ऐ अशरफे ज़माना ज़मान ए मदद नुमा
दर हाए बस्तह राज़े कलीदे करम कुशा
अशरफ न हंग दरिया दरिया बसीना दार्द
दुश्मन हमेशा पूर गम बा ज़िक्र तु दोस्त दार्द
(بسم اللہ الرحمن الرحیم)
(یٰٓاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوآ اتَّقُوا اللّٰهَ وَ ابْتَغُوْٓا اِلَیْهِ الْوَسِیْلَةَ(سورۃ المائدہ۳۵)
ऐ इमान वालो अल्लाह से डरो और उस की तरफ वसीला ढूंढोक
किछौछा का सफर
और उस के आदाब
लेखक
खलीफ़ए,हुज़ूर ,अर्शदे ,मिल्लत
मौलाना ,ताज ,मोहम्मद क़ादिरी ,वाहिदी ,उतरौलवी
साहब ,क़िबला ,दामत ,बरकातुहुमुल आलिया
गायडीह पोस्ट चमरुपुर जिला बलराम पुर यू पी
हिंदी ट्रांसलेट एवं नाशिर
मौलाना मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी
दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश
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(अर्जे नाशिर)
لک الحمد یا اللہ جل جلالہ والصلوۃ والسلام علیک یارسول اللہ ﷺ
अल्लाह तआला जिसे चाहता है फक़ीह बना देता है
کما قال رسول اللہ ﷺ انما یرید اللہ بہ خیرا یفقہہ فی الدین (مشکوۃ)
क़ाबिले मुबारकबाद हैं खलिफ ए अर्शदे मिल्लत हज़रत अल्लामा मौलाना ताज मोहम्मद क़ादरी वाहिदी साहब क़िबला जो रात व दिन मसलक ए आला हज़रत के नशर व अशाअत में लगे रहते हैं, चंद दिन क़ब्ल मौलाना मौसूफ के कुछ फतावा नज़र से गुजरीं देखा उम्दा लगा फिर मैं ने हिंदी में ट्रांसलेट कर ने की इजाज़त तलब की तो मौलाना मौसूफ ने इजाज़त देते हुए फरमाया कि आप जब चाहे जिस फतवा को चाहे हिंदी या किसी और ज़बान में ट्रांसलेट कर के क़ौम के हवाले कर सकते हैं इजाज़त की ज़रूरत नहीं है क्यों कि मेरा मक़सद सिर्फ और सिर्फ उम्मते मोहम्मदिया तक पैगामे मसलक ए आला हज़रत को पहुंचाना हैमैं ने अर्ज़ किया की इजाज़त लेने का मतलब यह है कि आप नाराज़ ना हों क्यों कि बाज़ अहबाब ने मना कर दिया है तो हज़रत ने फरमाया कि आप जितनी खिदमत करना चाहे करें यानी हिंदी में ट्रांसलेट कर के क़ौम तक पहुंचाते रहें फतवा मैं देता रहूंगा और अगर चाहे तो कुछ रसाईल हैं उसे भी कर दें,फिर मुझे काफी खुशी महसूस हुई और मैं ने काम करना शुरू कर दिया हत्ता कि कई एक फतावा को हिंदी में कर चुका हूं जो अन क़रीब मसाइल फिक़्हिय्या के नाम से शाए किया जाएगा इसके बाद "गुस्ताख ए रसूल पर लानत भेजना कैसा है ?" और "हयातुन्नबी पर रोशन दलील" इन दोनों रिसालों को हिंदी में कर के शाए कर चुका हूं,"किछौछा का सफर और उस के आदाब" को देखा तो बहुत उम्दा लगा इस लिए दीगर रिसाइल के बनिस्बत इसे ज़्यादा ही दिल जमई से किया हूं दुआ है मौला तआला इसे क़बूल फरमाए और दोनों जहां की नेअमतों से हमें और मुरत्तिब व दीगर उम्मते मुस्लिमा को माला माल फरमाए,इस रिसाला के ज़रिआ ज़ायरीन हज़रात को कमा हक़्क़ा फायदा उठाने की तौफीक़ अता फरमाए,
آمین یارب العلمین بجاہ حبیبہ الکریم علیہ الصلاۃ والتسلیم
इस के बाद इन शा अल्लाह तआला बहुत जल्द मौलाना मौसूफ का रिसाला "अप्रैल फूल मनाना कैसा है ?" हिंदी में आप लोगों के गोश गुज़ार करूंगा, पढ़ने वाले हज़रात से अर्ज़ करूंगा कि रिसाला हाज़ा में जहां कहीं भी कोई गलती व खामी नज़र आए तो हमें या मुरत्तिब को आगाह फरमा कर शुक्रिया का मौक़ा इनायत करें, हम आप के ममनून व मशकूर होंगे,
