कपड़ा चोर दर्जी की हिकायत
मौलाना रूमी अलैहिर्रहमह ने लिखा है एक दरजी था जो कपड़ा चोरी करने में बड़ा माहिर था, कोई कपड़ा उसे सीने के लिए दिया जाता तो वह ज़रूर किसी न किसी बहाने से कुछ कपड़ा चुरा लेता, एक रोज़ एक सिपाही शेखी में आ गया, और कहने लगा दरजी की ऐसी तैसी, मुझ से ज़्यादा होशियार कौन होगा ! मैं चलता हूँ, कोट का कपड़ा लेकर उसके पास चलता हूँ और उसे सीने के लिए देता हुँ कि वह मेरे सामने कपड़ा काटे। देखता हूँ ना वह कपड़ा कैसे चुराता है मुझ से ज़्यादा हाशियार दरज़ी का बाप भी नहीं हो सकता,
चुनाँचे वह सिपाही अपनी होशियारी व चालाकी से जाकर कहने लगा, मियाँ दरज़ी यह तुम्हारी धोका देही का यहाँ बड़ा चर्चा है, सुना है तुम किसी न किसी बहाने कुछ कपड़ा चुरा लेते हो और ख़बर तक नहीं होने देते और होंगे जो तुम्हारे दाव में आजाते हैं तुम मुझ को धोका नहीं कर सकते, मैं। यह कोट का कपड़ा लाया हूँ उसे मेरे सामने काटो, देखता हूँ तुम इसमें कपड़ा कैसे चुराते हो ? दरजी बड़ा होशियार था, उसने कहा बैठिये जनाब ! आप को किस कमबख़्त ने 'शुब्ह में डाल दिया, सारी उम्र यह काम करते गुज़र गई, एक गिरह तक कपड़े की मैं अपने ऊपर हराम समझता हूँ, अलावा अज़ी कोई बेवकूफ हो, तो उसे धोका दे भी दूँ. मगर आप जैसे अक्लमन्द शख्स को मेरे जैसा ना समझ आदमी धोका कैसे दे सकता है ?
सिपाही ने कहा, अच्छा लो यह कपड़ा और मेरे कोट के लिए उसे मेरे सामने काटो, दरजी ने कपड़ा लिया और कैंची पकड़ी, इधर सिपाही जम गया और अपनी नज़र उस तरफ़ रखी, मौलाना रूमी फ़रमाते हैं कि दरजी बड़ा मसख़रा और ज़रीफ़ था, उसे हँसने के सैंकड़ो लतीफे याद थे चुनाँचे दरज़ी ने सिपाही को लतीफे सुनाना शुरूअ किये, एक लतीफ़ा ऐसा सुनाया सिपाही इस क़दर हँसा हँसते हँसते बे हाल हो गया और पेट पकड़ कर थोड़ी देर के लिए मुँह के बल झुक गया जिस वक्त वह नीचे झुका, दरजी ने फ़ौरन ही दो गिरह कोट के कपड़े से कपड़ा काट लिया, सिपाही लतीफे में ऐसा महव हुआ कि खुद ही कहने लगा, हाँ उस्ताद ! एक लतीफा और भी, दरजी ने एक और लतीफा सुना दिया, सिपाही फिर हँसा और इस कद्र हँसा कि हँसते हँसते मुँह के बल ज़मीन पर गिर पड़ा। दरजी ने झट कपड़ा कुछ और काट लिया सिपाही तीसरी मरतबा फिर कहा कि एक लतीफ़ा और दरजी ने कहा जनाब ! लतीफ़ा और भी सुना तो दूं, लेकिन फिर कोट आप का बहुत ही तंग हो जाएगा !
सबक़ः
मौलाना रूमी अलैहिर्रमह उस हिकायत से सबक़ यह लिखते हैं कि सिपाही की मिसाल उस बेख़बर और गाफिल इंसान पर सादिक आती है जो अपने ज़ोहद व तक्वा के ज़ोअम (गुमान) में अपने आप को बहुत बड़ा समझता है और दरजी की मिसाल शैतान पर सादिक आती है, जो लोगों के मताऐ दीन व ईमान को चुराने की फिकर में रहता है गाफिल इंसान अपने आप को होशियार समझ कर शैतान का सामना करता है तो शैतान उस गाफिल इंसान को दुनियावी शहवतों के लतीफों में कुछ इसे बुरी तरह फँसा लेता है, और इंसान दुनियवी शहवत में कुछ ऐसा महव हो जाता है कि शैतान उसके मताओ गिराँ को काटता जाता है और यह अपने मता से बे खबर चाहता है कि किसी और शहवत व लज्जत में महव और नहीं जानता कि इसी तरह उसकी कबाए दीन व मज़हब तंग हो रही है!(शैतान की हिकायात, सफ्हा: 128,130)
तालिबे दुआ
अ.लतीफ़