(नमाज़ का मसाअला )

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(नमाज़ का मसाअला )

 अह़कामे फिक्हिया 

मसअला:- औरत अगर मर्द के मुहाजी ( बराबर ) हो तो मर्द की नमाज़ जाती रहेगी इसके लिये चन्द शर्ते हैं:

(1 ) औरत मुशतहात हो यानी इस काबिल हो कि उस से जिमा हो सके अगर्चे नाबालिगा हो और मुशतहात में उम्र का एअ़्तिबार नहीं नौ बरस की हो या उस से कुछ कम की जब कि उसका जुस्सा ( जिस्म ) इस काबिल हो कि इस से जिमा किया जा सके और अगर इस काबिल नहीं तो नमाज़ फासिद न होगी अगर्चे नामज़ पढ़ना जानती हो बुढ़िया भी इस मसले में मुशतहात के में है वह औरत अगर उसकी ज़ौजा ( बीवी ) हो या माहारिम ( सगी बहन बेटी वगैरा ) में हो जब भी हुक्म नमाज फासिद हो जायेगी ।

(2 ) कोई चीज़ उंगली बराबर मोटी और एक हाथ उँची हाइल न हो न दोनों के दरमियान इतनी जगह खाली हो कि एक मर्द खड़ा हो सके न औरत इतनी बलन्दी पर हो कि मर्द के बदन का कोई हिस्सा उस औरत के बदन के किसी हिस्से के बराबर हो ।

(3 ) रूकू सुजूद वाली नमाज़ में यह मुहाजात वाकेअ् हो । अगर नमाज़े जनाज़ा में मुहाज़ात हुई तो नमाज़ फासिद न होगी ।

(4 ) वह नमाज़ दोनों में तकबीरे तहरीमा के एअ्तिबार से शामिल हो यानी औरत ने उसकी इक़्तिदा की हो या दोनों ने किसी इमाम की अगर्चे शुरू से शिरकत न हो तो अगर दोनों अपनी - अपनी पढ़ते हों तो फासिद न होगी मकरूह होगी ।

(5 ) अदा में मुशतरक ( शामिल ) हों कि उस में मर्द उसका इमाम हो या उन दोनों का कोई दूसरा इमाम हो जिसके पीछे अदा कर रहे है हक़ीक़त में या हुक्म में मसलन दोनों लाहिक हों कि इमाम के फारिग होने के बाद अगर्चे इमाम के पीछे नहीं मगर हुक़्मन इमाम के पीछे ही हैं और मसबूक इमाम के पीछे न हक़ीक़त है न हुक्मन बल्कि वह मुनफरिद है ।

(6 ) दोनों एक ही जेहत ( दिशा ) में नमाज़ पढ़ रहे हों अगर जेहत बदल जाये जैसे रात के अंधेरे में कि पता न चलता हो एक तरफ़ इमाम का मुँह है और दूसरी तरफ मुक़तदी का या काअ़्बा मुअज़्ज़मा में नमाज़ पढ़ी और जेहत बदल गई हो नमाज़ हो जायेगी ।

(7 ) औरत आकिला हो मजनूना ( पागल औरत ) कि मुहाज़ात ( बराबर में खड़ा होने ) में नमाज़ फासिद न होगी।

(8 ) इमाम ने औरतों की इमामत की नियत कर ली हो अगर्चे शुरू करते वक़्त औरतें शरीक न हों और अगर औरतों की इमामत की नियत न हो तो औरत ही की फासिद होगी मर्द की नहीं ।

(9 ) इतनी देर तक मुहाजात रहे कि एक पूरा रुक्न आदा हो जाये यानी बकद्रे तीन तस्बीह के मुहाज़ात रहे । 

(10 ) दोनों नमाज़ पढ़ना जानते हों ।

(11 ) मर्द आक़िल बालिग हो ।(बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफा 111)


तालिबे दुआ

अब्दुल लतीफ क़ादरी

बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ (बिहार )







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