मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
सवाल क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस शेर के बारे में की(मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना - हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तां हमारा) आया इसका पढ़ना दुरुस्त है या नहीं ? नेज़ आपस से मुराद कौन है ? क्या सिर्फ सुन्नी ? या गैर सुन्नी भी ? अगर आपस से सिर्फ सुन्नी मुराद हैं तो हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तां हमारा का क्या मतलब ? क्या हिंद में गैर सुन्नी नहीं है ? और अगर हमारा मज़हब सबके साथ नर्म रवैया चाहता है तो फिर (दुश्मने अहमद पे शिद्दत कीजिए - मूलहिदों से क्या मोरौव्वत कीजिए) कि तालीम का क्या मतलब है
साईलमोहम्मद शायान क़ादरी दौलतपुर ग्रांट जिला गोंडा (यूपी)
जवाब यह डॉक्टर इक़बाल साहब का लिखा हुआ शेर है और इसका पढ़ना बिल्कुल दुरुस्त है'''मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना''' यानी दीन ए इस्लाम आपस में दुश्मनी का हुक्म नहीं देता बल्कि इस्लाम है ही अमन व सलामती वाला दीन क्योंकि इस्लाम का लफ्ज़ س,ل,مयानी (सलम-سَلَمَ) से निकला हैइसका लोगवी माना बचनेमहफूज़ रहनेमसालिहत और अमन व सलामती पाने और फराहम करने के हैं
इरशाद ए रब्बानी है
وَ لَا تُطِعِ الْكٰفِرِیْنَ وَ الْمُنٰفِقِیْنَ وَ دَعْ اَذٰىهُمْ وَ تَوَكَّلْ عَلَى اللّٰهِ۔وَ كَفٰى بِاللّٰهِ وَكِیْلًا
और काफिरों और मुनाफिक़ों की खुशी ना करो और उनकी एज़ा पर दरगुज़र फरमाओ और अल्लाह पर भरोसा करो और अल्लाह बस है कारसाज़
(کنز الایمان ،سورہ احزاب آیت نمبر ۴۸)
नेज़ फरमाता है
یٰٓاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْآ اِنْ جَآءَكُمْ فَاسِقٌ م بِنَبَاٍ فَتَبَیَّنُوْا اَنْ تُصِیْبُوْا قَوْمًۢا بِجَهَالَةٍ فَتُصْبِحُوْا عَلٰى مَا فَعَلْتُمْ نٰدِمِیْنَ
ऐ ईमान वालों अगर कोई फासिक़ तुम्हारे पास कोई खबर लाए तो तहक़ीक़ कर लो कि कहीं किसी कौम को बे जाने एज़ा ना दे बैठो फिर अपने किए पर पछताते रह जाओ
(کنز الایمان ،سورہ حجرات آیت نمبر ۶)
पहली आयत में अल्लाह तबारक व तआला ﷻ ने हुक्म दिया कि काफिर के एज़ा पर दर गुज़र फरमाओ और अल्लाह पर भरोसा रखो नेज़ दूसरी आयत में इरशाद फरमाया जब कोई फासिक़ खबर लाए तो पहले तहक़ीक़ कर लो कि कहीं किसी क़ौम को बे जाने एज़ा ना दे बैठोक्योंकि इस्लाम अमन व सलामती का दीन है और दीन ए इस्लाम में यह जायज़ नहीं कि किसी को ख्वाह वह मुस्लिम हो या काफिर बे जाने एज़ा पहुंचाओ और तकलीफ दो इस्लाम के मुनाफी हैचुनांचे तफसीर ए सिरातुल जिनान में है कीइस आयत से मालूम हुआ कि दीन ए इस्लाम उन कामों