फक़त
(मोलाना)मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी
पोस्ट दुदही जिला कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
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(निगाहे अव्वलीन)
لک الحمد یا اللہ جل جلالہ
والصلوۃ والسلام علیک یارسول اللہ ﷺ
मौजूदा ज़माना में जादू सहर की कसरत हो गई है अक्सरो बेश्तर लोग आसेब ज़दा हैं ह। यह जादू बहुत पहले ज़माना से चला आया हैजैसा कि क़ुरआन व अहादीस से साबित है, ज़ालिम लोग जादू के ज़रिआ एक अच्छे खासे लोगों की तंदुरुस्ती खराब करदेते है। मैं(वाहिदी) भी आसेब में कई साल तक मुब्तिला रहा परेशानी बढ़ती तो इलाज कराता यहां तक की उतरौला बलरामपुर गोंडा मुंबई पूना प्राइवेट और कई गवर्नमेंट अस्पताल में इलाज कराया मगर कामियाब ना हुआ आखिर में हुजूर सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिम्नानी सुम्मा किछौछवी रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू की मुक़द्दस बारगाह में हाज़िर हुआ चंद ही दिनों में ठीक हो गया और फैज़ाने मखदूम अशरफ से माला माल हुआ कि आज इस लाएक़ हूं और इन शा अल्लाह फैज़ाने अशरफ से माला माल होता रहूंगा।
जादू एक इल्म है जो अवाम व खवास पर असर कर जाता है जैसा कि आदीस व तफासीर से साबित है की ज़ालिम लुबेद बिन असम और उसकी बेटियों ने रब के प्यारे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर जादू कर दिया और जादू हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आज़ा ए ज़ाहिरा पर असर कर गया अलबत्ता क़ल्ब व अक़्ल व एतिक़ाद पर कुछ असर ना हुआ(खज़ाइनउल इरफान ,व मिरातुल मनाजीह )
और आज भी लाखों इंसान आसेब में मुब्तिला हो कर किछौछा शरीफ जाते हैं मगर कुछ तो जिहालत पर जम जाते हैं कोई कमाल पंडित पर जाकर घंटा बजाता हैं कोई चक्कर लगाता है कोई बैठका पर नहाता है वगैरा-वगैरा जिस से फायदा के बजाए नुक़सान पहुंचता है फिर महीनों नहीं बल्कि कई कई सालों तक आसेब में मुब्तिला रहते हैं इस जिहालत को खत्म करने के लिए मैं ने क़लम संभाला हालां कि मैं इस लाएक़ नहीं था,लेकिन अल्लाह जल्ला जलालहु और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर भरोसा करते हुए लिखना शुरु कर दिया मसरूफियत के बावजूद लिखता रहा यहां तक कि ३ दिन में इस रिसाला को मुकम्मल कर दिया
मौला तआला हुजूर मखदूम अशरफ जहांगीर सिम्नानी रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू और हुजूर सैय्यद मीर अब्दुल वाहिद बिलग्रामी रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू के सदक़ा व तुफैल इस रिसाला को शर्फे कबूलियत बख्शे और जिन्होंने मेरी रहबरी की और हर जगह मेरा साथ दिया बिलखसूस उस्ताज़ुल मुकर्रम व मोहतरम मास्टर रहमतुल्लाह साहब क़िबला आसवी मद्दाज़िलहुल आली नूरानी की जिन्होंने बचपन से मुझ फक़ीर की परवरिश करके इस लाएक़ बनाया व मुफ्ती मोहम्मद मोइनुद्दीन साहब रज़वी हेम पुरी व मौलाना मोहम्मद रफीक़ साहब क़िबला मुशाहिदी व मौलाना मोहम्मद गज़ाली साहब क़िबला मिस्बाही को अल्लाह अजरे अज़ीम अता फरमाए व अज़ीज़म चांद मोहम्मद सल्लमहू (मुतअल्लिम हशमतुर्रज़ा झलैहिया) को अल्लाह तआला आलिमे बा अमल बनाए, और ज़ायरीन हज़रात को इस रिसाला से फाएदा पहुंचाए,अहले इल्म हज़रात से अर्ज़ है कि अगर कोई खामी नज़र आए मुतलअ फरमाए हम मशकूर होंगे
