कुर्बानी किस पर और कब वाजिब है
सवाल क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसला में की कुर्बानी और किस पर और कब वाजिब है ? क्या ज़कात की तरह साल का गुज़रना शर्त है ?साईलमोहम्मद रमज़ान अली (पंजाब)
जवाब कुर्बानी हर आज़ाद मुक़ीम मुसलमान मालिके निसाब मर्द व औरत पर वाजिब है और उसका वक़्त दसवीं ज़िलहिज्जा की फजर तूलू होने से बारहवीं के गुरूब ए आफताब तक
(माखूज़ बहारे शरीयतहिस्सा१५कुर्बानी का बयान)
ज़कात की तरह साल का गुज़रना शर्त नहीं है बल्कि कुर्बानी के लिए जो वक़्त मुकर्रर है उसके किसी हिस्सा में पाया जाना वजूब के लिए काफी है,
मसलन एक शख्स इबतिदाई वक़्त कुर्बानी में काफिर था फिर मुसलमान हो गया और अभी कुर्बानी का वक़्त बाक़ी है उस पर कुर्बानी वाजिब है जबकि दूसरे शराईत भी पाए जाएं
इसी तरह गुलाम था फिर आज़ाद हो गया उसके लिए भी यही हुक्म है
यूं हीं औव्वल वक़्त में मुसाफिर था और असना ए वक़्त में मुक़ीम हो गया उस पर भी कुर्बानी वाजिब हो गई
या फक़ीर था और वक़्त के अंदर मालदार हो गया उस पर भी कुर्बानी वाजिब है
(फतावा ए आलम गिरी जिल्द ५ सफा २९२)
(बहारे शरीयतहिस्सा१५कुर्बानी का बयान)
والله و رسولہ اعلم باالصواب
अज़ क़लम
फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)