*हज़रत सअद बिन अबी वक़ास*
*رضی اللہ تعالی عنہ*
*(आप के करामात)*
*पोस्ट नंबर 64*
*एक ख़ारजी की हलाकत*
एक गुस्ताख़ ने हज़रत अली को गाली दी। हज़रत सअद बिन अबी वकास यह सुन कर रन्ज व गम में डूब गए और जोश में आ कर यह बद दुआ कर दी कि "या अल्लाह ! अगर यह तेरे औलिया में से एक वली को गालियाँ दे रहा है तो उस मजलिस के खत्म होने से पहले ही उस शख्स को अपना कहर व ग़ज़ब दिखा दे।"
आप की ज़बाने अक्दस से इस दुआ का निकलना था कि उस
मर्दूद का घोड़ा बिदक गया और वह पत्थरों के ढेर में मुंह के बल गिर पड़ा और उस का सर टुकड़े टुकड़े हो गया। जिस से वह हलाक हो गया। (हुज्जतुल्लाह अललआलमीन जि 2, स 866 बहावाला हाकिम) तबसेराः हज़रत सअद बिन अबी वकास की ऊपर ब्यान की गई इन पांच करामतों से हम को दो सबक मिलते हैं।
पहलाः खुदा के प्यारे अंबिया व सिद्दीकीन और शुहदा-ए-किराम व सालेहीन की शान में अदना दर्जे की बद दुआएं बहुत ही खतरनाक और हलाकत वाली हैं। उन बुजुर्गों की बद दुआ और फटकार और उन की शान में गुस्ताखी और बे अदबी कहरे इलाही का सिगनल है। उन खुदा के मुकद्दस और महबूब बन्दों की ज़रा सी भी वे अदवी को खुदावन्दे कुद्दूस की शाने कहहारी व जब्बारी मआफ् नहीं फमाती। बल्कि ज़रूर उन गुस्ताख़ों को दोनों जहाँ के अज़ाब में गिरफ्तार कर देती है। दुसराः यह कि अल्लाह तआला के प्यारे बन्दों, उलमा ओलिया
और तमाम सालेहीन की बद दुआएं बहुत ही खतरनाक और हलाकत आफ्रीं बलाएं हैं। उन बुजुर्गों की बद दुआ और फटकार वह तलवार है जिस की कोई ढाल नहीं और यह तबाही व बरबादी का वह ज़हरीला तीर है जिस का निशाना कभी गलती नहीं करता। इसलिए हर मुसलमान पर ज़रूरी है कि ज़िन्दगी भर हर कदम पर यह ध्यान रखे कि कभी भी अल्लाह तआला के नेक बन्दों की शान में ज़र्रा भर भी बे अदबी न होने पाए और बुजुर्गाने दीन में से किसी की भी बद दुआ न ले बल्कि हमेशा इस कोशिश में लगा रहे कि खुदा के नेक बन्दों की दुआएं मिलती रहें। क्योंकि नेक बन्दों की बद दुआएं बरबादी का खौफनाक सिगनल और उन की दुआएं आबादी का मीठा फल हैं।
*जारी रहेगा।*
*ان شاءاللہ*
*(करामाते सहाबा हिंदी पेज 94/95)*
*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*