से रोकता है जो मुआशरती अमन की राह में रुकावट बनते हैं और वह काम करने का हुक्म देता है जिन से मुआशरा अमन व सुकून का गहवारा बनता हैजैसे मज़कूरा बाला आयत में बयान किए गए उसूल को अगर हम आज कल के दौर में पेशे नज़र रखें तो हमारा मुआशरा अमन का गहवारा बन सकता है क्योंकि हमारे यहां लड़ाई झगड़े और फसादात होते ही इसी वजह से हैं कि जब किसी को कोई इत्तेला दी जाती है तो वह उसकी तसदीक़ नहीं करता बल्कि फौरन गुस्सा में आ जाता है और वह काम कर बैठता है जिसके बाद सारी जिंदगी परेशान रहता हैइसी तरह हमारे यहां खानदानी तौर पर जो झगड़े होते हैं वह इसी नौईयत (क़िस्म) के होते हैंचाहे वह सास बहू का मामला हो या शौहर बीवी का की तसदीक़ नहीं की जाती और लड़ाईयां शुरू कर दी जाती हैं
(تفسیر صراط الجنان زیر آیت مذکورہ)
सूरह माएदा में है
مِنْ اَجْلِ ذٰلِكَ جؔ كَتَبْنَا عَلٰى بَنِیْٓ اِسْرَآءِیْلَ اَنَّهٗ مَنْ قَتَلَ نَفْسًۢا بِغَیْرِ نَفْسٍ اَوْ فَسَادٍ فِی الْاَرْضِ فَكَاَ نَّمَا قَتَلَ النَّاسَ جَمِیْعًا۔وَ مَنْ اَحْیَاهَا فَكَاَنَّمَا اَحْیَا النَّاسَ جَمِیْعًا وَ لَقَدْ جَآءَتْهُمْ رُسُلُنَا بِالْبَیِّنٰتِ ثُمَّ اِنَّ كَثِیْرًا مِّنْهُمْ بَعْدَ ذٰلِكَ فِی الْاَرْضِ لَمُسْرِفُوْنَ
इस सबब से हमने बनी इसराइल पर लिख दिया कि जिसने कोई जान कत्ल की बगैर जान के बदले या ज़मीन में फसाद किए तो गोया उसने सब लोगों को कत्ल किया और जिसने एक जान को जिला लिया उसने गोया सब लोगों को जिला लिया और बेशक उनके पास हमारे रसूल रौशन दलिलों के साथ आए फिर बेशक उन में बहुत उसके बाद ज़मीन में ज़्यादती करने वाले हैं
(کنز الایمان ،سورہ مائدہ آیت نمبر ۳۲)
इस आयत के तेहत तफसीरे सिरातुल जिनान में है कि बनी इसराइल को यह फरमाया गया और यही फरमान हमारे लिए भी है क्योंकि गुज़श्ता उम्मतों के जो अहकाम बगैर तरदीद के हम तक पहुंचे हैं वह हमारे लिए भी हैबहर हाल बनी इसराइल पर लिख दिया गया कि जिस ने बिला इजाज़त ए शरई किसी को क़त्ल किया तो गोया उसने तमाम इंसानों को क़त्ल कर दिया क्योंकि उसने अल्लाह के हक़बंदों के हक़ और हुदुदे शरीयत सबको पामाल कर दिया और जिसने किसी की ज़िंदगी बचा ली जैसे किसी को क़त्ल होने या डूबने या जलने या भूख से मरने वगैरा असबाबे हिलाक़त से बचा लिया तो उसने गोया तमाम इंसानों को बचा लिया
कुछ सतर बाद तहरीर है कि यह आयते मुबारका इस्लाम की असल तालिमात को वाज़ेह करती है कि इस्लाम किस क़दर अमन व सलामती का मज़हब है और इस्लाम की नज़र में इंसानी जान की किस क़दर अहमियत हैइससे उन लोगों को इबरत हासिल करनी चाहिए जो इस्लाम की असल तालिमात को पस पुश्त डाल कर दामन ए इस्लाम पर क़त्ल व गारत गरी के हामी होने का बदनुम धब्बा लगाते हैं और उन लोगों को भी नसीहत हासिल करनी चाहिए जो मुसलमान कह लाकर बे क़ुसूर लोगों को बम धमाकों और खुद कश हमलों के ज़रिए मौत की नींद सुला कर यह गुमान करते हैं कि उन्होंने इस्लाम की बहुत बड़ी खिदमत सर अंजाम दे दी
