जो इमाम बद कारी करे उसके पीछे नमाज़ पढ़ना कैसा है?

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जो इमाम बद कारी करे उसके पीछे नमाज़ पढ़ना कैसा है?

 सवाल  क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में की जो हाफिज़ या मौलवी शादी शुदा होते हुए गैर औरत से नाजायज़ तअल्लुक़ रखे नीज़ उसकी बहन शादी शुदा होते हुए गैर मर्दों से नाजायज़ तअल्लुक़ रखे और वह उसकी हरकतों पर मुतला होते हुए उसको मना ना करे तो उसके पीछे नमाज़े तरावीह व दीगर नमाज़ पढ़ना जायज़ है या नहीं ? शरीअते मुतह्हरा की रौशनी में जवाब देकर इंदल्लाह माजूर व इंदन्नास मशकूर हो

 साईल मौलाना अब्दुस्सलाम हुसैन आबाद

 जवाब अगर साईल के सवाल में सदाक़त है तो ऐसा हाफिज़  या मौलवी गुनाहे कबीरा का मुर्तकिब, फासीके़ मुअल्लिन और मलऊन है, अगर इस्लामी हुकूमत होती तो ऐसे शख्स को सख्त सजा दी जाती क्योंकि यह बे हयाई का काम है
 इरशाद ए रब्बानी है 
 اِنَّ اللّٰہَ یَاْمُرُ بِالْعَدْلِ وَالْاِحْسَانِ وَاِیْتَآءِ ذِی الْقُرْبٰی وَیَنْہٰی عَنِ الْفَحْشَآئِ وَالْمُنْکَرِ وَالْبَغْیِ یَعِظُکُمْ لَعَلَّکُمْ تَذَکَّرُوْنَ
 बेशक अल्लाह हुकुम फरमाता है इंसाफ और नेकी और रिश्तेदारों के देने का और मना फरमाता है बे हयाई और बुरी बात और सरकशी से तुम्हें नसीहत फरमाता है कि तुम ध्यान करो, (कंज़ुल ईमान सुरह नहल आयत नंबर ९०)

 और एक दूसरे मक़ाम पर फरमाता है 
 وَلَا تَقْرَبُوا الْفَوَاحِشَ مَا ظَہَرَ مِنْہَا وَمَا بَطَنَ وَلَا تَقْتُلُوا النَّفْسَ الَّتِیْ حَرَّمَ اللّٰہُ اِلَّا بِالْحَقِّ ذٰ لِکُمْ وَصّٰکُمْ بِہٖ لَعَلَّکُمْ تَعْقِلُوْنَ
और बे हयाईयों के पास ना जाओ जो उनमें खुली हैं और जो छुपी और जिस जान की अल्लाह ने हुरमत रखी उसे नाहक़ ना मारो यह तुम्हें हुक्म फरमया है कि तुम्हें अक़्ल हो,
 (कंज़ुल इमान सुरह  इनआम आदत नंबर १५१)

 नीज़ फरमाता है 
 وَلَا تَقْرَبُوا الزِّنٰٓی اِنَّہٗ کَانَ فَاحِشَۃً وَسَآئَ سَبِیْلًا
 और बद कारी के पास ना जाओ बेशक वह बे हयाई है और बहुत ही बुरी राह,

 (कंज़ुल ईमान सुरह  असरा आयत नंबर ३२)

 यूंही हाफिज़ साहब की बहन भी गुनाहे कबीरा की मुर्तकिब हुई साथ ही हाफिज़ साहब भी इसलिए कि जब उन्हें मालूम है कि मेरी बहन बद कारी करती है तो उनको चाहिए कि अपनी बहन को इस फेल क़बीह से रोकें
 इरशाद ए रब्बानी है 
 یٰٓاَیُّہَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا قُوْٓا اَنْفُسَکُمْ وَاَہْلِیْکُمْ نَارًا وَّقُوْدُہَا النَّاسُ وَالْحِجَارَۃُ عَلَیْہَا مَلٰٓئِکَۃٌ غِلَاظٌ شِدَادٌ لَّا یَعْصُوْنَ اللّٰہَ مَآ اَمَرَہُمْ وَیَفْعَلُوْنَ مَا یُؤْمَرُوْنَ
 ऐ ईमान वालों अपनी जानों और अपने घर वालों को आग से बचाओ जिसके इंधन आदमी और पत्थर हैं इस पर सख्त कर्रे (ताक़तवर) फरिश्ते मुक़र्रर हैं जो अल्लाह का हुक्म नहीं टालते और जो उन्हें हुक्म हो वही करते हैं,

