मिसाल देकर वहाबी को सुन्नी से अफज़ल कहना कैसा है

0

मिसाल देकर वहाबी को सुन्नी से अफज़ल कहना कैसा है


 सवाल  क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसला में की ज़ैद एक सुन्नी आलिम ए दीन सहीहुल अक़ीदा सियासत नेतागिरी में पड़ा हुआ है खिलाफ ए शरअ कोई भी काम उससे वाक़े नहीं हुआ है हिंदुस्तान की गवर्नमेंट ने एन आर सी (N.R.C.) क़ानून नफीज़ किया है इस वक़्त जगह-जगह मुसलमान जुलूस निकाल रहे हैं लेकिन ज़ैद ने जुलूस नहीं निकाला बस इसी बात को लेकर कुछ लोग अपने आप को पक्का मुसलमान समझते हुए उन लोगों ने ज़ैद सुन्नी सहीहुल अक़़ीदा आलिम का रद्द कियारद्द करने वालों में एक बकर भी है उसने कहा ज़ैद आज इतना नीचे गिर गया कि मुसलमानों पर ज़ुल्म हो रहा है लेकिन ज़ैद खामोश है इससे अच्छे तो वहाबी अहले हदीस देवबंदी हैं क्या बकर का क़ौल दुरुस्त है या नहीं ? अगर ज़ैद बीवी वाला है तो शरीयत का क्या हुक्म उस पर नाफिज़ हो रहा है कुरान व हदीस की रौशनी में मुफस्सल जवाब इनायत फरमाएं ऐनू नवाज़िश होगी

 साईलमौलाना मोहम्मद इमरान रज़ा (पीलीभीत शरीफ)

 जवाब  सुरते मसउला में बकर पर कोई हुक्म नाफिज़ ना होगा क्योंकि बकर ने वहाबी को ज़ैद से अफज़ल नहीं बताया है बल्कि वहाबियों के इस फेल को अच्छा कहा है जो एन आर सी (N.R.C.) के मौक़ा पर उन्होंने कहा किया है
 इसकी कई मिसालें दी जा सकती हैं मुलाहिज़ा हो 
(१) > जैसे वालिदैन सुस्त और काहील बेटे को कहते हैं कुछ काम नहीं करता सिर्फ दिन भर कुत्ते की तरह घूमता रहता हैया यूं कहें तुझ से बेहतर तो कुत्ता है जो अपनी रोज़ी खुद तलाश लेता है मैं पूछता हूं क्या वालिदैन काफिर हो गए या गुनाहगार हुए ? क्योंकि उन्होंने इंसान को कुत्ते से मिसाल दिया और कुत्ते को इंसान से बेहतर बताया जब कि इंसान अफज़ल है

 जैसा कि इरशाद ए रब्बानी है 
 لَقَدْ خَلَقْنَا الْاِنْسَانَ فِی اَحْسَنِ تَقْوِیْمْ
 बेशक हमने आदमी को अच्छी सूरत पर बनाया

 (सूरह वत्तिन)

(२) > यूं ही ज़ैद जो सुन्नी कारीगर है और बकर देवबंदी है मगर बहुत ही बेहतर कारीगर है दोनों ने घर बनाया मगर बकर ने कुछ ज़्यादा ही खूबसूरत बनाया अब किसी ने बकर की तारीफ करते हुए कहा बकर ज़ैद से बहुत बेहतर है तो क्या कहने वाला काफिर हो गया या गुनाहगार ? क्योंकि देवबंदी जहन्नामी हैं और सुन्नी जहन्नामी नहीं है

 इरशाद ए रब्बानी है 
 لَا يَسْتَوِىْٓ اَصْحٰبُ النَّارِ وَاَصْحٰبُ الْجَنَّۃِ ۔اَصْحٰبُ الْجَـنَّةِ هُمُ الْفَآئِزُوْنَ
 दोज़ख वाले और जन्नत वाले बराबर नहीं जन्नत वाले ही मुराद को पहुंचे,

 (कंज़ुल ईमानसूरह हशर२०)

 (३) > हदीस शरीफ में है 
 مَنْ وَّقَرَ صَاحِبَ بِدْعَۃٍ فَقَدْ اَعَانَ عَلٰی ھَدَمِ الْاِسْلَامِ
 यानी जिसने बद मज़हब की ताज़ीम व तौक़ीर की उसने इस्लाम के ढाने पर मदद की,

 (مشکوۃ ص  باب الاعتصام ص ج۱ص ۵۶)

अहले सुन्नत का इस पर मुतफक़्क़ा फैसला है कि बद मज़हबों की ताज़ीम नाजायज़ है यूं हीं काफिर की ताज़ीम नाजायज़ हैअब अगर किसी ने अबू तालिब जो कि काफिर थे उनकी तारीफ इसलि ए की कि उन्होंने हुजूर ﷺ की पूरी ज़िंदगी मदद की है बल्कि हमारे उलमा उनकी तारीफ करते हैं तो क्या वह गुनाहे कबीरा के मुर्तकिब हो गए ?

(४) > बहुत ही कुफ्फार हैं जो नबी करीम ﷺ की शान में नातें लिखते और पढ़ते हैं हमारे उलमा उनकी तारीफ बर सर मेंबर करते हैं और उनके अशआर को पढ़ते हैं तो क्या वह गुनाहे कबीरा के मुर्तकीब हो गए ?

मैं कहता हूं किसी पर कुछ फतवा ना होगा क्योंकि यहां किसी काफिर या बद मज़हब की तारीफ नहीं हो रही है बल्कि उसकी उस फेल की तारीफ हो रही है यूं ही बकर का यह कहना कि ज़ैद से अफज़ल देवबंदी वहाबी हैं यानी वह एन आर सी (N.R.C.) के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं और ज़ैद इस मामले में खामोश है तो बकर पर कोई हुक्म ना होगा क्योंकि एन आर सी (N.R.C.) मुसलमानों के लिए है चाहे वह नाम ही का मुसलमान होतो मुसलमानों को चाहिए कि उसके खिलाफ आवाज़ उठाते यूं ही ज़ैद भी उसमें हिस्सा लेता मगर खामोशी अख्तियार किया जिसकी वजह से बकर को यह कहना पड़ा कि (इस मामला में) देवबंदी तुझ से बेहतर हैं तो इसमें कौन सी बात आ पड़ी कि बकर को काफीर या गुनाहे कबीरा का मुर्तकिब कहा जा रहा हैअल्लाह तआला समझने की तौफीक़ अता फरमाएआमीन सुम्मा आमीन या रब्बल आलमीन बजाही सैयदुल मुरसलीन ﷺ

والله و رسولہ اعلم بالصواب



 अज़ क़लम

  फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी

हिंदी ट्रांसलेट

मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
एक टिप्पणी भेजें (0)
AD Banner
AD Banner AD Banner
To Top