माहे मुहर्रम को माहे मुहर्रमुल हराम क्यों कहते हैं
सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला के बारे में कि माहे मोहर्रम शरीफ को मुहर्रमुल हराम क्यों कहते हैं ? जवाब हवाले के साथ इनायत फरमाएं मेहरबानी होगी?
साईल :मोहम्मद शहाबुद्दीन क़ादरी बहराइच
जवाब : माहे मुहर्रम शरीफ को मुहर्रमुल हराम इस वजह से कहा जाता है कि इस महीने में अहले अरब जंग व जिदाल हराम समझते थे,तफसीरे रूहुल बयान में है
"یحرم فیھا القتال ثم المحرم شھرالانبیا ٕ علیھم السلام ورأس السنة واحد الاشھرالحرام"
यानी इस माह में जंग व जिदाल हराम है फिर यह अंबिया ए किराम का महीना है और साल की इब्तिदा है और हुरमत वाले महीनों में से एक है(जिल्द ३ पेज ४३३ )
कंज़ुल ईमान मअ खज़ाईनुल इरफान, सफा 364 पर [( منھااربعة حرم )] की तफसीर में सदरुल अफाज़िल अल्लामा सैयद मोहम्मद नईमुद्दीन मुरादाबादी नुरुल्लाह मरक़दा लिखते हैं
अरब के लोग जमान ए जहिलियत में भी इन महीनों की ताज़ीम किया करते थे और इनमें क़िताल हराम जानते थे, इस्लाम में इन महीनों की हुरमत व अज़मत और ज़्यादा की गई,
फैज़े मिल्लत अल्लामा मुफ्ती मोहम्मद फैज़ अहमद ओवैसी मद्दाज़िल्लहुल आली [( فیوض الرحمن )] में यूं रक़म तराज़ हैं की अहले अरब इस महीने में जंग हराम समझते थे यहां तक कि अगर कोई किसी के बाप या बेटे के क़ातिल को क़ाबू कर लेता तब भी उस के दर पे आज़ार नहीं होता(रूहुल बयान पारा १० पेज ५३५ )
والله اعلم بالصواب
अज़ क़लम
अबू कौसर मोहम्मद अरमान अली क़ादरी जामई
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)
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