वोह अहले जन्नत से हैं
हज़रते इब्ने अब्बास रादिअल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि येह आयत साबित बिन कैस बिन शम्मास रादिअल्लाहु तआला अन्हु के हक़ में नाज़िल हुई उन्हें सिक्ले समाअत ( या'नी ऊंचा सुनने का मरज़ ) था और आवाज़ उन की ऊंची थी, बात करने में आवाज़ बुलन्द हो जाया करती थी, जब येह आयत नाज़िल हुई तो हज़रते साबित अपने घर में बैठ रहे और कहने लगे कि मैं अहले नार से हूं, हुज़ूर ( ﷺ ) ने हज़रते सा’द रादिअल्लाहु तआला अन्हु से उन का हाल दरयाफ्त फ़रमाया, उन्हों ने अर्ज़ किया कि वोह मेरे पड़ोसी हैं और मेरे इल्म में उन्हें कोई बीमारी तो नहीं हुई, फिर आ कर हज़रते साबित रादिअल्लाहु तआला अन्हु से इस का ज़िक्र किया, साबित ने कहा
येह आयत नाज़िल हुई और तुम जानते हो कि मैं तुम सब से ज़ियादा बुलन्द आवाज़ हूं तो मैं जहन्नमी हो गया, हज़रते सा'द रादिअल्लाहु तआला अन्हु ने येह हाल खिदमते अक्दस में अर्ज़ किया तो हुज़ूर ( ﷺ ) ने फ़रमाया कि वोह अहले जन्नत से हैं !
दरबारे रिसालत के आदाब रब्बे काइनात ने बयान फ़रमाए
मुफ़स्सिरे शहीर हुकीमुल उम्मत हज़रते मुफ्ती अहमद यार खान रहमतुल्लाह तआला अलैह फ़रमाते हैं : दुन्यावी बादशाह अपने दरबारों के आदाब और इन में हाज़िरी देने के क़वानीन खुद बनाते हैं और अपने मुक़र्ररा हाकिमों के जरीए रिआया से इन पर अमल कराते हैं कि जब हमारे दरबार में आओ तो इस तरह खड़े हो इस तरह बात करो, इस तरह सलामी दो फिर जो कोई आदाब बजा लाता है उस को इन्आम देते हैं, जो इस के ख़िलाफ़ करता है बादशाह की तरफ से सजा़ पाता है। फिर इन के येह सारे काइदे सिर्फ़ इन्सानों पर ही जारी होते हैं। जिन्न, फ़िरिश्ते, हैवानात वगैरा को इन से कोई तअल्लुक नहीं क्यूंकि उन पर उन की कोई सल्तनत नहीं नीज़ येह सारे आदाब उस वक्त तक रहते हैं जब तक बादशाह ज़िन्दा है, जहां उस की आंख बन्द हुई वोह दरबार भी ख़त्म, सारे आदाब भी फ़ना, अब नया दरबार है नए काइदे।(नेकियां बरबाद होने से बचाइये स. 10/11)