*हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़*
*رضی اللہ تعالی عنہ*
*(आप भी अशरह ए मुबश्शेरह में से हैं)*
*पोस्ट नंबर 55*
हुजूरे अक़दस की विलादते मुबारका से दस साल बाद खानदाने कुरैश में आप पैदा हुए। शुरूआती तअलीम व तरबियत इसी तरह हुई जिस तरह सरदाराने कुरैश के बच्चों की हुआ करती थी। उन के इस्लाम लाने का सबब यह हुआ कि यमन के एक बुढ़े ईसाई पादरी ने उन को नबी आखिरूज़्ज़माँ के ज़हूर की ख़बर दी और यह बताया कि वह मक्का में पैदा होंगे और मदीना मुनव्वरा को हिजरत करेंगे। जब यह यमन से लौट कर मक्का मुकर्रमा आए तो अबू बकर सिद्दीक़ ने उन को इस्लाम लाने को कहा। चुनान्चे एक दिन उन्हों ने बारगाहे रिसालत में हाज़िर होकर इस्लाम क़बूल कर लिया। जब कि आप से पहले थोड़े ही आदमी इस्लाम लाए थे। चूंकि मुसलमान होते ही आप के घर वालों ने आप पर ज़ुल्म व सितम का पहाड़ तोड़ना शुरू कर दिया। इस लिए हिजरत करके हबशा चले गए। फिर हबशा से मक्का मुकर्रमा वापस आए और अपना सारा माल व सामान छोड़ कर बिल्कुल ख़ाली हाथ हिजरत करके मदीना मुनव्वरा चले गए। मदीना मुनव्वरा पहुँच कर आप ने बाज़ार का रूख़ किया। चन्द ही दिनों में आप की तिजारत में इस क़दर ख़ैरो बरकत हुई कि आप का शुमार दौलत मन्दों में होने लगा और आप ने क़बीलए अन्सार की एक ख़ातून से शादी भी कर ली।
तमाम इस्लामी लड़ाइयों में आप ने जान व माल के साथ शिरकत की। जंगे उहुद में यह ऐसी जाँ बाज़ी और सर फरोशी के साथ लड़े कि उन के बदन पर इक्कईस (21) ज़ख्म लगे थे और उन के पैरों में भी एक गहरा ज़ख्म लग गया था। जिस की वजह से लंगड़ा कर चलते थे। आप की सख़ावत का यह आलम था कि एक मर्तबा आप का तिजारती काफ़िला जो सात सौ (700) ऊँटों पर मुश्तमिल था। आप ने अपना यह पूरा काफिला ऊँटों और उन पर लदे हुए सामानों के साथ ख़ुदा की राह में ख़ैरात कर दिया।
*जारी रहेगा।*
*ان شاءاللہ*
*(करामाते सहाबा हिंदी पेज 86/87)*
*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*