जो आलिम नाच गाना में शरीक हो क्या वह इमामत कर सकता है?

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 जो आलिम नाच गाना में शरीक हो क्या वह इमामत कर सकता है?


 सवाल: क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में की जो आलिम नाच बाजा वाली बारात में शिरकत करता हो उसके पीछे नमाज़ पढ़ना कैसा है?


 साईल: तबरेज़ आलम


 जवाब: अच्छी बात का हुकुम करना और बुरी बात पर मना करना दीन का बड़ा सुतून है और इसके लिए अल्लाह तआला ने तमाम अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम को मबऊस फरमाया, अगर उसे बिल्कुल तर्क कर दिया जाए और उसके इल्म व अमल को बेकार छोड़ा जाए तो गर्ज़ नुबूवत बेकार और दियानत मुज़महिल और सुस्ती आम गुराही ताम और जहालत शाएअ और फसाद ज़ाएद और फितना बरपा हो जाएगा बिलाद खराब और बंदगाने खुदा तबाह हो जाएंगे इसी लिए अल्लाह तआला ने कुरआन मजीद व फुरक़ान हमीद में इरशाद फरमाया ( کَانُوْا لَا یَتَنَاہَوْنَ عَنْ مُّنْکَرٍ فَعَلُوْہُ  لَبِئْسَ مَا کَانُوْا یَفْعَلُوْنَ) जो बुरी बात करते आपस में एक दूसरे को ना रोकते ज़रूर बहुत ही बुरे काम करते थे, (सूरह माइदा ७९)


 नीज़ इरशाद फरमाता है(  لَوْ لَا یَنْہٰہُمُ الرَّبّٰنِیُّوْنَ وَ الْاَحْبَارُ عَنْ قَولِہِمُ الْاِثْمَ وَ اَکْلِہِمُ السُّحْتَ لَبِئْسَ مَا  کَانُوْا  یَصْنَعُوْنَ)उन्हें क्यों नहीं मना करते उनके पादरी और दरवेश गुनाह की बात कहने और हराम खाने से, बेशक बहुत ही बुरे काम कर रहे हैं, (सूरह माइदा ६३)


 अगर इमाम मना करने की ताक़त रखता था और मना ना किया तो बहुत बड़ा गुनहगार हुआ और अगर सही मानों में फितना व फसाद का खौफ था (जैसा कि मुशाहिदा है कि अक्सर यही होता है कि मदरसा से निकाल देते हैं तक़रीबन हर मदरसा का यही मामला है) तो ऐसी सूरत में गाने बजाने के साथ ना जाए बल्कि आगे या पीछे जाकर बारात में शामिल हो जाए और इस फेल को दिल से बुरा जाने,

 जैसा की हदीस शरीफ में है 

 عَنْ طَارِقِ بْنِ شِھَابٍ قَالَ: اَوَّلُ مَنْ قَدَّمَ الْخُطْبَۃَ قَبْلَ الصَّلَاۃِ مَرْوَانُ، فَقَامَ رَجُلٌ فَقَالَ:یَا مَرْوَانُ خَالَفْتَ السُّنَّۃَ، قَالَ: تُرِکَ مَا ھُنَاکَ یَا اَبَا فُلَانٍ، فَقَالَ ابوسَعیْدٍ: (اَلْخُدْرِیُّ رضی اللہ عنہ ) اَمَّاھٰذَا فَقَدْ قَضٰی مَا عَلَیْہِ، سَمِعْتُ رَسُوْلَ اللّٰہِ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم یَقُوْلُ مَنْ رَاٰی مِنْکُمْ مُنْکَرًا فَلْیُغَیِّرْہُ بِیَدِہِ، فَاِنْ لَمْ یَسْتَطِعْ فَبِلِسَانِہِ، فَاِنْ لَمْ یَسْتَطِعْ فَبِقَلْبِہٖ، وَذٰلِکَ اَ ضْعَفُ ا لْاِیْمَانِ

 सैयदिना तारिक़ बिन शहाब कहते हैं, पहला शख्स जिसने नमाज़ से पहले खुत्बा दिया, वह मरवान है, एक आदमी खड़ा हुआ और उसने कहा, ऐ मरवान तूने सुन्नत की मुखालिफत की है, उसने कहा ऐ अबू फलां वह वाले उमूर छोड़ दिए गए हैं, सैयदिना अबू सईद खुदरी रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने कहा उस आदमी ने अपनी जिम्मेदारी अदा कर दी है, मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते हुए सुना तुम में जो आदमी बुराई को देखे, उसको अपने हाथ से तब्दील करे, अगर इतनी ताक़त ना हो तो ज़बान से रोके और अगर इतनी ताक़त भी ना हो तो दिल से बुरा समझे, और यह ईमान का सबसे कमज़ोर दर्जा है, (मुसनद अहमद , ११४८०)


 सुरते मज़कूरा में उसके पीछे नमाज़ हो जाएगी और उलमा ए किराम जहां मजबूर हैं उसी को  एख्तियार करते हैं हां जो खुशी बाखुशी जाए और गाने बजाने से राज़ी रहे वह फासिक़ मुअल्लिन है उसके पीछे नमाज़ जायज़ नहीं, और पढ़ी हुई नमाज़ दोहराना वाजिब है,

والله تعالی اعلم بالصواب


 अज़ क़लम

  फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी

हिंदी ट्रांसलेट

मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)

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