आलिम और गैरे आलिम बराबर नहीं हो सकते
प्यारे इस्लामी भाइयो ! जैसे गूंगा और बोलने वाला, अन्धा और आंख वाला बराबर नहीं हो सकते ऐसे ही आलिमे दीन और जाहिल बराबर नहीं हो सकते। अल्लाह पाक कुरआने करीम की सूरतुज्ज़ुमर, पारह 23, आयत नम्बर 9 में इर्शाद फ़रमाता है : तरजमए कन्ज़ुल ईमान :"तुम फ़रमाओ क्या बराबर हैं जानने वाले और अन्जान।
तफ्सीरे तबरी में है : इस आयते मुबारका में अल्लाह पाक ने नबिय्ये करीम ﷺ से फ़रमाया ( ﷺ ) अपनी क़ौम से फ़रमा दो कि जो लोग इस बात का इल्म रखते हैं कि उन के लिये अपने रब की इताअतो फ़रमां बरदारी में क्या ( अज्रो सवाब ) है और उस की ना फ़रमानी में कैसे ( अज़ाब ) हैं क्या येह लोग ( मक़ामो मर्तबे में ) उन के बराबर हो सकते हैं जो इन बातों का इल्म नहीं रखते ? पस वोह ( बे इल्म ) लोग बिना सोचे समझे काम करते हैं, उन्हें नेक आमाल के सवाब का पता होता है न ही बुरे कामों के अज़ाब का ख़ौफ़। पस येह दोनों क़िस्म के लोग बराबर नहीं हो सकते।(इल्म की बरकते सफह 13)
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