*हज़रत सईद बिन ज़ैद*
*رضی اللہ تعالی عنہ*
*(आप की करामत)*
*पोस्ट नंबर 69*
*कुवां क़ब्र बन गई*
एक औरत जिस का नाम अरवी बिन्ते अवैस था। उन के ऊपर हाकिमे मदीना मरवान बिन हकम की कचहरी में यह दावा दायर कर दिया कि उन्हों ने मेरी एक ज़मीन ले ली है। मरवान ने जब उन से जवाब तलब किया तो आप ने फरमाया कि मैं ने जब रसूलुल्लाह को यह फ़रमाते हुए सुना है कि जो शख़्स किसी की बालिश्त बराबर भी ज़मीन ले लेगा तो कक़्यामत के दिन उस को सातों ज़मीनों का तौक पहनाया जाए गा तो इस हदीस को सुन लेने के बाद भला यह क्यों कर मुमकिन है कि मैं किसी की ज़मीन ले लूँगा। आप का यह जवाब सुन कर मरवान ने कहा! ऐ औरत ! अब मैं तुझ से कोई गवाह तलब नहीं करूँगा। जा तू उस ज़मीन को ले ले। हज़रत सईद बिन ज़ैद ने यह फैसला सुन कर यह दुआ मांगी। ऐ अल्लाह! अगर यह औरत झूठी है तो अंधी हो जाए और उसी ज़मीन पर मरे। चुनान्चे उस के बाद यह औरत अंधी हो गई। मुहम्मद बिन अम्र का बयान है कि मैं ने उस औरत को देखा है कि वह अंधी हो गई थी और दीवारें पकड़ कर इधर उधर चलती फिरती थी। यहाँ तक कि वह एक दिन उसी ज़मीन के एक कुवें में गिर कर मर गई और किसी ने उस को निकाला भी नहीं। इस लिए वही कुवाँ उस की क़ब्र बन गई और एक अल्लाह वाले की दुआ की मक़बूलियत का जलवा नज़र आ गया।
*(मिश्कात जिल्द नं० 2, सफा नं० 546 व हुज्जतुल्लाह जिल्द नं० 2, सफा नं० 866 बहवाला बुख़ारी व मुस्लिम)*
*तबसेरा*
अल्लाह वालों की यह करामत है कि उन की दुआएं बहुत ज़्यादा और बहुत जल्द मकबूल हुआ करती हैं। और उन की ज़बान से निकले अलफाज़ का नतीजा ख़ुदा वन्दे करीम ज़रूर आलमे वजूद में लाता है। सच है।
जो जज़ब के आलम में निकले लबे मोमिन से
वह बात हक़ीक़त में तक़दीरे इलाही है
*जारी रहेगा।*
*ان شاءاللہ*
*(करामाते सहाबा हिंदी पेज 99/100)*
*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*