हदीस शरीफ में है
عَنْ أَبِي سَعِيدٍ الْخُدْرِيِّ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ، عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، قَالَ: إِيَّاكُمْ وَالْجُلُوسَ عَلَى الطُّرُقَاتِ، فَقَالُوا: مَا لَنَا بُدٌّ، إِنَّمَا هِيَ مَجَالِسُنَا نَتَحَدَّثُ فِيهَا، قَالَ: فَإِذَا أَبَيْتُمْ إِلَّا الْمَجَالِسَ فَأَعْطُوا الطَّرِيقَ حَقَّهَا، قَالُوا: وَمَا حَقُّ الطَّرِيقِ ؟ قَالَ: غَضُّ الْبَصَرِ، وَكَفُّ الْأَذَى، وَرَدُّ السَّلَامِ، وَأَمْرٌ بِالْمَعْرُوفِ، وَنَهْيٌ عَنِ الْمُنْكَرِ
हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ि अल्लाहू अन्हू से रिवायत है कि नबी करीम ﷺ ने फरमाया रास्तों में बैठने से बचो सहाबा ने अर्ज़ किया कि हम तो वहां बैठने पर मजबूर हैं वही हमारे बैठने की जगह होती है कि जहां हम बातें करते हैंइस पर आप ﷺ ने फरमाया कि अगर वहां बैठने की मजबूरी ही है तो रास्ते का हक़ भी अदा करोसहाबा ने पूछा और रास्ते का हक़ क्या है ? आप ﷺ ने फरमाया निगाहें नीची रखना किसी को ऐज़ा देने से बचना सलाम का जवाब देना अच्छी बातों के लिए लोगों को हुक्म करना और बुरी बातों से रोकना
(صحیح بخاری ،گری پڑی چیز اٹھانے کا بیان،حدیث نمبر۲۴۶۵)
तमाम मज़कूर आयत ए करीमा व अहादीसे नबवी ﷺ का मफहुम यही है कि बिला वजह किसी भी इंसान को तकलीफ ना दी जाए कि यह इस्लाम के मुनाफी है यही वजह है कि काफिर को ब वक़्त ज़रूरत खून देना जायज़ है जबकि देने की वजह से मुसलमान को कोई तकलीफ ना पहुंचे,
फतावा ए यूरोप में है कि इंदज़ ज़रूरत मुस्लिम का खून गैर मुस्लिम कोगैर मुस्लिम का खून मुस्लिम कोदीनदार का खून फासिक़ व फाजिर कोफासिक़ व फाजिर का खून मुत्तक़ी व परहेज़गार को चढ़ाया जा सकता है
(فتاوی یو رپ ص ۵۱۶؍ کتاب الحلال و الحرام)
यही नहीं बल्कि मज़हब ए इस्लाम ने इंसान तो इंसान जानवरोंपरिंदोंकिडोंमकोड़ों को बिला वजह तकलीफ पहुंचाने से मना किया है,
चुनांचे सनन अबू दाऊद किताबुल अदब बाब फी क़त्ल अल ज़रर,२७१४ (سنن ابو داؤد کتاب الادب باب فی قتل الذرر۲؍ ۷۱۴) में हज़रत अब्दुर्रहमान बिन अब्दुल्लाह रज़ि अल्लाहू अन्हू अपने वालिद से रिवायत करते हैं उन्होंने कहा कि हम सफर में रसूलुल्लाह ﷺ के साथ थेआप क़ज़ा ए हाजत को तशरीफ ले गए हमने एक चिड़िया देखी जिसके साथ दो बच्चे थे हमने उसके दोनों बच्चे पकड़ लिए तो चिड़िया पर बिछाने लगी (बच्चे की मोहब्बत में रोने लगी) इतने में नबी करीम ﷺ तशरीफ ले आए फरमाया इसको इसके बच्चों की वजह से किस ने तड़पाया है उसके बच्चे वापस कर दो
