मुसलमान औरतों को साड़ी पहनना कैसा है?
सवाल: क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम मसला ज़ेल के बारे में कि मुसलमान औरतों को साड़ी पहनना कैसा है?
साईल: मज़हर हसनैन (हैदराबाद)
जवाब: हिंदुस्तान के बहुत से इलाकों में मुस्लिम औरतें साड़ियां नहीं पहनती शलवार कमीज़ पहनती हैं जैसे यूपी के अक्सर जिला में, यहां साड़ियां गैर मुस्लिम पहनती हैं लेकिन हिंदुस्तान के ही बहुत से इलाकों में साड़ियां मुस्लिम औरतों का भी लिबास है, बिहार बंगाल तमिलनाडु कर्नाटक वगैरा के आम शहरों देहातों में यह लिबास मुस्लिम और गैर मुस्लिम औरतों में मुश्तरक है, यहां साड़ी पहनने की वजह से कोई यह नहीं समझता कि यह गैर मुस्लिम औरत है और ना ही कोई उसे लिबास ए कुफ्फार ख्याल करता है, और हुकुम मुमानिअत की इल्लत गैर मुस्लिम के शआर ए खास से तश्बीह पर है, लिहाज़ा जहां साड़ियां सिर्फ हिंदू का लिबास माना जाती है वहां काफिर औरतों की मुशाबिहत की वजह से मुस्लिम औरतों को साड़ी पहनना मकरूह व ममनूअ व गुनाह होगा
लेकिन जिन इलाकों में यह मुसलमान का भी लिबास है वहां पहनना ममनूअ ना होगा जायज़ होगा(من تشبہ بقوم فھو منھم)के ज़ुमरे में दाखिल ना होगा
(बहवाला फतावा अमजदिया जिल्द ४ सफा १४४ ता १४६/मकतूबा रज़विया)
नोट:मुसलमान औरतों को साड़ी पहनते वक़्त इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि सत्र औरत खुला ना रहे कि सत्र औरत का छिपाना फर्ज़ है और फर्ज़ का तर्क हराम है
लिहाज़ा मुसलमान औरतों को हत्तल इमकान कोशिश यह करनी चाहिए कि साड़ी ना पहने अगर पहनना है तो पूरे जिस्म को मुकम्मल छिपाए रखें इसलिए की साड़ी के ऊपर वाले कपड़े में बदन का अक्सर हिस्सा दिखाई देता हैऐसी सूरत में हराम है एसलिए मुसलमान औरतों को साड़ी ना पहने में ही आफियत है
ھذا ماظھرلی و ھو سبحانہ وتعالیٰ واحکم واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب
अज़ क़लम
फक़ीर मोहम्मद मासूम रज़ा नूरी
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)