*हज़रत सअद बिन अबी वक़ास*
*رضی اللہ تعالی عنہ*
*(आप के (करामात)*
*पोस्ट नंबर 60*
*बद नसीब बूढ़ा*
हज़रत जाबिर से रिवायत है कि कूफ़ा के कुछ लोग हज़रत सअद बिन अबी वक़ास की शिकायात लेकर अमीरूल मोमिनीन हज़रत फारूक़े आज़म के दरबारे ख़िलाफ़त में मदीना मुनव्वरा में पहुँचे हज़रत अमीरूल मोमिनीन ने उन शिकायात की तहक़ीक़ात के लिए चन्द भरोसेमन्द सहाबियों को हज़रत सअद बिन अबी वक़ास के पास कूफ़ा भेजा और यह हुक्म फ़रमाया कि कूफ़ा शहर की हर मस्जिद के नमाज़ियों से नमाज़ के बाद यह पूछा जाए कि हज़रत सअद बिन अबी वक़ास कैसे आदमी हैं? चुनान्चे तहक़ीक़ात करने वालों की इस जमाअत ने जिन जिन मस्जिदों में नमाज़ियों को क़सम दे कर हज़रत सअद बिन अबी वक़ास के बारे में दरयाफ़्त किया तो तमाम मस्जिदों के नमाज़ियों ने उन के बारे में अच्छा कहा और तअरीफ की। मगर एक मस्जिद में सिर्फ एक आदमी जिस का नाम "अबू सअदा" था। उस ने हज़रत सअद बिन अबी वक़ास की तीन शिकायात पेश कीं और कहा
لا يقسم بالسوية ولا يسير بالسرية ولا يعدل في القضية
यानी ये माले ग़नीमत बराबरी के
साथ तक़सीम नहीं करते और खुद लश्करों के साथ जिहाद में नहीं जाते और मुक़द्दमात के फैसलों में इन्साफ़ नहीं करते) यह सुन कर हज़रत सअद बिन अबी वकास ने फौरन ही यह दुआ मांगी! ऐ अल्लाह! अगर यह शख़्स झूठा है तो उस की उम्र लम्बी कर दे और उस की ग़रीबी को बढ़ा दे। उस को फितनों में मुब्तला करदे। अब्दुल मलिक बिन उमेर ताबई का बयान है कि इस दुआ का मैंने यह असर देखा कि "अबू सअदा" इस क़दर बूढ़ा हो चुका था कि बूढ़ापे की वजह से उस की दोनों भवें उस की दोनों आँखों पर लटक पड़ी थीं और वह दर बदर भीक मांग मांग कर बहुत फ़क़ीरी और मुहताजी की ज़िन्दगी बसर करता था। और इस बुढ़ापे में भी वह राह चलती हुई जवान लड़कियों को छेड़ता था। और उन के बदन में चुटकियाँ भरता रहता था और जब कोई उस से उस का हाल पुछता था तो वह कहा करता था कि मैं क्या बताऊँ? मैं एक बूढ़ा हूँ जो फितनों में मुब्तेला हूँ क्योंकि मुझ को हज़रत सअद बिन अबी वक़ास की बद दुआ लग गई है। (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जिल्द-2, सफा-863 बहवाला बुख़ारी व मुस्लिम व बेहक़ी)
*जारी रहेगा।*
*ان شاءاللہ*
*(करामाते सहाबा हिंदी पेज 91/92)*
*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*