(फातिहा का तरीक़ा )

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(फातिहा का तरीक़ा )

 फातिहा का तरीक़ा यह है कि पहले वज़ू करे फिर तीन बार दुरूद शरीफ पढ़े,

صَلَّی ﷲ عَلَی النَّبِیِّ اْلاُمِّیِّ وَاٰلِہ صَلِّی اﷲ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ صَلَاۃً وَّ سَلَا مًا عَلَیْکَ یَا رَسُولَ ﷲﷺ

 फिर सूरह काफिरून एक बार पढ़े,

۔بسم اللہ الر حمنٰ الر حیم قُلْ یٰٓا اَیُّھَا الْکٰفِرُونَ٭لآ اَعْبُدُ مَا تَعْبُدُوْنَ٭وَلآَ اَنْتُمْ عٰبِدُوْنَ مآ اَعْبُدْ٭وَلآَ اَنَا عٰبِدٌ مَّاعَبَدْ تُّمْ  ٭وَلآَ اَنْتُمْ عٰبِدُوْنَ مآ اَعْبُدْ٭لَکُمْ دِیْنُکُمْ وَلِیَ دِیْن

 फिर सूरह इखलास तीन बार पढ़े,

(بسم اللہ الر حمنٰ الر حیم قُلْ ھُوَ اللّٰہُ احَدٌ٭اَللّٰہُ الصَّمَدُ ٭لَمْ یَلِدْ وَلَمْ  یُوْلَدْ٭وَلَمْ یَکُنْ لَّہٗ کُفُواًاَحَد)

 फिर सूरह फलक़ एक बार,

(بسم اللہ الر حمنٰ الر حیم قُلْ اَعُوْذُ بِرَبِّ الْفَلَقِ٭مِنْ شَرِّ مَا خَلَقَ٭وَمِنْ شَرِّ غَا سِقٍ اِذَا وَقَبَ٭وَمِنْ شَرِّالنَّفّٰثٰتِ فیِ الْعُقَدِ٭وَمِنْ شَرِّ حَا سِدٍ اِذَا حَسَدَ)

 फिर एक बार सूरह नास,

 (بسم اللہ الر حمنٰ الر حیم قُلْ اَعُوذُ بِرَبِّ النَّاسِ ٭مَلِکِ النَّاسِ٭اِلٰہِ النَّاسِ٭مِنْ شَرِّ الْوَسْوَا سِ الْخَنَّاسِ٭الَّذِیْ یُوَسْوِسُ فِی صُدُوْرِ النَّاسِ٭مِنَ الْجِنَّۃِ وَالنَّاسِ)

 फिर सूरह फातिहा एक बार

(بسم اللہ الر حمنٰ الر حیم الْحَمْدُ لِلّٰہِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَ٭الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ٭مٰلِکِ یَوْمِ الدِّیْنِ٭اِیَا کَ نَعْبُدُوَ اِیَّا کَ نَسْتَعِیْنُ٭اِھْدِ نَا الصِّرَا طَ الْمُسْتَقِیْمَ ٭صِرَا طَ الَّذِیْنَ اَنْعَمْتَ عَلَیْہِمْ لا غَیْرِ الْمَغْضُوبِ عَلَیْہِمْ  وَ لَا الضَآ لِّیْن)

 फिर अलिफ लाम मीम से मुफलिहून तक एक बार,

(بسم اللہ الر حمنٰ الر حیم ا لٓــمٓ٭ذٰ لِکَ الْکِتٰبُ لَا رَیْبَ فِیْہِ ج ھُدَ الِّلْمُتَّقِیْنَ٭ اَلَّذِیْنَ یُؤ مِنُو نَ    بِا الْغَیْبِ وَیُقِیْمُوْنَ الصَّلٰوۃَ وَ مِمَّا رَ زَقْنٰہُمْ یُنْفِقُونَ٭وَ الَّذِیْنَ یُؤْ مِنُوْنَ بِمَآ اُنْزِلَ اِلَیْکَ وَمَآ اُنْزِلَ مِنْ قَبْلِکَ ج وَبِا الْاٰ خِرَۃِ ہُمْ یُؤْ قِنُو نَ٭اُو لٰٓئِکَ عَلیٰ ہُدًی مِنْ رَّبِّہِمْ ق وَ اُو لٰٓئِکَ ھُمْ الْمُفْلِحُوْنَ)