(فتاوی اترا کھنڈ ص ۲۳۶)
एक दूसरी हदीस में है कि एक दफा हुजूर ﷺ सहाबा ए किराम रिज़वानुल्लाही तआला अलैहीम अजमईन के साथ किसी सफर के पड़ाव में थे आप ﷺ ज़रूरत से कहीं तशरीफ ले गएजब वापस आए तो देखा कि एक साहब ने अपना चूल्हा ऐसी जगह जलाया जहां ज़मीन पर या दरख़्त पर चिटियों का सुराग थायह देखकर हुजूर ﷺ ने दरियाफ्त फरमाया की यह किसने किया है ? सहाबी (चूल्हा जलाने वाले) ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह मैंने किया हैफरमाया उसको बुझाओ
(मुसनद अहमद बिन हंबल जिल्द १ सफा २९४)
मज़कूरा हदीसे मुबारका से भी यही ज़ाहिर है कि बिला वजह किसी को तकलीफ ना दी जाए अगरचे परिंदा हो या कोई जानवर हो या कीड़े मकोड़ेअलबत्ता शिकार के लिए परिंदों को या खाने वाले जानवरों को मार सकते हैं,
अगर आप तारीख का मुतालआ करेंगे तो बे शुमार वाक़ियात मिलेंगे कि मुसलमान कुफ्फार के साथ हुस्ने सुलूक से पेश आए हैं तलवार उस वक़्त तक नहीं उठाई जब तक कुफ्फार की तरफ से पहल ना हुई होजब जब जंग हुई है तो उसके पहल करने वाले कुफ्फार ही थे इसके बावजूद नबी करीम ﷺ ने हालत ए जंग में हुस्ने सुलूक की ऐसी आला मिसालें क़ायम किए जिन्हें देखकर इंसान अक़्ल दंग रह जाती हैचुनांचे जंग-ए-बदर के मौक़ा पर जब मुसलमानों ने पानी के चश्मे पर हौज़ बनाकर वहां पड़ाव डाल लिया तो बावजूद ए हालत ए जंग के जब दुश्मन पानी लेने आया तो आप ﷺ ने फरमाया उन्हें पानी दे दो,
(السیرۃ النبویۃ لابن ہشام صفحہ ۴۲۴)
यूं हीं कई एक जंग में फतह पाने के बाद कुफ्फारों के साथ हुस्ने सुलूक से पेश आए और अपने दुश्मनों को दरगुज़र फरमाया चुनांचे फतह मक्का के दिन हुजूर ﷺ जब मक्का फतह कर लिए तो कुफ्फार को शिकस्त देने के साथ-साथ बहुत से कुफ्फार को क़ैदी बना लिया फिर उन सब की तरफ इशारा करके फरमाया कि बताओ अब मैं तुम्हारे साथ क्या सुलूक करूंगा ? कुफ्फार दहशत से कांप रहे थे कि ना जाने अब हमारे साथ क्या सुलूक होगा मगर मुस्तफा ﷺ ने फरमाया आज हम तुम सब को माफ करते हैं जो कुछ मेरे साथ किया दरगुज़र फरमाते हैं इसी तरह जंगे खैबर के मौक़ा पर फतह पाने के बावजूद कुफ्फार के कहने पर उन्हें उनकी ज़मीन देकर काश्तकारी की इजाज़त दे दी,
(कुतुब ए तवारिख)
खुलास ए कलाम यह है कि डॉक्टर इक़बाल साहब का कलाम दुरुस्त है और उन्होंने कुरान व अहादीस की रौशनी में हिंदुस्तानियों को यह सबक़ दिया कि आपस में बिला वजह ना लड़ो एक दूसरे के दुश्मन ना बनो मज़हब ए इस्लाम का यह किरदार नहीं रहा है कि किसी पर जुल्म करो बल्कि हम काफिर व मुस्लिम सब हिंदुस्तानी हैं तो सब को चाहिए कि अमन व सलामती के साथ जिंदगी गुज़ारे (वल्लाहू आलम)
