इमाम के पीछे क़िरात करना कैसा है?

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 इमाम के पीछे क़िरात करना कैसा है?


 सवाल: क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में की अगर कोई इमाम के पीछे क़िरात करता है तो उसके लिए क्या हुक्म है?

 साईल: ओवैस रज़ा

 जवाब: हन्फीया के नज़दीक इमाम के पीछे मुक़्तदी को क़िरात करना जायज़ नहीं अगर इमाम बुलंद आवाज़ से क़िरात कर रहा है तो मुक़्तदी का खामोश रहकर सुनना वाजिब है, जैसा कि फरमाने खुदा वंदी है 

 وَ اِذَا قُرِئَ الْقُرْاٰنُ فَاسْتَمِعُوْا لَہٗ وَ اَنْصِتُوْا  لَعَلَّکُمْ  تُرْحَمُوْنَ

 और जब क़ुरआन पढ़ा जाए तो उसे कान लगाकर सुनो और खामोश रहो कि तुम पर रहम हो,(कंजुल ईमान सूरह एअराफ आयत नंबर 204)

  और अगर इमाम आहिस्ता पढ़ रहा है यानी सिर्री नमाज़ में जब भी मुक़्तदी पर लाज़िम है कि खामोश खड़ा रहे,

 हदीस शरीफ में है  इमाम अबू जअफर शरह मआनी अल आसार में रिवायत करते हैं, की हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर व ज़ैद बिन साबित व जाबीर बिन अब्दुल्लाह रज़ि अल्लाहू तआला अन्हुम से सवाल हुआ इन सब हज़रात ने फरमाया इमाम के पीछे किसी नमाज़ में क़िरात ना कर,

 और इमाम मोहम्मद रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने मुअता में रवायत की कि अब्दुल्लाह बिन मसउद रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से इमाम के पीछे क़िरात के बारे में सवाल हुआ,फरमाया खामोश रह की नमाज़ में शुग्ल है और इमाम की क़िरात तुझे काफी है

 जो मुक़्तदी इमाम के पीछे क़िरात करता है उसके लिए वईदें भी हैं, हदीस मुलाहिज़ा हो

 हज़रत सअद बिन अबी वक़ास रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने फरमाया मैं दोस्त रखता हूं कि जो इमाम के पीछे क़िरात करे उसके मुंह में अंगारा हो

 और अमीरुल मोमिनीन उमर फारूक़ ए आज़म रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू फरमाते हैं जो इमाम के पीछे क़िरात करता है काश उसके मुंह में पत्थर हो,

 और हज़रत अली रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से मनक़ूल है कि फरमाया जिसने इमाम के पीछे क़िरात की उसने फितरत से खता की, (बहारे शरीअत हिस्सा ३ / कुरआन मजीद पढ़ने का बयान)


 इमाम से पहले रूकू व सजदा नहीं करना चाहिए अगर रूकू व सजदा पहले किया लेकिन सर इमाम के बाद उठाया तो नमाज़ हो गई लेकिन ऐसा करना मना है, और अगर इमाम के पहले रूकू व सजदा किया और इमाम से पहले सर उठा भी लिया तो नमाज़ ना हुई,

 जैसा कि अल्लामा सदरुश्शरिआ फरमाते हैं 

 जो चीजें फर्ज़ हैं उनमें इमाम के मुताबिअत मुक़्तदी पर फर्ज़ है यानी उनमें का कोई फेल इमाम से पेश्तर अदा कर चुका और इमाम के साथ या इमाम के अदा करने के बाद अदा ना किया, तो नमाज़ ना होगी, मसलन इमाम से पहले रुकू या सजदा कर लिया और इमाम रुकू या सजदा में अभी आया भी ना था कि उसने सर उठा लिया तो अगर इमाम के साथ या बाद को अदा कर लिया हो गई, वरना नहीं(बहारे शरीअत हिस्सा ३)


 और इमाम मालिक की रिवायत में है फरमाया कि जो इमाम से पहले अपना सर उठाता और झुकाता है उसकी परेशानी के बाल शैतान के हाथ में है,

 और हज़रत अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं जो शख्स इमाम से पहले सर उठाता है, क्या उस से नहीं डरता कि अल्लाह तआला उसका सर गधे का सर कर दे, (बुखारी मुस्लिम)


 बाज मोहद्दिसीन से मनकूल है कि इमाम नौवी रहमतुल्लाह तआला हदीस लेने के लिए एक बड़े मशहूर शख्स के पास दमिश्क़ में गए और उनके पास बहुत कुछ पढ़ा, मगर वह पर्दा डालकर पढ़ाते, मुद्दतों तक उनके पास बहुत कुछ पढ़ा मगर उनका मुंह ना देखा, जब ज़माना दराज़ गुज़रा और उन्होंने देखा कि उनको हदीस की बहुत ख्वाहिश है तो एक रोज़ पर्दा हटा दिया, देखते क्या हैं कि उनका मुंह गधे का सा है, उन्होंने कहा साहबज़ादे , इमाम पर सबक़त करने से डरो की यह हदीस जब मुझको पहुंची मैंने उसे मुस्तअबद जाना और मैंने इमाम पर क़स्दन सबक़त की, तो मेरा मुंह ऐसा हो गया जो तुम देख रहे हो, (बहारे शरीअत हिस्सा ३ / इमामत का बयान)

والله تعالی اعلم بالصواب

 अज़ क़लम

  फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी

हिंदी ट्रांसलेट

मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)

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