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*हज़रत सअद बिन अबी वक़ास*
                       *رضی اللہ تعالی عنہ*
       *(आप भी अशरह ए मुबश्शेरह में से हैं)*
                        *पोस्ट नंबर 59*              
उन की कुन्नियत अबू इस्हाक़ है और ख़ानदाने कुरैश के एक बहुत ही नामवर शख़्स हैं जो मक्का मुकर्रमा के रहने वाले हैं। यह उन खुश नसीबों में से एक हैं जिन को नबी अकरम ने जन्नत की ख़ुशख़बरी दी। यह शुरू इस्लाम ही में जब कि अभी उन की उम्र 17 बरस की थी। दामने इस्लाम में आ गए और हुज़ूर नबी अकरम के साथ साथ तमाम लड़ाईयों में हाज़िर रहे। यह ख़ुद फ़रमाया करते थे कि मैं वह पहला शख़्स हूँ जिस ने अल्लाह तआला की राह में कुफ़्फ़ार पर तीर चलाया। और हम लोगों ने हुज़ूर के साथ रह कर इस हाल में जिहाद किया कि हम लोगों के पास सिवाए बबूल के पत्तों और बबूल की फल्लियों के कोई खाने की चीज़ न थी।
*(मिश्कात जि 2, स 567)*
हुज़ूरे अक़्दस ने ख़ास तौर पर उन के लिए यह दुआ फ़रमाई। 
اللهم سدد سهمه واجب دعوته
तर्जमाः (ऐ अल्लाह उन के तीर के निशाने को दुरूस्त फ़रमा दे और उन की दुआ को क़बूल फ़रमा)
ख़िलाफते राशिदा के ज़माने में भी यह फारस और रूम के जिहादों में कमान्डर रहे। अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर ने अपने दौरे ख़िलाफत में उन को कूफ़ा का गवर्नर मुक़र्रर फ़रमाया। फिर उस उहदा से हटा दिया। और यह बराबर जिहादों में कुफ़्फ़ार से कभी सिपाही बन कर और कभी इस्लामी लश्कर के कमान्डर बन कर लड़ते रहे। जब उस्मान ग़नी अमीरूल मोमिनीन हुए तो उन्हों ने दोबारा उन को कूफ़ा का गवर्नर बना दिया। यह मदीना मुनव्वरा के क़रीब मक़ामे "अतीक्" में अपना एक घर बना कर उस में रहते थे। और 55 हिजरी में जब कि उन की उम्र शरीफ पचहत्तर (75) बरस की थी उसी मकान के अन्दर विसाल फ़रमाया। आप ने वफ़ात से पहले यह वसियत फ़रमाई थी कि मेरा ऊन का वह पुराना जुब्बा ज़रूर पहनाया जाए जिस को पहन कर मैं ने जंगे बद्र में कुफ़्फ़ार से जिहाद किया था। चुनान्चे वह जुब्बा आप के कफ़न में शामिल किया गया। लोग पुरी अक़ीदत से आप के जनाज़े को कंधों पर उठा कर मक़ामे "अतीक्" से मदीना मुनव्वरा लाए और हाकिमे मदीना मरवान बिन हकम ने आप की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और जन्नतुल बकीअ में आप की क़ब्र मुनव्वर बनाई।
"अशरए मुबश्शेरा" यअनी जन्नत की ख़ुश ख़बरी पाने वाले दस सहाबियों में से यही सब से आखिर में दुनिया से तशरीफ ले गए और उन के बाद दुनिया अशरए मुबश्शेरा के ज़ाहिरी वजूद से ख़ाली हो गई। मगर ज़माना उन की बरकात से हमेशा हमेशा फैज़ पाता रहेगा।
(अकमाल फ़ी असमाइर्रिजाल व तज़किरतुल हुफ्फाज़ जिल्द नं०1, सफा नं०-22 वगैरा)

*जारी रहेगा।*
*ان شاءاللہ*
          *(करामाते सहाबा हिंदी पेज 90/91)*

                      *पेश करदा*
*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*
*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*
       *नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*
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