महमूद व अयाज़ और ककड़ी की काश

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 महमूद व अयाज़ और ककड़ी की काश


( हिकायत : 13 )मन्कूल है, मशहूर आशिके रसूल, सुल्तान महमूद ग़ज़नवी रहमतुल्लाह तआला अलैह के पास कोई शख़्स ककड़ी ले कर हाज़िर हुवा। सुल्तान ने ककड़ी क़बूल फ़रमा ली और पेश करने वाले को इन्आम दिया। फिर अपने हाथ से ककड़ी की एक काश तराश कर अपने मन्जूरे नज़र गुलाम अयाज़ को अता फ़रमाई। अयाज़ मज़े ले ले कर खा गया। फिर सुल्तान ने दूसरी फांक काटी और खुद खाने लगे तो वोह इस क़दर कड़वी थी कि ज़बान पर रखना मुश्किल था। सुल्तान ने हैरत से अयाज़ की तरफ देखा और फ़रमाया :  

 अयाज़ ! इतनी कड़वी फांक तू कैसे खा गया ? वाह ! तेरे चेहरे पर तो ज़र्रा बराबर ना गवारी के असरात भी नुमूदार न हुवे ? अयाज़ ने अर्ज किया : आली जाह ! ककड़ी वाकेई बहुत कड़वी थी। मुंह में डाली तो अक्ल ने कहा : थूक दे। मगर इश्क़ बोल उठा : अयाज़ ख़बरदार ! येह वोही हाथ हैं जिन से रोजाना मीठी अश्या खाता रहा है, अगर एक दिन कड़वी चीज़ मिल गई तो क्या हुवा ! इस को थूक देना आदाबे महब्बत के ख़िलाफ़ है लिहाजा इश्क़ की रहनुमाई पर मैं ककड़ी की कड़वी काश खा गया। " ( रहबरे ज़िन्दगी, स . 167 ) 

 प्यारे इस्लामी भाइयो ! देखा आप ने कि अपने आका की इस क़दर ने'मतें इस्ति माल करने वाला अगर अयाज़ की तरह सोच बना ले तो बे सब्री कभी क़रीब से भी नहीं गुज़र सकती।

( हिकायत : 13 ) हज़रते सय्यिदुना साबित बुनानी रहमतुल्लाह तआला अलैह फरमाते हैं : ताबेई बुज़ुर्ग हज़रते सय्यिदुना मुतर्रिफ रहमतुल्लाह तआला अलैह के शहज़ादे हज़रते सय्यिदुना अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह तआला अलैह का इन्तिकाल हो गया। सय्यिदुना मुतर्रिफ रहमतुल्लाह तआला अलैह उम्दा कपड़े ज़ेबे तन किये, तेल लगाए लोगों के पास आए। वोह आपको इस हालत में देख कर बहुत नाराज़ हुवे और बोले : आप के बेटे का इन्तिक़ाल हुवा है और आप तेल लगाएं इन कपड़ों में घूम रहे हैं ? फ़रमाया : तो क्या मैं कम हिम्मती का इज़हार करूं ? मेरे रब ने मुझे तीन इन्आमात देने का वा'दा फ़रमाया है और हर इन्आम मुझे दुन्या व माफ़ीहा से जियादा महबूब है। अल्लाह पाक इरशाद फ़रमाता है :  

 तर्जमए कन्जुल ईमान : कि जब उन पर कोई मुसीबत पड़े तो कहें हम अल्लाह के माल हैं और हम को उसी की तरफ़ फिरना। येह लोग हैं जिन पर उन के रब की दुरूदें हैं और रहमत और येही लोग राह पर हैं।(नेकियां बरबाद होने से बचाइये स. 46/47/48)

  

मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी,

बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ




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