 (سورۃ نمبر التحریم آیت نمبر ۶)

 सुरते मसउला में हाफिज़ (मौलवी) साहब गुनाहे कबीरा के मुर्तकिब व फासिक़ मुअल्लिन हुए और फासिक़ मुअल्लिन को इमाम बनाना नाजायज़ और उनकी इक़्तिदा में नमाज़ पढ़ना मकरुहे तहरीमी वाजिबुल एयादा यानी दोहराना वाजिब है ख्वाह नमाज़ तरावीह हो या कोई और नमाज़
 लिहाज़ा हाफिज़ साहब को चाहिए कि खुद बद कारी व अय्याशी से दूर रहें और अपनी बहन को भी इस फेल क़बीह से दूर रखें और सच्चे दिल से एलानिया तौबा करें,
 इरशाद ए रब्बानी है 
 وَالَّذِیْنَ اِذَا فَعَلُوْا فَاحِشَۃً اَوْ ظَلَمُوْآ اَنْفُسَہُمْ ذَکَرُوا اللّٰہَ فَاسْتَغْفَرُوْا لِذُنُوْبِہِمْ وَمَنْ یَّغْفِرُ الذُّنُوْبَ اِلَّا اللّٰہُ  وَلَمْ یُصِرُّوْا عَلٰی مَا فَعَلُوْا وَہُمْ یَعْلَمُوْنَ
 और वह कि जब कोई  बे हयाई या अपनी जानों पर ज़ुल्म करें अल्लाह को याद कर के अपने गुनाहों की माफी चाहे और गुनाह कौन बख्शे सिवाए अल्लाह के, और अपने किए पर जान बूझ कर अड़ ना जाएं (कंज़ुल ईमान सूरह  आले इमरान आयत नंबर १३५)

 बाद तौबा कारे खैर करें कि आमाले सालिहा कुबूले तौबा में मआविन होते हैं जैसा कि कुरान शरीफ में है,

 اِلَّا مَنْ تَابَ وَ اٰمَنَ وَ عَمِلَ عَمَلًا صَالِحًا فَاُولٰٓئِکَ یُبَدِّلُ اللّٰہُ سَیِّاٰتِہِمْ حَسَنٰتٍ ٭ وَ کَانَ  اللّٰہُ  غَفُوْرًا  رَّحِیْمًا
 मगर जो तौबा करे और ईमान लाए और अच्छा काम करे तो ऐसों की बुराईयों को अल्लाह भलाईयों से बदल देगा और अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है,

 (कंज़ुल इमान सूरह  फुरक़ान ७०)

 बादे तौबा व कारे खैर उनकी इक़्तिदा में नमाज़ पढ़ सकते हैं जबकि और कोई वजह ना हो, और अगर तौबा ना करें तो उनका समाजि बाई काट कर दिया जाए*
 जैसा कि इरशाद ए रब्बानी है 
 وَ اِمَّا یُنْسِیَنَّکَ الشَّیْطٰنُ  فَلَا تَقْعُدْ بَعْدَ  الذِّکْرٰی  مَعَ الْقَوْمِ  الظّٰلِمِیْنَ
 और जो कहें तुझे शैतान भुलादे तो याद आए पर ज़ालिमों के पास ना बैठ,

(कंज़ुल ईमान सूरह इनआम ६८)

