यह शेर पढ़ना कहां तक दुरुस्त है ? आसमानों पर जो खुदा है?
सवाल: क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला के बारे में की ज़ैद एक शेर बार बार पढ़ रहा है की
(आसमानों पर जो खुदा है उस से मेरी यही दुआ है चांद हर रोज में देखूं तेरे साथ में)
यह शेर कहां तक दुरुस्त है और ज़ैद पर शरीयत का क्या हुक्म आईद होगा कुरान और हदीस की रौशनी में जवाब इनायत फरमाएं बहुत मेहरबानी होगी
साईल: मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी दुदही कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
जवाब:इस शेर का पढ़ना कुफ्र है इसलिए कि शायर का यह कहना कि, (आसमानों पर जो खुदा है) यानी अल्लाह अज़्ज़व जल को आसमानों पर मान रहे जबकि अल्लाह अज़्ज़व जल के लिए जहत व मकान मानना कुफ्र है जैसा कि शारेह बुखारी हज़रत अल्लामा मुफ्ती शरीफुल हक़ अमजदी अलैहिर्रहमां फतावा शारेह बुखारी में फरमाते हैं
पूरी उम्मत का इस पर इजमा है कि अल्लाह तआला के लिए मकान साबित करना कुफ्र है सिवा ए चंद गुमराह फिरकों के और किसी का यह क़ौल नहीं
फिर चंद सतर के बाद फरमाते हैं
अगर अल्लाह अज़्ज़व जल की ज़ात को महदुद माने तो कुरान का इंकार लाज़िम आएगा कि अल्लाह तबारक व तआला का कुरान ए मुकद्दस में हुक्म है
الا انه بكل شي محيط
सुनो यक़ीनन अल्लाह तआला हर चीज़ को मोहित (घेराहुआ) है
और जब बनस ए कुरान अल्लाह तआला हर चीज़ को मोहित है तो फिर उसको कोई चीज़ घेर नहीं सकती और ऐसा क़ौल करना जिस से लाज़िम आए उसको कोई चीज़ घेरे हुए है इस आयते करीमा के इनकार करने की वजह से कुफ्र है(फतावा शारेह बुखारी १ सफा २०४)
इसलिए ज़ैद पर तौबा तजदीद ए इमान तजदीद ए निकाह और मुरीद है तो तजदीद ए बैअत करे
والله اعلم بالصواب
अज़ क़लम
मोहम्मद रज़ा अमजदी
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)
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