रही बात सरकार ए आला हज़रत रज़ि अल्लाहू अन्हू का शेर
दुश्मन ए अहमद पे शद्दत कीजिए मुलहिदों से क्या मोरौवत कीजिए
यानी जो हुजूर ﷺ के दुश्मन हैं जिन्होंने हुजूर ﷺ को मर कर मिट्टी में मिलने वाला बताया नबी के इल्म को जानवरों पागलों शैतान के इल्म से कमतर बतायाहुजूर ﷺ के इल्म गैब का इन्कार कियाएख्तियार ए मुस्तफा ﷺ का इन्कार किया उन पर खूब सख्ती करो और बे दीन लोगों के साथ ज़रा भी रियाअत ना करोयह भी अपनी जगह दुरुस्त है
कुरान व अहादीस के मुताबिक़ है इरशाद ए बारी ए तआला है
وَالَّذِیْنَ یُؤْذُوْنَ رَسُوْلَ اللّٰهِ لَهُمْ عَذَابٌ اَلِیْم
और वह जो रसूलुल्लाह ﷺ को ऐज़ा देते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है,
(کنز الایمان ،سورہ توبہ آیت نمبر ۶۱)
एक दूसरी जगह इरशाद ए रब्बानी है
اِنَّ الَّذِیْنَ یُؤْذُوْنَ اللّٰهَ وَ رَسُوْلَهٗ لَعَنَهُمُ اللّٰهُ فِی الدُّنْیَا وَ الْاٰخِرَةِ وَ اَعَدَّ لَهُمْ عَذَابًا مُّهِیْنًا
बेशक जो ऐज़ा देते हैं अल्लाह ﷻ और उसके रसूल ﷺ को उन पर अल्लाह ﷻ की लानत है दुनिया और आखिरत में और अल्लाह ﷻ ने उनके लिए ज़िल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है,
(کنز الایمان سورہ احزاب آیت نمبر ۵۷)
तफसीरे सिरातुल जिनान में इस आयत के तेहत है की इस आयत में ऐज़ा देने वालों से मुराद कुफ्फार हैं जो अल्लाह ﷻ की शान में ऐसी बातें करते हैं जिनसे वह मुनज़्ज़ा और पाक है और वह कुफ्फार मुराद हैं जो रसूले करीम ﷺ की तकज़िब करते हैंउन पर दुनिया व आखिरत में अल्लाह तआला की लानत है और अल्लाह तआला ने उनके लिए आखिरत में रुसवा कर देने वाला अज़ाब तैयार कर रखा हैयाद रहे कि अल्लाह तआला उससे पाक है कि कोई उसे ऐज़ा दे सके या उसे किसी से ऐज़ा पहुंचेइसलिए यहां अल्लाह ﷻ को ऐज़ा देने से मुराद उसके हुक्म की मुखालिफत करना और गुनाहों का एरतिकाब करना है या यहां अल्लाह ﷻ का ज़िक्र सिर्फ ताज़िम के तौर पर है जबकि हक़ीक़त में अल्लाह तआला और उसके रसूल ﷺ को ऐज़ा देने से मुराद खास रसूले करीम ﷺ को ऐज़ा देना हैजैसे जिसने रसूले अकरम ﷺ की एताअत की तो उसने अल्लाह तआला की एताअत कीइसी तरह जिसने हुजूर अक़द्दस ﷺ को एज़ा दी उसने अल्लाह तआला को ऐज़ा दी,
(جلالین، الاحزاب، تحت الآیۃ: ۵۷ ، ص ۳۵۷)
(خازن، الاحزاب، تحت الآیۃ: ۵۷ ،۳ / ۵۱۱)
(روح البیان، الاحزاب، تحت الآیۃ: ۵۷ ، ۷ ؍۲۳۷ ، ملتقطاً)