नोट  सवाल में हाफिज़ साहब और उनकी बहन पर नाजायज़ तअल्लुक़ का ज़िक्र है अगर नाजायज़ तअल्लुक़ से मुराद लोगों से मिलना जुलना, बोस किनार करना है तो मुद्दई पर लाज़िम है कि दो मर्द बतौरे गवाह या एक मर्द और दो औरतें पेश करे जिनकी गवाही मोतबर हो और उन्हों ने इस फेल को अपनी आंखों से देखा हो, और अगर नाजायज़ से मुराद ज़िना है तो साईल पर लाज़िम है चार मर्द बतौरे गवाह पेश करे जिन्होंने इस तरह देखा हो जैसे सुर्म दानी में सलाई, या वह हाफिज़ साहब और उनकी बहन खुद इक़रार करें तो उनके लिए हुक्मे शरअ यह है कि उन दोनों को संगसार किया जाए, यानी पत्थर से मार मार कर हलाक कर दिया जाए, चूंयोंकि हमारे हिंदुस्तान में इस्लामी हुकूमत नहीं है इसलिए वही तौबा वगैरा काफी होगा जो ऊपर मज़कूर है, और अगर मुद्दई चार गवाह ना पेश कर सके तो खुद फासिक़े मुअल्लिन व मरदुदुश्शहादा है*
 जैसा कि अरशद रब्बानी है 
 وَ الَّذِیْنَ یَرْمُوْنَ الْمُحْصَنٰتِ ثُمَّ لَمْ یَاْتُوْا بِاَرْبَعَۃِ  شُہَدَآئَ فَاجْلِدُوْہُمْ ثَمٰنِیْنَ جَلْدَۃً  وَّ لَا تَقْبَلُوْا لَہُمْ شَہَادَۃً  اَبَدًا ٭ وَ اُولٰٓئِکَ ہُمُ  الْفٰسِقُوْنَ ٭ اِلَّا الَّذِیْنَ تَابُوْا مِنْ بَعْدِ ذٰلِکَ وَ اَصْلَحُوْا  فَاِنَّ  اللّٰہَ  غَفُوْرٌ  رَّحِیْمٌ
 और जो पारसा औरतों को ऐब लगाएं फिर चार गवाह मुआएना के ना लाएं तो उन्हें उसी कोड़े लगाओ और उनकी गवाही कभी ना मानो और वही फासिक़ हैं, मगर जो उसके बाद तौबा कर लें और संवर जाएं तो बेशक अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है

 (कंज़ुल ईमान सूरह नूर ४/५)

 नीज़ फरमाता है 

 لَوْ لَا جَآئُ وْا عَلَیْہِ  بِاَرْبَعَۃِ شُہَدَآئَ ٭ فَاِذْ لَمْ یَاْتُوْا بِالشُّہَدَآئِ  فَاُو لٰٓئِکَ عِنْدَ  اللّٰہِ   ہُمُ   الْکٰذِبُوْنَ
 उस पर चार गवाह क्यों ना लाए तो जब गवाह ना लाए तो वही अल्लाह के नज़दीक झूठे हैं

 (कंज़ुल ईमान सूरह नूर १३)

 क्योंकि इस्लामी हुकूमत नहीं है इसलिए मुद्दई पर लाज़िम है कि एलानिया तौबा करे हाफिज़ साहब से माफी मागे और दोबारा इस तरह तोहमत ना लगाने का अहद करे क्योंकि किसी पर तोहमत लगाना भी गुनाहे कबीरा है, और दुनिया व आखिरत में दर्दनाक आज़ाब है,*
 जैसा कि इरशाद ए रब्बानी है 

 اِنَّ الَّذِیْنَ یُحِبُّوْنَ اَنْ تَشِیْعَ الْفَاحِشَۃُ فِی الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَہُمْ عَذَابٌ اَلِیْمٌ ٭ فِی الدُّنْیَا وَ الْاٰخِرَۃِ ٭ وَ اللّٰہُ  یَعْلَمُ  وَ  اَنْتُمْ  لَا  تَعْلَمُوْنَ
 वह लोग जो चाहते हैं कि मुसलमानों में बुरा चर्चा भले उनके लिए दर्दनाक आज़ाब है दुनिया व आखिरत में और अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते,

 (कंज़ुल ईमान सूरह नूर आयत नंबर १९)

 लिहाज़ा मुद्दई को चाहिए कि सच्चे दिल से तोबा करे और हाफिज़ साहब से माफी मांगे, और अगर ऐसा ना करे तो मुसलमानों पर लाज़िम है कि मुद्दई का समाजि बाइ काट कर दें

والله تعالی اعلم بالصواب

 अज़ क़लम 
 फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी

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