*हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़*
*رضی اللہ تعالی عنہ*
*(आप के करामात)*
*पोस्ट नंबर 57*
यूँ तो आप की मुक़द्दस ज़िन्दगी पुरी करामत ही करामत थी मगर हज़रत उस्मान ग़नी की ख़िलाफत का मस्ला आप ने जिस तरह तैय फ़रमाया वह आप की बातिनी फरासत (समझ) और ख़ुदा दाद करामत का एक बड़ा ही अनमोल नमूना है।
*हज़रत उस्मान की खिलाफत*
अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर ने वफ़ात के वक़्त छः जन्नती सहाबा हज़रत उस्मान, हज़रत अली, हज़रत सअद बिन अबी वक़ास, हज़रत जुबैर बिन अव्वाम हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ और हज़रत तलहा बिन उबैदुल्लाह का नाम लेकर यह वसियत फरमाई कि मेरे बाद इन छः शख्सों में से जिस पर इत्तेफ़ाक़ हो जाए उस को ख़लीफा मुक़र्रर किया जाए और तीन दिन के अन्दर ख़िलाफत का मस्ला ज़रूर तैय कर दिया जाए और इन तीन दिनों तक हज़रत सुहैब मस्जिदे नबवी में इमामत करते रहेंगे। इस वसियत के मुताबिक यह छः हज़रात एक मकान में जमा हो कर दो दिन तक राय करते रहे। मगर यह मजलिसे शूरा किसी नतीजा पर न पहुँची। तीसरे दिन हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ ने फ़रमाया कि तुम लोग जानते हो कि आज ख़लीफा मुक़र्रर करने का तीसरा दिन है। इस लिए तुम लोग आज अपने में से किसी को ख़लीफा चुन लो। हाज़िरीन ने कहा कि ऐ अब्दुर्रहमान ! हम लोग तो इस मस्ला को हल नहीं कर सकते। अगर आप के ज़हन में कोई राय हो तो पेश कीजीए। आप ने फरमाया कि छः आदमियों की यह जमाअत क़ुरबानी से काम ले और तीन आदमियों के हक़ में अपने अपने हक़ को छोड़ दे। यह सुन कर हज़रत जुबैर ने ऐलान फ़रमाया कि मैं हज़रत अली के हक में अपने हक से हट जाता हूँ। फ़िर हज़रत तलहा हज़रत उस्मान के हक़ में अपने हक को छोड़ दिया। आख़िर में हज़रत सअद ने फ़रमाया कि मैं ने हज़रत अब्दुर्रहमान को अपना हक़ दे दिया। अब हज़रत अब्दुर्रहमान ने फरमाया कि ऐ उस्मान व अली! में तुम दोनों को यक़ीन दिलाता हूँ कि मैं हरगिज़ हरगिज़ ख़लीफा नहीं बनूँगा। अब तुम दो ही उम्मीदवार रह गए हो। इस लिए तुम दोनों ख़लीफा के चुनाव का हक़ मुझे दे दो। हज़रत उस्मान व हज़रत अली ने ख़लीफा का चुनावी मस्ला ख़ुशी ख़ुशी हज़रत अब्दुर्रहमान के सुपुर्द कर दिया। इस बात चीत के मुकम्मल हो जाने के बाद हज़रत अब्दुर्रहमान मकान से बाहर निकल आए और पुरे शहरे मदीना में छुपके छुपके चक्कर लगा करके उन दोनों उमीदवारों के बारे में आम लोगों की राय मालूम करते रहे। फ़िर दोनों उम्मीदवारों से अलग अलग तन्हाई में यह वादा ले लिया कि अगर मैं तुम को ख़लीफा बना दूँ तो तुम इन्साफ़ करोगे। और अगर दूसरे को ख़लीफा मुक़र्रर कर दूँ तो तुम उस की फरमां बरदारी करोगे। जब दोनों उम्मीदवारों से यह वादा ले लिया तो फिर आप ने मस्जिदे नबवी में आकर यह ऐलान फ़रमाया कि ऐ लोगो! मैं ने ख़िलाफत के मआमले में ख़ुद भी काफ़ी ग़ौर व खोज़ किया और इस मामले में अन्सार व मुहाजिरीन की आम राय भी मालूम कर ली है चूँकि राए आम्मा हज़रत उस्मान के हक़ में ज़्यादा है इस लिए मैं हज़रत उस्मान को ख़लीफा चुनता हूँ। यह कह कर सब से पहले ख़ुद आप ने हज़रत उस्मान की बैअत की और आप के बाद हज़रत अली और दूसरे सब सहाबा-ए-किराम ने बेअत कर ली। इस तरह ख़िलाफत का मस्ला बेग़ैर किसी इख़्तिलाफ़ व बिखराव के तैय होगया। जो बिला शुव्हा हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ की बहुत बड़ी करामत है। (अशरए मुबश्शेरा स 231, ता 234 व बुख़ारी जिल्द नं०-1, सफा नं०- 524 मुनाक़िबे उस्मान)
*जारी रहेगा।*
*ان شاءاللہ*
*(करामाते सहाबा हिंदी पेज 87/88/89)*
*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*