नोट हुजूर पुर नूर ﷺ के किसी फेल शरीफ को हल्की निगाह से देखना या किसी क़िस्म का एतराज़ करना या आपके ज़िक्रे खैर को रोकना और आपको ऐब लगाना भी नबी करीम ﷺ को ऐज़ा देने में दाखिल है और इस क़िस्म के लोग भी दुनिया व आखिरत में लानत के मुस्तहिक़ हैं,
(تفسیر صراط الجنان زیر آیت مذکورہ)
मालूम हुआ कि हुजूर ﷺ को ऐज़ा देना अल्लाह तआला को ऐज़ा देना है और जो अल्लाह ﷻ व रसूल ﷺ को ऐज़ा देगा उसका ठिकाना जहन्नम है और वह दुनिया व आखिरत में लानत का मुस्तहिक़ हैतो जो लानत के मुस्तहिक़ है उसके साथ ज़रूर शिद्दत की जाएगी और यही सबक़ हमें बारगाह ए रिसालत मआब ﷺ से मिला है
जैसा की हदीस शरीफ में है
عَنْ اَنَسٍ قَالَ قَالَ رَسُوْلُ اللہِ صَلَّی اللہ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّمَ اِذَا رَأَیْتُمْ صَاحِبَ بِدْعَۃٍ فَاکْفَھِرُّوْا فِیْ وَجْھِہِ فَاِنَّ اللّٰہَ یَبْغُضُ کُلَّ مُبْتَدِعٍ
हज़रत अनस रज़ि अल्लाहू अन्हू से रिवायत है कि नबी करीम ﷺ ने फरमाया जब तुम किसी बद मज़हब को देखो तो उसके सामने तर शरुई (تر شروئی) से पेश आओ इसलिए कि अल्लाह तआला हर बद मज़हब को दुश्मन रखता है,
(کنز العمال کتاب الایمان جلد ۱؍ص ۲۰۰)
मालूम हुआ कि अल्लाह तआला बद मज़हबों को दुश्मन रखता तो हमें चाहिए कि हम बद मज़हबों से तर शरूई से पेश आएं और यही फरमान ए रसूल ﷺ हैऔर सहाबा ए किराम रिज़वानुल्लाही तआला अलैहीम अजमईन ने इस पर अमल किया है बल्कि दुश्मन ए रसूल ﷺ को कत्ल भी किया है
इरशाद ए रब्बानी है
اَلَمْ تَرَ اِلَى الَّذِیْنَ یَزْعُمُوْنَ اَنَّهُمْ اٰمَنُوْا بِمَآ اُنْزِلَ اِلَیْكَ وَ مَآ اُنْزِلَ مِنْ قَبْلِكَ یُرِیْدُوْنَ اَنْ یَّتَحَاكَمُوْآ اِلَى الطَّاغُوْتِ وَ قَدْ اُمِرُوْآ اَنْ یَّكْفُرُوْا بِهٖ۔وَ یُرِیْدُ الشَّیْطٰنُ اَنْ یُّضِلَّهُمْ ضَلٰلًۢا بَعِیْدًا
क्या तुमने उन्हें ना देखा जिनका दावा है कि वह ईमान लाए उस पर जो तुम्हारी तरफ उतारा और उस पर जो तुमसे पहले उतरा फिर चाहते हैं कि शैतान को अपना पँच बनाएं और उनको तो हक्म यह था कि उसे असलम ना मानें और इब्लीस यह चाहता है कि उन्हें दूर बहका दे
(کنزا لایمان ،سورۃ النساء آیت نمبر ۶۰)
तफसीरे सिरातुल जिनान में है की बिशर नामी एक मुनाफिक़ का एक यहूदी से झगड़ा हो गया यहूदी ने कहा चलो मोहम्मद मुस्तफा ﷺ से फैसला करवा लेते हैंमुनाफिक़ ने खयाल किया कि रसूलुल्लाह ﷺ तो किसी की रियाअत नहीं करेंगे और इससे मेरा मतलब हासिल ना होगाइसलिए उसने मुसलमान होने का दावा करने के बावजूद यह कहा कि कअब बिन अशरफ यहूदी को पँच बनाओयहूदी जानता था कि कअब बिन अशरफ रिशवत खोर हैंइसलिए उसने यहूदी होने के बावजूद उसको पँच तस्लीम ना कियानाचार मुनाफिक़ को फैसला के लिए सरकार ए दो आलम ﷺ के हुज़ूर आना पड़ारसूले सादिक़ व अमीन ﷺ ने जो फैसला दिया वह यहूदी