इस्लाम में औरतों को पर्दे का हुक्म उनकी हिफाजत के लिए ही दिया है?

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 इस्लाम में औरतों को पर्दे का हुक्म उनकी हिफाजत के लिए ही दिया है?


 सवाल: उलमा ए कराम की बारगाह में एक सवाल है कि आज कल की औरतें कहती है इस्लाम ने हमें घर के अंदर क़ैद कर दिया है औरतों को पर्दे के अंदर रहने का हुक्म क्यों दिया गया है?


 साईल: मोहम्मद आरिफ रज़ा (दरभंगा बिहार)


 जवाब: अगर इस्लाम ने औरतों को पर्दा का हुक्म दिया है, तो वह औरतों के फायदे के लिए है क्योंकि औरत एक सफेद चादर की तरह है जिसे दाग धब्बों से बचाना जरूरी है, इसलिए इस्लाम ने औरतों की हिफाज़त के लिए पर्दे का हुक्म दिया है, और कुरान व हदीस में पर्दे की बहुत ताकीद आई है जैसा कि इरशाद ए बारी तआला है की (وقرن فی بیوتکن ولا تبرجن تبرج الجاھلیۃ الاولی") ﴿سورۃ الأحزاب آیت 31 ،32"﴾


 तर्जुमा अपने घरों में ठहरी रहो और बे पर्दा ना निकलो जैसे अगली जाहिलीयत की बे पर्दगी


और हदीस शरीफ में है  (عن ابن مسعود عن النبی ﷺ قال المرأۃ عورۃ فأذا خرجت استشرفھا الشیطان") तर्जुमा हज़रत इब्ने मसउद रज़ि अल्लाहू तआला अंह से रिवायत है कि हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया कि औरत औरत है, यानी पर्दा में रखने की चीज़ है जब वह बाहर निकलती है तो शैतान उस औरत को घूरता है, यानी किसी अजनबी औरत को देखना शैतानी काम है (तिर्मिज़ी शरीफ)


 लिहाज़ा  अब जो औरतें यह कहती हैं कि इस्लाम ने हमें क़ैद कर दिया उनसे पूछा जाए कि आज से साढ़े १४ साल पहले की औरतों के बारे में आप क्या कहना चाहती हैं ? जिनको सिर्फ नफसियाती ख्वाहिशात के लिए इस्तेमाल किया जाता था और जिनकी बे पर्दगी ने उन्हें हिलाक़त में डाल दिया था,अल्ख....


 और ऐसा नहीं है कि इस्लाम ने औरतों को मजबूर किया है बल्कि वह अपनी जरूरीयात के लिए मुकम्मल पर्दे के साथ बाहर जा सकती हैं, जैसा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया है कि औरतों को अपनी जरूरीयात के लिए घर से निकलने की इजाज़त है(बुखारी ४७९५, मुस्लिम २१७०)


والله و رسولہ اعلم بالصواب


अज़ क़लम 

मोहम्मद इमरान रज़ा सागर 




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