लड़कियों का नात ख्वानी करना इंदश्शरअ कैसा है
सवाल: अर्ज़ यह है कि क्या 7 या 8 साल या इससे बड़ी लड़कियां मजम ए आम में माइक पर खड़ी होकर नात शरीफ पढ़ सकती हैं या नहीं मुफस्सल बा हवाला जवाब इनायत फरमाएं नवाज़िश होगी
साईल: तनवीर हुसैन (कटिहार)
जवाब: इस तअल्लुक से साहिबे फतावा बहरुल उलूम अलैहिर्रहमा तहरीर फरमाते हैं की
सरकार ए आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान फाज़ले बरैलवी अलैहिर्रहमा ने 9 साल की लड़की को मूश्तहात में शुमार किया है और आलम गिरी में है कि ("والتی بلغت حد الشھوۃ کالبالغ")
तो शहवत के साथ ऐसी लड़की को देखना और उसकी बात सुनना जरूर हराम होगा और शहवत ना हो मगर यह गुमान हो कि जब उसको देखूंगा या बात सुनूंगा तो शहवत हो जाएगी उसके लिए भी हुरमत का हुक्म है (अलमगीरी जिल्द पंजुम सफा ३२९)
आज कल हालत ऐसी है कि ५ साल की बच्चियों से भी लोग मुंह काला करते हैं, और आसूदा घरानों की बच्चियां सात आठ साल में भी हाथ पावँ निकाल लेती हैं, तो कुछ होने का इंतज़ार ना किया जाए बल्कि पहले ही से एहतियात बरती जाए.(बहरुल उलूम जि 5 स275)
मज़कुरा बाला हवाला जात से ज़ाहिर हो गया कि 9 साल के उम्र की लड़की का मजम ए आम में नात वगैरह पढ़ना जायज़ नहीं कि महले फित्ना है और मर्दों का उनकी तरफ माइल होना पाया जाएगा और उन मर्दों में जज़्बाती शहवानी की तहरीक पैदा होगी, इसी लिए औरतों का खुश इलहानी से बा आवाज़ पढ़ना की नामहरमों को उसके नगमा की आवाज़ जाए हराम है
और सात आठ साल की नाबालिगा बच्चियों से भी मर्दों की महफिल में नात वगैरा पढ़वाना मना है जैसा कि फतावा फैजूर रसूल जिल्द २ में है कि
इस जमाने में जब की औरतों की बेहयाई रोज़ ब रोज़ बढ़ती जा रही है नाबालिगा बच्चियों को जरी बनाने के लिए आम मर्दो के सामने स्टेज पर आने के इजाज़त हरगिज़ नहीं दी जाएगी.(फैज़ुर्रसूल जि 2स 459)
والله و رسولہ اعلم بالصواب
अज़ क़लम
हज़रत मौलाना मोहम्मद इमरान रज़ा सागर
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)
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