بجاہ حبیبہ الکریم الامین و علی آلہ افضل الصلوۃ و اکمل التسلیم
फक़ीर ताज मोहम्मद क़ादरी वाहिदी
४ रबीउल अव्वल १४३५ हिजरी,
मुताबिक़, ६ जनवरी २०१४ ई०
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(तक़रीज़ ए जलील)
आलिमे नबील फाज़िले जलील हज़रत अल्लामा व मौलाना अब्दुन्नबी उर्फ मोहम्मद अली वाहिदी तैयबी साहब क़िबला
بسم اللہ الرحمن الرحیم
نحمدہٗ ونصلی علی رسولہ الکریم
نحمدہٗ ونصلی علی رسولہ الکریم
’’یا ایھا الرسول بلغ مآ انزل الیک من رّبک‘‘
ऐ रसूल पहुंचा दो जो कुछ उतरा तुम्हें तुम्हारे रब की तरफ से(कंज़ुल इमान पारा ६ आयत १४)
इस आयते करीमा से अहकामे शरीयत की तबलीग की फरज़ियत साबित हो रही है और हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया जैसा कि बुखारी शरीफ किताबुल इल्म में है कि मेरी तरफ से पहुंचा दो अगर्चे एक ही आयत हो,तबलीग दीने इस्लाम का अहम फरीज़ा है जो पूरी दुनिया में जारी है तबलीग शमशीर व तक़रीर के जरिए से होती है और तहरीर से भी मगर शमशीर व तक़रीर के असरात सिर्फ उन्हीं लोगों तक महदूद रह जाती है जिन को उन से वाबस्ता पड़ा हो मगर तहरीर के जरिए की जाने वाली तबलीग हमेशा क़ाएम व दाएम रहती है इसलिए कि दीन ए इस्लाम की अशाअत में ज़्यादा हिस्सा तहरीर का है और दीन की बक़ा के लिए शरीअत की तबलीग व नशर व अशाअत बेहद ज़रूरी है उन्हीं सब बातों को को पेशे नज़र रखते हुए इश्के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में डूब कर मुहिब्बे ग्रामी मौलाना ताज मोहम्मद क़ादरी वाहिदी ने यह रिसाला लिखा है।
इस से पहले मौसूफ ने अशरफी पहाड़ा व गुलदस्त ए क़ादरिया अशरफिया तसनीफ फरमाई मौलाना मौसूफ की तसनीफे लतीफ का मैं ने मुतालअ किया पढ़ कर क़ल्ब को फरहत रूह को ताज़गी नसीब हुई यह उनके लिए सआदते दारैन है इस लिए कि इस किताब को तसनीफ फरमा कर उर्दू ख्वां हज़रात पर एहसान किया है यक़ीनन यह तारिकुस सल्तनत हुजूर सैय्यद मखदूम अशरफ सिमनानी व सादाते मारहरा के मौरसे आला सनदुल वासिलीन मीर अब्दुल वाहिद बिलग्रामी का फैज़ व करम है (रज़ि अल्लाहू तआला अन्हुमा)
दुआ है मौला तआला इस रिसाला को कुबूल फरमाए और मुसन्निफ के इल्मो अमल में बरकतें अता फरमाए और खत्मा ईमान पर फरमाए
۔آمین بجاہ سید المرسلین ﷺ
खाक पाए सादाते किराम व उलमा ए किराम
हक़ीर अब्दुन्नबी उर्फ मोहम्मद अली वाहिदी तैयबी
५ रबीउल अव्वल १४३५ हिजरी
मुताबिक़ ७ जनवरी २०१४ ई०
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( नज़रे सानी)
उम्दतुल मुदर्रसीन हज़रत मुफ्ती मोहम्मद मोइनुद्दीन साहब क़िबला दामत बरकातुहुमुल आलिया सदरुल मदर्रसीन दारुल उलूम अहले सुन्नत हशमतुल उलूम गायडीह
