजिब नहीं (फतावा ए फैजूर रसूल जिल्द १ सफा ७४१)
والله و رسولہ اعلم باالصواب
अज़ क़लम
मोहम्मद नूर जमाल रिज़वी
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)