*हज़रत सईद बिन ज़ैद*
*رضی اللہ تعالی عنہ*
*(आप भी अशरह ए मुबश्शेरह में से हैं)*
*पोस्ट नंबर 68*
आप ख़ानदाने कुरैश में से हैं। और ज़माने जाहिलियत के मश्हूर मोवहहिद (एक ख़ुदा को मानने वाला) ज़ैद बिन अम्र बिन नफील के बेटे और अमीरूल मोमिनीन हज़रत फारूक़े आज़म के बहनोई हैं। यह जब मुसलमान हुए उन को हज़रत उमर ने रस्सी से बांध कर मारा और उन के घर में जाकर उन को और अपनी बहन फातिमा बिन्ते ख़त्ताब को भी मारा मगर यह दोनों इस्तक़ामत का पहाड़ बन कर इस्लाम पर जमे रहे। जंगे बद्र में उन को और हज़रत तलहा को हुज़ूरे अकरम ने अबू सुफ्यान के काफ़िला का पता लगाने के लिए भेज दिया था। इस लिए जंगे बद्र के लड़ाई में हिस्सा न ले सके। मगर उस के बाद की तमाम लड़ाइयों में यह डट कर कुफ़्फ़ार से हमेशा जंग करते रहे। गन्दुमी रंग बहुत ही लम्बा क़द, ख़ूबसूरत और बहादुर जवान थे। तक़रीबन 50 हिजरी में सत्तर बरस की उम्र पाकर मक़ामे "अतीक्" में विसाल फरमाया और लोगों ने आप के जनाज़ा मुबारका को मदीना मुनव्वरा लाकर आप को जन्नतुल बक़ीअ में दफ़न किया। (अकमाल फ़ी अस्माइर्रिजाल स 596 व बुख़ारी जि1, स 545 मा हाशिया)
*जारी रहेगा।*
*ان شاءاللہ*
*(करामाते सहाबा हिंदी पेज 98/99)*
*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*