तीन जुम्मा छोड़ना कैसा है ?

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 तीन जुम्मा छोड़ना कैसा है ? 


सवाल अगर कोई चार जुम्मा लगातार ना पढ़े तो उसके लिए क्या हुक्म है

साईल: अली असगर अंसारी (नौतानवा  महाराजगंज)

जवाब: जुम्मा फर्ज़ ए ऐन है उसकी फर्ज़ीयत ज़ोहर से ज़्यादा मोअक़ीदा है और इसके तर्क पर हदीस में काफी वईदें हैं मुलाहिजा हो
 जिसने तीन जुम्मा बराबर छोड़े उसने इस्लाम को पीठ के पीछे  फेंक दिया वह मुनाफिक़ है वह अल्लाह से बे इलाक़ा है
 (बहारे ए शरीअत,हिस्सा ४ जुम्मा का बयान)

 मुस्लिम अबू हुरैरा व इब्ने उमर से और निसाई व इब्ने माजा व इब्ने अब्बास इब्ने उमर रज़ि अल्लाहू ताला अन्हुम से रावी, हुजूर अक़द्दस  फरमाते हैं लोग जुम्मा छोड़ने से बाज़ आएंगे या अल्लाह तआला उनके दिलों पर मोहर कर देगा फिर गाफिलीन में हो जाएंगे

 (बहार ए शरीअत हिस्सा ४)

  हुजूर फरमाते हैं जो बगैर उज़्र जुम्मा छोड़े एक दिनार सदक़ा दे और अगर ना पाए तो आधा दिनार और यह दिनार तस्दीक़ करना शायद इसलिए हो कि कुबूले तौबा के लिए मोअय्यन हो वरना हक़ीक़तन तो तौबा करना फर्ज़ है

 (बहार ए शरीअत हिस्सा ४ सफा ७५८)

 जिस हदीस में सदक़ा का हुक्म है उसका मतलब यह नहीं है कि नमाज़ माफ हो जाएगी बल्कि सदक़ा की बरकत से गज़ब ए इलाही की आग बुझ जाती है, वरना इस सदक़ा से जुम्मा का सवाब नहीं मिल सकता
(मिरात)
यू़ंही मुनाफ़िक़ इस माना में कहा गया है कि जो 3 जूम्मे बिला उज़्र छोडे वह मुनाफिक़ अमल होगा और यह निफाक़ उस पर ऐसा लाज़िम होगा की फिर उस सेे निकलना मुश्किल होगा, इस हदीस का मतलब है क्योंकि जुम्मा छोड़ना मुनाफिक़ों का सा काम है
(मिरात)
खुलासा यह है कि 3 जुमा हो या 4 जुमा तर्क कर करना यानी छोड़ना गुनाह कबीरा है कुफ्र नहीं
واللہ اعلم بالصواب

 अज़ क़लम

 मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारवी (दुदही कुशीनगर)

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