शैतान की दुआ
हज़रत इस्राफ़ील अलैहिस्सलाम ने लौहे महफूज़ में लिखा देखा कि एक बन्दा अस्सी हज़ार बरस तक इबादते इलाही में मस्रूफ रहेगा, मगर अंजाम कार उसकी यह इबादत उसके सर पर मार दी जाएगी और जानिबे इलाही से उस पर फटकार का मेंह बरसने लगेगा, यह पढ़ कर इसराफ़ील कांप उठे और रोने लगे, कि शायद वह बन्दा मैं ही हूँ तमाम फरिश्ते जमा होकर इस्राफील अलैहिस्सलाम के पास आए और रोने का सबब दरयाफ़्त किया, कहा मैंने लौहे महफूज़ पर ऐसा ऐसा लिखा देखा है, इस्राफील अलैहिस्सलाम की यह बात सुन कर फ़रश्तेि घबरा उठे और सब रोने लगे, हर एक को यही डर था कि कहीं वह मैंही न हो जाऊं फिर सब ने कहा चलो अज़ाज़ील बड़ा मुकर्रब और बड़ा आबिद है उससे चलकर दुआ कराएं, चुनाँचे सब मिलकर अज़ाज़ील (शैतान) के पास आए, और लौहे महफूज़ के लिखे हुए की ख़बर देकर दुआ माँगी और यूँ कहा ! "अल्लाहुम्म ला तगदिब अलैहिम" ऐ अल्लाह इन पर गदब नाज़िल न कर, उन्हें अपने कहर से महफूज़ रख ! मलऊन ने दुआ में अपने नफ़्स को फ़रामोश कर दिया और उन के लिए दुआ कि इलाही इन पर गज़ब नाज़िल न करना और यूँ दुआ न की कि इलाही हम पर गज़ब नाज़िल न करना, चुनांचे लौहे महफूज़ का लिखा हुआ उसी के सामने आ गया (नुज्हतुल - मजालिस जि : 2, सः 31)
सबक़ः इंसान को चाहिए वह हमेशा अपने को पेशे नज़र रखे, और उसकी गलतीयों से पनाह माँगे, और अल्लाह से पहले अपने आप पर फज्ल फरमाने की दुआ माँगे जो शख्स दूसरों की तो इस्लाह के दरपे हो और अपने नफ़्स को भूल जाये वह शैतान का पैरोकार है(शैतान की हिकायात, सफ्हा: 95,96)
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