क़ब्रिस्तान में जानवर को चराना मैच खेलना कैसा है?

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क़ब्रिस्तान में जानवर को चराना मैच खेलना कैसा है?

 सवाल: अहले इल्म हज़रात की बारगाह में चंद सवाल अर्ज़ है कि एक बहुत पुराना क़ब्रिस्तान है जिसमें आज भी तदफीन की जाती है लेकिन कुछ मुसलमान जिनके घर क़ब्रिस्तान से जुड़े हुए हैं वह लोग अपने पालतू जानवर बकरा बकरी कुत्ता वगैरह उसी क़ब्रिस्तान में छोड़ देते हैं, जिसकी वजह से वह जानवर क़ब्रों पर चढ़ते हैं और वहां की घास और क़ब्रों पर डाले फूलों को भी खा जाते हैं और कुछ लोग अक़ीक़ा के जानवर की खाल भी उसी कब्रिस्तान में दफन करते हैं और उन्हीं घर के बच्चे वहां मैच भी खेलते हैं उलमाए किराम से गुज़ारिश है कि इन सवालात पर हुक्में शरअ क्या है बयान फरमाएं नवाज़िश होगी?

 साईल: मोहम्मद शारीक़ क़ादरी (दमोह एमपी)



 जवाब
 क़ब्रिस्तान में जानवरों का चराना और लड़कों का मैच खेलना हराम है इससे क़ुबूर ए मुसलिमीन की बे हुरमती है और मज़हब की खुली हुई तौहीन के साथ मज़हबी उमूर मे दस्त अंदाज़ी है मुर्दों को तकलीफ देना उनकी तौहीन व बेहुरमती करना हराम व नाजायज़ है

 यह सब काम उसके हो सकते हैं जिसके दिल में ना इस्लाम की क़द्र है ना मुसलमानों की इज़्ज़त ना खुदा का खौफ और ना ही मौत की हैबत
العیاذ باللہ

 हदीस शरीफ में है 
 لان أمشى على جمرة اوسيف احب إلى من أن امشي على قبر

 यानी अंगारा या तलवार पर चलना मैं ज़्यादा पसंद करता हूं इससे की किसी मुसलमान की क़ब्र पर चलूं
 (इब्ने माजा बहवाला फतावा  रज़विया क़दीम जिल्द ४ सफा १०९)

 यूं ही मुसलमान को एज़ादेना ज़िन्दा हो या मुर्दा हर तरह हराम है चुनांचे दूसरी हदीस शरीफ में है
 ( قال صلى الله عليه وسلم انزل من هذا القبر لا توذى صاحب القبر ولا يوذيك "" وفي حديث عبدالله بن مسعود رضى الله تعالى عنه انى اكره أذى المسلم فى مماته كما اكره اذاه فى حيات)
 (फतावा  रज़विया जिल्द शशुम सफा ४९१)

 लिहाज़ा अगर क़ब्रिस्तान की घास सूख गई है तो उसे काट कर जानवर वगैरा के लिए ले जा सकते हैं मगर हरी घास काटना उसमें जानवरों को चराना और खूंटा गाड़ना लड़कों का क्रिकेट मैच खेलना यह सब हराम है इसलिए उस आबादी के तमाम मुसलमानों पर लाज़िम है कि उसको इस फेले मज़मूम से रोकें और अगर वह उससे बाज़ ना आएं तो उनका मुकम्मल तौर से समाजी बाईकाट करें खुदा ए ताला का इरशाद है

 وأما ينسينك الشيطان فلاتقعد بعد الذكرى مع القوم الظالمين

(पारा ७ सूरतुल अनआम आयत ६५)

 अक़ीक़ा के खाल को दफन करना दुरुस्त नहीं है यह माल को ज़ाए करना है और माल का ज़ाए दुरुस्त नहीं है इससे बचें हां अगर ना बिकता हो तो दफन करने में हर्ज नहीं मगर कब्रिस्तान में दफन ना की जाए कि सढ़ने पर बदबू फैलेगी जिससे जायरीन को तकलीफ पहुंचेगी

      والله اعلم بالصواب

 अज़ क़लम
 मोहम्मद रज़ा अमजदी



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