फिर यह  पढ़े,

(وَ اِلٰھُکُمْ اِلٰہٌ وَّاحِدُٗ لَّااِلٰہَ اِلاَّھُوَ الرَّحّْمٰنُ الرَّحِیْم اِنَّ رَحْمَتَ ﷲِ قَرِیْبٌ مِّنَ الْمُحْسِنِیْنَ وَمَآاَرْسَلْنٰکَ اِلَّا رَحْمَۃَ الِّلْعٰلَمِیْن٭ مَاکَانَ مُحَمَّدٌ اَبآاَحَدٍمِّنْ رِّجَالِکُمْ وَلٰکِنْ رَّسُولَ اﷲِ وَخَاتَمَ النَّبِیّیْنَ٭ وَکَانَ اﷲ ُبِکُلِّ شًیْئٍ عَلِیْماً٭ اِنَّ اﷲ َوَمَلٰٓئِکَتَہٗ یُصَلُّوْنَ عَلَی النَّبِیِّ٭ یَااُیُّھَاالَّذِیْنَ اٰمَنُوصَلُّوْعَلَیْہِ وَسَلِّمُوْ تَسْلِیْماً)پھر درود شریف پڑھے۔ صَلَّی اﷲ عَلَی النَّبِیِّ اْلاُمِّیِّ وَاٰلِہ صَلِّی اﷲ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ صَلَاۃً وَّ سَلَامً عَلَیْکَ یَا رَسُولَ اﷲُ  ﷺ ۔اَلَا انَّ اَوْلِیَائَ اللّٰہِ لَا خَوْفٌ عَلَیْھِمْ وَلَا ھُمْ یَحْزَنُوْنْ۔اَلَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَکَانُوا یَتَّقُوْنْ سُبْحَانَ رَبِّکَ رَبِّی الْعِزَّتِ عَمَّا یَصِفُوْنَ وَسَلَامٌ عَلَی الْمُرْسَلِیْنْ ۔وَالْحَمْدُلِلّٰہِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنْ)

 फिर दरूद शरीफ पढ़े,

صَلَّی اﷲ عَلَی النَّبِیِّ اْلاُمِّیِّ وَاٰلِہ صَلِّی اﷲ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ صَلَاۃً وَّ سَلَامً عَلَیْکَ یَا رَسُولَ اﷲُ  ﷺ

 दुरूद शरीफ के बाद,

 (اَلَا انَّ اَوْلِیَائَ اللّٰہِ لَا خَوْفٌ عَلَیْھِمْ وَلَا ھُمْ یَحْزَنُوْنْ۔اَلَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَکَانُوا یَتَّقُوْنْ سُبْحَانَ رَبِّکَ رَبِّی الْعِزَّتِ عَمَّا یَصِفُوْنَ وَسَلَامٌ عَلَی الْمُرْسَلِیْنْ ۔وَالْحَمْدُلِلّٰہِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنْ)


  फिर इसके बाद अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में दोनों हाथों को उठा कर दुआ करे, कि या अल्लाह जो कुछ मैंने तिलावत की है इसमें जो कुछ गलतियां हुई हों इसे माफ फरमा और जो सही सही पढ़ा उसका सवाब और जो कुछ शीरनी खाना वगैरा है इसका सवाब हुज़ूर नबी रहमते आलम सरकारे मदीना सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में नजर है इसे कुबूल फरमा

 और आक़ा ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदक़ा व तुफैल तमाम अंबिया ए किराम व सहाब ए  किराम व जुमला औलिया किराम व बुज़ुर्गाने दीन रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमइन की बारगाह में  नज़र है मौला कुबूल फरमा

 तमाम मोमिनीन मर्द व औरत के अरवाह ए तैय्यबा को नज़र है मौला कुबूल फरमा, और खास कर इसका सवाब (फुलां) साहब के रूह को नज़र है मौला कुबूल फरमा

नोट :(१) फुलां की जगह पर उनका नाम लें जिस के नाम से खास कर नियाज़ या  फातिहा करनी हो,

नोट (२)  मरहूमीन के एसाले सवाब को फातिहा और बुज़ुर्गाने दीन के एसाले सवाब को नियाज़ कहते हैं,

नोट (३)  हालते नापाकी में औरत नियाज़ व फातिहा का खाना पका सकती है कोई हर्ज नहीं,

नोट (४)  मछली, अरहर दाल, नीज़ हर जायज़ चीज़ पर नियाज़ व फातिहा दुरुस्त है

नोट (५) जुमेरात, माहे मोहर्रम में मछली खाना जायज़ है नी ज़ फातिहा भी दुरुस्त है

नोट (६) (मर्द या औरत) देख देख कर भी फातिहा पर कर सकते हैं
नोट (७) कूँड़ा के लिए मिट्टी का बर्तन होना जरूरी नहीं है 
नोट (८) कूड़ा की नियाज़ हजरते इमाम जाफ़र सादिक़ व हजरते अमीरे मुआविया रजीअल्लाहु  अनहुमा के नाम खास कर करें 

 तालिब ए दुआ 

  ताज मोहम्मद क़ादरी वाहिदी   उतरौला

 मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी 

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