के मुवाफिक़ हुआ और मुनाफिक़ के खिलाफयहां से फैसला सुनने के बाद फिर मुनाफिक़ उस यहूदी को मजबूर करके हजऱत उमर रज़ि अल्लाहू अन्हू के पास ले आयायहूदी ने आप रज़ि अल्लाहू अन्हू से अर्ज़ किया कि मेरा और इसका मामला आप के रसूल ﷺ तय फरमा चुके लेकिन यह हुजूर ﷺ के फैसला से राज़ी नहीं बल्कि आप से फैसला चाहता हैहज़रत उमर फारूक़ ने फरमाया कि हां मैं अभी आकर इसका फैसला करता हूंयह फरमा कर मकान में तशरीफ ले गए और तलवार लाकर उसको कत्ल कर दिया और फरमाया जो अल्लाह ﷻ और उसके रसूल ﷺ के फैसला से राज़ी ना हो उसका मेरे पास यही फैसला हैउस मुनाफिक़ के वरसा हुजूरे अक़द्दस ﷺ की खिदमत में आए लेकिन इन आयात में हज़रत उमर रज़ि अल्लाहू अन्हू की ताईद नाज़िल हो गई थी लिहाज़ा वरसा के मुतालबे को मुस्तरद कर दिया गया,
(خازن، النساء، تحت الآیۃ:۶۰ ،۱ ؍ ۳۹۷)
खुलास ए कलाम यह है कि दोनों अशआर अपनी जगह दुरुस्त है डॉक्टर इक़बाल ने अपने शेर में तमाम हिंदुस्तानियों को मुखातिब करके कहा कि बिला वजह आपस में बैर यानी दुश्मनी ना करो हम सब हिंदुस्तानी हैं और हिंदुस्तान हमारा वतन है और हमारा मज़हब नहीं सिखाता है कि आपस में बिला वजह दुश्मनी की जाए
और सरकार ए आला हज़रत ने सुन्नियों को मुखातिब करके कहा कि दुश्मन ए अहमद पे शिद्दत कीजिए यानी जो रसूले खुदा ﷺ के गद्दार हैं हुजूर ﷺ की शान में गुस्ताखीयां करने वाले हैं उन पर शिद्दत से पेश आएंयह भी याद रहे कि सरकार ए आला हज़रत रज़ि अल्लाहू अन्हू ने सारे हिंदुस्तानियों या कुफ्फार के बारे में नहीं लिखा है बल्कि खुद सरकार ए आला हज़रत रज़ि अल्लाहू अन्हू का फतवा है कि काफिर को तावीज़ दे सकते हैं अगर शिद्दत की बात होती तो तावीज़ देने की इजाज़त क्यों कर देतेपस मालूम हुआ कि डॉक्टर इक़बाल साहब का दर्स तमाम हिंदुस्तानियों के लिए है और सरकार ए आला हज़रत का दर्स सुन्नी सहीहुलअक़िदा मुसलमानों को बद मज़हबों के बारे में हैजैसे बिला वजह किसी को तकलीफ पहुंचाना जायज़ नहीं है मगर क़स्सास के लिए बादशाहे इस्लाम को कत्ल करने या कोड़े मारने की इजाज़त हैयूं हीं काटने वाले कुत्ते को मारने की इजाज़त हैकाटने वाली बिल्ली को ज़िबह करने की इजाज़त है क्योंकि यह नुक़सान पहुंचाने
वाले हैं ठीक इसी तरह बल्कि इससे भी ज़्यादा बद मज़हब हुजूर ﷺ की शान में गुस्ताखी करके हम सुन्नियों को नुक़सान पहुंचाने वाले हैं तकलीफ देने वाले हैं लिहाज़ा उन पर शिद्दत करना तर शरूई से उन के साथ पेश आना बिल्कुल जायज़ है
والله و رسولہ اعلم باالصواب
अज़ क़लम फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी
हिंदी ट्रांसलेट मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)