*हज़रत जुबैर बिन अव्वाम*
*رضی اللہ تعالی عنہ*
*(आप के करामात)*
*पोस्ट नंबर 53*
*गुज़िश्ता वाक़िआ का तबसेरा*
बुखारी शरीफ की यह हदीसे पाक हर मुसलमान दीनदार को झंझोड़ कर ख़बर दार कर रही है कि बुजुर्गाने दीन व उलमा-ए-सालहीन की छड़ी, क़लम, तलवार, तसबीह, लिबास, बरतन आदि सामानों को याद गार के तौर पर बतौर तबर्रूक अपने पास रखना हुज़ूरे अक़्दस और ख़ुलफा-ए-राशदीन की मुक़द्दस सुन्नत है। ग़ौर फरमाइए कि हज़रत जुबैर की बरछी को तबर्रूक बना कर रखने में हुज़ूरे अकरम और आप के ख़ुलफा-ए-राशदीन ने किस क़दर एहतेमाम किया और किस किस तरह इस बरछी का एज़ाज़ व इकराम किया।
बद अक़ीदा लोग जो बुजुर्गाने दीन के तबर्रुकात और उन की ज़्यारतों का मज़ाक उड़ाया करते हैं और अहले सुन्नत को तअना दिया करते हैं कि यह लोग बुजुर्गों की लाठियों, तलवारों, क़लमों का इकराम व एहतराम करते हैं। यह हदीस उन की आँखें खोल देने के लिए हिदायत की छड़ी से कम नहीं बशर्ते यह कि उन की आँखें फूट न गई हों।
*जारी रहेगा।*
*ان شاءاللہ*
*(करामाते सहाबा हिंदी पेज 84/85)*
*पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
*नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*