ज़मीन से दीनार निकालने वाला नमाज़ी

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 ज़मीन से दीनार निकालने वाला नमाज़ी


( हिकायत : 11) उस ने मेरी बात मान ली और जब नमाज़ से फ़ारिग हुवा तो ज़मीन से दस दीनार निकाल कर मुझे दे दिये। फिर जब इशा की नमाज़ का वक्त़ हुवा तो हस्बे आदत उस ने मुझे इशारा किया, मैं ने कहा : मैं बीस दीनार से कम नहीं लूंगा। फिर भी उस ने मेरी बात तस्लीम कर ली और नमाज़ से फ़रागत पा कर उस ने ज़मीन से बीस दीनार निकाले और मुझे थमा कर कहने लगा : जो मांगना है मांगो ! मेरा मौला तआला बहुत गनी और करीम है, मैं उस से जो मांगूंगा वोह अता करेगा। उस का येह मुआमला देख कर मुझे बड़ा धचका लगा और मुझे यक़ीन हो गया कि येह वलिय्युल्लाह है, मुझ पर उस का रोब तारी हो गया, फिर मैं ने उस को जन्जीरों से आज़ाद कर दिया और वोह रात रो रो कर गुज़ारी।

 जब सुब्ह हुई तो मैं ने उसे बुला कर उस की ताज़ीमो तकरीम की, उसे अपना पसन्दीदा नया लिबास पहनाया और इख़्तियार दिया कि वोह चाहे तो हमारे शहर में इज्ज़त वाले मकान या महल में रहे और चाहे तो अपने शहर चला जाए। उस ने अपने शहर जाना पसन्द किया। मैं ने एक खच्चर मंगवाया और ज़ादे राह दे कर उसे खच्चर पर खुद सुवार किया। उस ने मुझे दुआ दी :


( हिकायत : 12 ) अल्लाह अपने पसन्दीदा दीन पर तेरा ख़ातिमा फ़रमाए। उस का येह जुम्ला मुकम्मल न हुवा था कि मेरे दिल में दीने इस्लाम की महब्बत घर कर गई, फिर मैं ने अपने दस गुलाम उस के हमराह भेजे। उन्हें हुक्म दिया कि उसे निहायत एहतिराम के साथ ले जाओ। फिर उस को एक दवात और कागज़ दिया और एक निशानी मुक़र्रर कर ली कि जब वोह ब हिफाज़त तमाम अपने मक़ाम पर पहुंच जाए तो वोह निशानी लिख कर मेरी तरफ़ भेज दे। हमारे और उस के शहर के दरमियान पांच दिन का फ़ासिला था। जब छटा दिन आया तो मेरे खुद्दाम मेरे पास आए, उन के पास रुकुआ भी था जिस में उस का ख़त और वोह अलामत मौजूद थी। मैं ने अपने गुलामों से जल्दी पहुंचने का सबब दरयाफ्त किया तो उन्हों ने बताया कि जब हम उस के साथ यहां से निकले तो हम किसी थकावट और मशक्कत के बगैर घड़ी भर में वहां पहुंच गए लेकिन वापसी पर वोही सफ़र पांच दिनों में तै हुवा। उन की येह बात सुनते ही मैं ने पढ़ा : ला इलाहा इल्लाहु मुहम्मदुर्र सूलुल्लाह ﷺ ( या'नी मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं और मुहम्मद ﷺ उस के रसूल हैं और दीने इस्लाम हक़ है ) फिर मैं रूम से निकल कर मुसलमानों के शहर आ गया।(नेकियां बरबाद होने से बचाइये स. 43)

   

 मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी

बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ


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