मशरूत क़र्ज़ देना कैसा है

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 मशरूत क़र्ज़ देना कैसा है

 सवाल: क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसला में की ज़ैद को दस हज़ार की सख्त जरूरत है वह किसी हिंदू से सुद पर रुपया लेना चाहता है बकर जो एक मदरसा का जिम्मेदार है उसे मालूम हुआ तो उसने उसे सुद से बचाने के लिए एक मशवरा दिया कि तुम को मैं दस हज़ार क़र्ज़ देता हूं तुम साल भर के बाद लौटा देना मगर इमसाल रमज़ानुल मुबारक में तुमको तीन हज़ार की रसीद कटानी होगी अगर रसीद कटाने का वादा करो तब मैं क़र्ज़ दूंगा वरना नहीं अब बकर अपना ज़ाती रुपया क़र्ज़ देकर ₹३००० मदरसा में देने के लिए वादा लिया है ऐसा करना जायज़ है या नहीं ? बहवाला जवाब अता करें मेहरबानी होगी?

 साईल: मोहम्मद शमशीर रज़ा क़ादरी (दारुल उलूम रुपौली मुजफ्फरपुर बिहार)

 जवाब: सुद पर क़र्ज़ लेना हराम है सुद हराम ए क़तई है उसकी हुरमत का मुनकीर काफिर है इब्ने माजा की हदीस है सुद का गुनाह सत्तर हस्स है उनमें सबसे कम दर्जा यह है कि कोई शख्स अपनी मां से ज़िना करें इसलिए सुद से हमेशा दूर रहें बकर ने उसे सुद लेने से मना करके बहुत बेहतर किया

मुसलमान भाइयों को क़र्ज़ के पैसे देकर उनकी ज़रूरत को पूरी करना बेहतर और कार ए सवाब है हदीस शरीफ में मजबूर है कि ( الله فى عون عبده ماكان العبد فى عون أخيه) यानी  अल्लाह तआला अपने बंदे की मदद फरमाता है जब बंदा अपने भाई की मदद करता है किसी मुसलमान की ज़रूरत को पूरी कर देना, बहुत बड़े सवाब का काम है मगर क़र्ज़ देकर किसी भी सूरत में क़र्ज़ की वजह से मशरूत नफा लेना सुद है जो हराम व गुनाह है हदीस शरीफ में है ( كل قرض جر نفعافهوربوا ')हां क़र्ज़ अदा करते वक़्त मुस्तक़रिज़ अपनी खुशी से बगैर किसी शर्त के कुछ रक़म ज़ाईद मदरसा को दे देता है तो यह सुद नहीं है और उसे लेना भी जायज़ है और उसे मदरसा के मसारिफ में खर्च करना भी दुरुस्त है जैसा की हदीस शरीफ में है हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी रज़ि अल्लाहू अन्हूमा फरमाते हैं ( كان لى على النبى صلى الله عليه دين فقضانى و وزادنى )यानी मेरा कुछ क़र्ज़ा हुजूर के ज़िम्मा था हुजूर ने अदा फरमाया और ज्यादा दिया(बुखारी शरीफ सफा ३२२ जिल्द १) (बहवाला फतावा ए मरकज़ ए तरबियत इफ्ता जिल्द २ सफा २७६/२७७)

इसलिए कि बकर साहब ने शर्त आईद कर दी है कि तुमको रमज़ानुल मुबारक में ₹३००० चंदा देना होगा जभी भी कर्ज़ दूंगा नहीं तो नहीं

 इसी शर्त के बिना पर यह चंदा लेना नाजायज़ होगा वरना वह अज़ खुद अपनी खुशी से ३००० या जितना ज़ाईद चाहता चंदा देता कोई क़बाहत नहीं थी

والله و رسولہ اعلم بالصواب

 अज़ क़लम 

 मोहम्मद रज़ा अमजदी 

 हिंदी ट्रांसलेट 

 मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)



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