जवाब वज़ू में बिस्मिल्लाह पढ़ने के मुतअल्लिक़ एख्तिलाफ है बाज़ फुक़्हा ने सुन्नत लिखा है बाज़ ने मुस्तहब जैसा कि अलमगीरी जिल्द अव्वल किताबुत्तहारत फस्ल सानी में वज़ू के इब्तिदा में बिस्मिल्लाह पढ़ने को सुन्नत लिखा है,
यूंही हुजूर सदरुश्शरिआ अलैहिर्रहमां बहारे शरीअत हिस्सा दोम सुनन ए वज़ू के बयान में तहरीर फरमाते हैं
बिस्मिल्लाह के शुरू करें और अगर वज़ू से पहले इस्तिंजा करे तो क़ब्ल इस्तिंजे के भी बिस्मिल्लाह कहे मगर पाखाना में जाने या बदन खोलने से पहले कहे की नजासत की जगह और बाद सत्र खोलने के ज़बान से ज़िक्रे इलाही मना है,
साहिब ए शरह वक़ाया किताबुत्तहारत में वज़ू की सुन्नत बयान करते हुए तहरीर फरमाते हैं कि
وتسمیۃ اللہ تعالی ابتداء والسواک
और शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना और मिस्वाक करना,
साहिब ए क़ुदूरी किताबुत्तहारत में वज़ू की सुन्नत बयान करते हुए तहरीर फरमाते हैं
وتسمیۃ اللہ تعالی فی ابتداء الوضوء
और वज़ू के शुरू में बिस्मिल्लाह पढ़ना सुन्नत है,
साहिब ए हिदाया अल्लामा अबुल हसन अली बिन अबी बकर मुरगीनानी हन्फी अलैहिर्रहमां फरमाते हैं
قال وتسمية الله تعالى في ابتداءالوضوء لقوله عليه السلام.لاوضو لمن لم يسم والمراد به نفي الفضيلة،والاصح انھامستحبة وان سماھا فی الکتاب سنة ويسمى قبل الاستنجاء وبعده ھوالصحيح
फरमाया और इब्तिदाए वज़ू में अल्लाह का नाम लेना सुन्नत है इस लिए कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है उसका वज़ू नहीं जिस ने अल्लाह का नाम नहीं लिया इस से मुराद अफज़लियत की नफी है और असह यह है कि तस्मिया मुस्तहब है, अगर्चे साहिब ए क़ुदूरी ने किताबे क़ुदूरी में इस को सुन्नत कहा है और तस्मिया इस्तिंजा से पहले भी पढ़े और उस के बाद यही सही है,
(الهداية في شرح بداية المبتدي، المجلد الأول کتاب الطہارت صفحہ ۲۵)
सरकारे आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू फतावा रज़विया जिल्द १ सफा २९३ पर तहरीर फरमाते हैं कि
हमारे मज़हब में बिस्मिल्लाह से वज़ू की इब्तिदा सिर्फ सुन्नत है वाजिब नहीं अगर्चे इमाम इब्ने अलहमाम का खयाल वजूब की तरफ गया,
और इसी जिल्द के सफा २९६ पर तहरीर फरमाते हैं कि, मुझे तो उस पर तअज्जुब है जिस ने सिर्फ इस हदीस से वज़ू में तस्मिया के मसनून होने पर इस्तिदलाल किया (इस से मुराद हज़रत अनस रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू की यह हदीस है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, क्या तुम में से किसी के पास कुछ पानी है ? फिर दस्ते मुबारक बर्तन में रखा और फरमाया अल्लाह के नाम से वज़ू करो, मैं ने देखा कि हुज़ूर की उंगलियों के दरमियान से पानी निकलने लगा यहां तक कि सब लोगों ने वज़ू कर लिया और यह सत्तर (७०) के क़रीब थे, इसे निसाई, इब्न खुज़ैमा और बैहक़ी ने रिवायत किया और बैहक़ी ने कहा, यह तस्मिया में सब से सहीह हदीस है, और नोवी ने कहा इस की सनद जैय्यद है)
اقول: وضعف دلالتہ علی استنان التسمیۃ لکل وضوء ظاھر فالظاھر انہ ھھنا لاستجلاب البرکۃ فی الماء القلیل اقول
हर वज़ू के लिए तस्मिया के मसनून होने पर इस हदीस की दलालत का कमज़ोर होना वाज़ेह है इस लिए कि ज़ाहिर यह है कि यहां पर बिस्मिल्लाह थोड़े पानी में बरकत हासिल करने के लिए है
فی الحلیہ وکذلک غایۃ مایفیدہ الاستدلال الماضی بقولہ صلی اللّٰہ تعالٰی علیہ وسلم ولا وضوءلمن لم یذکر اسم اللّٰہ علیہ الاستحباب فانہ کما یثبت نفی الفضیلۃ والکمال بترک السنۃ یثبت بترک المستحب فی الجملۃ فیترجح بھذا البحث القول بالاستحباب
आगे हुलिया में फरमाया इसी तरह हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इरशाद उस का वज़ू नहीं जिस ने वज़ू पर खुदा का नाम ना ज़िक्र किया, से साबिक़ा जो इस्तिदलाल है इस से ज़्यादा से ज़्यादा इस्तहबाब मुस्तफाद होता है इस लिए की कामिल व अफज़ल वज़ू होने की नफी जैसे तर्क सुन्नत से साबित होती है फील जुमला तर्क मुस्तहब से भी साबित होती है तो इस बहस से उस के इस्तहबाब ही का क़ौल तरजीह पाता है,
खुलासा कलाम यह है की इस बारे में उलमा ए किराम का एख्तिलाफ है मज़ीद तफसील के लिए फतावा रज़विया मज़कूरा सफा का मुतअला करें,
والله تعالی اعلم بالصواب
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मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)
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