औरतों को जनाज़ा के साथ जाना कैसा है?

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 औरतों को जनाज़ा के साथ जाना कैसा है?

 सवाल: बाद सलाम अर्ज़ यह है कि जनाज़ा के पीछे औरतों का चलना कैसा है जवाब इनायत फरमाए?


 साईल: हाफिज मोहम्मद अफसर रज़ा


 जवाब: औरतों को जनाज़ा के साथ जाना मकरूहे तहरीमी है हज़रत अल्लामा व मौलाना मुफ्ती मोहम्मद अमजद अली खान आज़मी अलैहिर्रहमा अपनी मशहूर किताब बहारे शरीयत में दुर्रे मुख्तार व सग़ीरी के हवाले से तहरीर फरमाते हैं कि औरत को जनाज़ा के साथ जाना ना जायज़ व ममनुअ है और नोहा करने वाली साथ में हो तो उसे सख्ती से मना किया जाए अगर ना माने तो उसकी वजह से जनाज़ा के साथ जाना ना छोड़ा जाए कि उसके ना जायज़ फेल से यह क्यों सुन्नत तर्क करें, बल्कि दिल से उसे बुरा जाने और शरीक हो (बहार ए शरीयत हिस्सा चहारूम सफा ८२३, मकतबा. मजलिस ए अल मदीना तुल इलमीया दावते इस्लामी)


 और हज़रत अल्लामा हसकफी रहमतुल्लाह अलैह दुर्रे मुख्तार में फरमाते हैं 


 ویکرہ خروجھن تحریما,وتزجر النائحتہ, ولا یترک اتباعھا لاجلھا

 औरतों को जनाज़ा के साथ निकलना मुकरूहे तहरीमी है और नोहा करने वाली को रोका जाए और नोहा करने वाली की वजह से जनाज़ा में शिरकत तर्क नहीं करेंगे( दुर्रे मुख्तार, किताबुस्सलात बाब सलातो अल जनाइज़, सफा १२२)( मैयत के अहकाम सफा १७१)


      والله و رسولہ اعلم بالصواب

 अज़ क़लम

मोहम्मद अनवर रज़ा साहब


हिंदी ट्रांसलेट

मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)


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