क़जा नमाज़ जमाअत से पढ़ना कैसा है ?

0

क़जा नमाज़ जमाअत से पढ़ना कैसा है ?


सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में की दो लोगों की एक ही दिन की फजर और ज़ोहर की नमाज़ क़ज़ा हो गई क्या वह दोनों मिलकर उन क़ज़ा नमाज़ों की जमाअत करवा सकते हैं ? अगर फजर की क़ज़ा जमाअत असर की नमाज़ के बाद अदा करें तो क्या क़िरात बिल जहर करेंगे या सिर्री करेंगे ?

साईल : अली रज़ा कराची (पाकिस्तान)

जवाब : नमाज़ क़ज़ा करना गुनाहे कबीरा है अगर्चे एक वक़्त की क्यों ना हो हां अगर किसी शरई वजह से मजबूरन क़ज़ा हो जाए तो मुवाखज़ा नहीं

मगर दोनों सूरतों में छुप कर पढ़ने का हुक्म है बेहतर यह है कि घर में पढ़े और अगर मस्जिद में पढ़े तो लोगों के जाने के बाद पढ़े या इस तरह पढ़े कि ज़ाहिर ना होने दें कि गुनाह को ज़ाहिर करना गुनाह है

अलबत्ता पूरी जमाअत की नमाज़ किसी वजह से क़ज़ा हो जाए तो जमाअत कर सकते हैं सिर्री क़ज़ा हुई तो सिर्रि जहरी क़ज़ा हुई तो जहर से पढ़ें, अगर्चे बाद असर या बाद जोहर पढें जैसा कि सरकारे आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू तहरीर फरमाते हैं कि

अगर किसी अमर आम की वजह से जमाअत भर की नमाज़ क़ज़ा हो गई तो जमाअत से पढ़ें, यही अफज़ल व मसनून है और मस्जिद में भी पढ़ सकते हैं और जहरी नमाज़ों में इमाम पर जहर वाजिब है अगर्चे क़ज़ा हो, और अगर बेवजह खास बाज़ अशखास की नमाज़ जाती रही तो घर में तन्हा पढ़ें की मअसियत का इज़हार भी मअसियत है क़ज़ा हत्तल इमकान जल्द हो, तअय्युन वक़्त कुछ नहीं एक वक़्त में सब वक़्तों की पढ़ सकता है

दुर्रे मुख्तार में है

یکرہ قضاء ھا فیہ ( ای فی المسجد) لان التاخیر معصیۃ فلا یظھر ھابزازیۃ

मस्जिद में नमाज़ की क़ज़ा मकरूह है क्योंकि ताखीर मअसियत है जिस का इज़्हार नहीं होना चाहिए, बज़ाज़िया

(درمختار باب الاذان مطبوعہ مطبع مجتبائی دہلی ۱/۷۹)

रद्दुल मुहतार में है

وفی الامداد انہ اذاکان التفویت الامر عام فالاذان فی المسجد لایکرہ لانتفاء العلۃ کفعلہ صلی اﷲ تعلایی علیہ وسلم لیلۃ التعریس

इमदाद में है जब नमाज़ का फूत होना किसी आम अमर की वजह से हो तो अब मस्जिद में क़ज़ा के लिए अज़ान मकरुह नहीं क्यों कि वह इल्लत मअदूम है जैसे की सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लैलतुत्तअरीस (لیلۃ التعریس) में किया था

(ردالمحتار باب الاذان مطبوعہ مصطفی البابی مصر ۱؍۲۸۸)

दुर्रे मुख्तार में है

یجھر الامام وجو با فی الفجر  و او لی العشائین اداء وقضاء

इमाम फजर और मगरिब ईशा की पहली दो रकात में जहरन क़िरात करे ख्वाह नमाज़ अदा पढ़ाए या क़ज़ा,

(درمحتار فصل ویجہرالامام مطبوعہ مطبع مجتبائی دہلی  ۱/۷۹)(بحوالہ فتاوی رضویہ جلد ۸/ص ۱۶۲/۱۶۳/دعوت اسلامی)

अलबत्ता असर के बाद मगरिब से क़ब्ल गुरूब ए आफताब से पहले बीस (२०) मिनट मकरूह वक़्त रहता है उस वक़्त ना पढ़े,

             والله تعالی اعلم بالصواب


अज़ क़लम 

 फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी

हिंदी ट्रांसलेट

मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
एक टिप्पणी भेजें (0)
AD Banner
AD Banner AD Banner
To Top