किया दाढ़ी सिर्फ सुन्नत है?

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  किया दाढ़ी सिर्फ सुन्नत है?

अवाम मे ये मशहूर है कि दाढ़ी सिर्फ सुन्नत है, न रखने पर गुनाह नही होगा अस्ल मे ये इनकी कम फहमी है और कुछ हद तक हमारे मुकर्रीर हज़रात की भी गलती है कि अपनी तक़रीरों मे दाढी सुन्नत है, दाढी सुन्नत है इस तरह की बाते करते हैं।

कुछ हजरात दिमाग का घोडा दौडाते है और कहते हैं की दाढ़ी सुन्नते मोअक्केदा है।ये दोनो बात गलत है ।

देखीए सुन्नत का लुगवी माना होता है तरीक़ा, दाढ़ी हुजूर ﷺ की सुन्नत है मतलब आप ﷺ का तरीक़ा है, मर्तबे में सुन्नत नही, मर्तबे में ये वाजिब यानी फर्ज के क़रीब है , कुछ हवाले दर्जे जैल हैं।

तमाम सुन्नतों में दाढ़ी 1 मुश्त तक बढ़ाने की सुन्नत इतनी क़वी है कि उल्माये किराम इसको वाजिब कहते हैं।

(اشعۃاللمعات, جلد 1 ،صفحہ 212) 

दाढ़ी जबकि 1 मुश्त से कम हो तो उसे काटना किसी इमाम यानि हनफी,शाफई,मालिकी व हम्बली के नज़दीक जायज़ नहीं है और पूरी तरह से मूंड देना तो मुखन्नस यानि हिजड़ों का और हिंदुस्तान के यहूदी और ईरान के मजूसियों का तरीक़ा है।

(رد المحتار، جلد 2 ، صفحہ116 

، فتح القدير، جلد 2 ،صفحہ 270 

،الطحطاوی صفحہ411

، البحْر ارّائق ،جلد 2 ، صفحہ 280) 


इससे पता चला कि दाढी मर्तबे मे वाजिब है।अगर दाढ़ी आम सुन्नतों की तरह होती तो क्या वजह है कि दाढ़ी न हो या एक मुश्त से कम हो तो उसे इमाम या पीर बनाना हराम है और ऐसे शख्स के पीछे नमाज न होगी ।

(فتاویٰ رضويہ ،قديم، جلد 3،صفحہ 215، 219 ،255) 


दाढ़ी बढ़ाना तमाम नबियों की सुन्नत है इसे मुंडाना या 1 मुश्त से कम करना हराम है।

(بہار شریعت، حصہ 16، صفحہ 197)

अगर आम सुन्नत है तो इसका न करना हराम क्यूं?

हमने पेहले ही बताया के दाढी  सुन्नत है यानी हुजूर ﷺ का तरीका है मरतबे मे दाढी वाजिब है, जैसा कि नमाज भी हुजूर ﷺ की सुन्नत है मगर मरतबे मे फर्ज़है।

ओर जो इसे आम सुन्नत केहते है उनसे दलील मांगी जाए, ओर कुछ लोग केहते हैं भाइ दाढी सिर्फ सुन्नत है इसलिए  मे नही रख रहा उन्हे कहा जाए अगर तुम दाढी को  सिर्फ सुन्नत मानते हो तो खाना खाना (बकद्ररे हाजत से ज्यादा) फर्जो वाजिब नही बल्कि ना पसंद है, मोबाइल रखना ना तो सुन्नत है न फर्जो वाजिब तो इसे क्यूं कर रहे हो? 

ये सब हीले बाजीयां हैं और इत्तिबाए शैतान व नफ्स है ।

खुलास ए कलाम ये कि दाढी मुंडाने वाला या एक मुश्त से कम रखने वाला फासिक, मुस्तहीके अजाब है और फासिक की खुद की नमाज भी मकरुहे तहरीमी है क्योंकि दौराने नमाज इर्तिकाबे हराम पाया गया लिहाज़ा पढ़ी हुई हर नमाज का ऐआदा (दोहराना) वाजिब है।

(درالمختار, كتاب الصلاة ،جلد 2) 

कोई भी बहाना न चलेगा, कुछ लोग रिश्ता न मिलने के खौफ से, कुछ हजरात वालीदैन के हुक्म पर, कुछ नौकरी न मीलने के बाइस दाढ़ी नही रखते (معاذاللہ) 

एक उसुल याद रखीऐ कि इत्तिबाए शरीअत मे मां बाप का हुकम नही माना जाएगा अगरचे वो घर से बहार निकाल दे।

और रिज्क़ का मालिक अल्लाह है, जो कंपनी(बहुत कम एसी कंपनीयां हैं) आप को नोकरी नही दे रही दाढ़ी रखने की वजह से, तो याद रखे अगर अल्लाह उस कंपनी के काफिर मालिक को रोजी दे रहा हे तो क्या आका ﷺ की महब्बत मे दाढ़ी रखने वाले को रोजी नही देगा ? 

इसीलिए जल्द से जल्द दाढ़ी रख लें क्योंकि मौत का भरोसा नही ओर हमारे मुक़र्रीर हज़रात को चाहिए के अवाम को इस मस्अले से आगाह करे वर्ना आवाम इसे हल्का जानने मे गुमराह हो जाएगी।

अल्लाह हमें हक़ सुनने, समझने और अपनाने की तौफीक दे। (आमीन)


हिंदी ट्रांसलेट

मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)



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