نحمدہٗ ونصلی علی رسولہ الکریم
ज़ेरे नज़र रिसाला किछौछा का सफर और उस के आदाब अज़ीज़म मौलाना ताज मोहम्मद क़ादरी वाहिदी सल्लमहु का तालीफ करदा है, मौसूफ ने इस से क़ब्ल गुलदस्त ए क़ादरिया अशरफिया को पेश किया था मसरूफियत की वजह से इजमालन देख लिया था, इस बार फिर मौसूफ ने ज़ेरे नज़र रिसाला को पेश किया काफी इंकार के बाद मौसूफ ने एक ना सुनी बल्कि बार-बार इज़हारे मोहब्बत किया कि हज़रत नज़रे सानी कर दीजिए हालांकि मैं फतावा मोईनिया की तरतीब में लगा हूं,अवामे अहले सुन्नत की तमन्ना है की फतावा मोईनिया जल्द से जल्द पेश किया जाए, मगर मौसूफ के अखलाक़ व मोहब्बत को देख कर उन के हौसला अफज़ाई के लिए मैं ने कुबूल कर लिया, ज़ेरे नज़र रिसाला देखा बहुत उम्दा रिसाला है कि इस में सफर करने का तरीक़ा मअ दुआ नीज़ गुलामाने अशरफ को जिहालत के दलदल से निकलने का आला भी है मौसूफ पर बेशक हुज़ूर सैयद मखदूम अशरफ व ११ वीं सदी के मुजद्दीद मीर अब्दुल वाहिद बिलग्रामी का फैज़ व करम है (रज़ि अल्लाहू तआला अन्हुमा)
दुआ है मौला अज़्ज़ावजल नबी रउफुर्रहीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदक़ा व तुफैल में इस रिसाला को कुबूल फरमाए और मौसूफ की इल्म व उम्र में बरकतें अता फरमाए और यह रिसाला जरिआ ए निजात बनाए नीज़ दीन की खिदमत करने का जज़्बा पैदा फरमाए
آمین بجاہ سیدالمرسلین
फक़त दुआगोव दुआ जो
मोहम्मद मोईनुद्दीन खान रज़वी हेम पुरी
खादिम दारुल उलूम अहले सुन्नत हशमतुल उलूम गायडीह
उतरौला जिला बलरामपुर (यूपी)
१० जमादिल आखिर १४३५ हिजरी
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(कलिमाते दुआईया)
पीरे तरीक़त रहबरे राहे शरीअत नाशिरे मसलक ए आला हज़रत व खलीफ ए हुज़ूर ताहिरे मिल्लत हज़रतुल अल्लाम हज़रत मौलाना अश्शाह आले रसूल उर्फ सैयद सुहेल मियां साहब क़िबला मद्दाजिल्लहूल आली वन्नूरानी नाईबे सज्जादा खानक़ाहे वाहिदिया तैय्यबिया बिलग्रामी शरीफ हरदोई
نحمدہٗ ونصلی علی رسولہ الکریم
اما بعد
इस नाज़ुक दौर में जहां मज़ारात कि हुरमत बे अदब ज़ाएरीन से पामाल हो रही है और जो हक़ीक़ी फैज़ान सही मानों में लोगों तक पहुंचना चाहिए वह नहीं पहुंच पाता, फिर लोग शिकायतें शुरू कर देते हैं फुलां दरगाह पर हाज़री दी हमारा कोई मक़सद हल नहीं हुआ फायदा मिले तो कैसे जब तक आपको दरगाह की ज़ियारत व हाज़री के आदाब मालूम ना होंगे उस वक़्त तक आप को ना तो साहबे मज़ार का फैज़ मिलेगा और ना तो ज़ियारत का कोई मक़सद निकल पाएगा, बिल्कुल इसी तअल्लुक़ से मेरे एक मुहर्रिक और हस्सास अक़ीदत मंद मौलाना ताज मोहम्मद क़ादरी वाहिदी ने मुख्तसर रिसाला बतौरे आदाबे ज़ियारत व हाज़री की तरतीब दी है,मौला तआला से दुआ है कि रिसाला को क़ुबूले आम फरमाए और मौलाना मौसूफ को मज़ीद दीनी मसलकी मशरबी खिदमात का जज़्बा इनायत करे।
آمین بجاہ سیدالمرسلین ﷺ
(मौलाना) सैयद सुहेल अहमद
नईबे सज्जादा खानक़ाहे वाहिदिया तैय्यबिया व नाज़िमे आला दारुल उलूम वाहिदिया तैय्यबिया बिलग्राम शरीफ
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بسدم اللہ الرحمن الرحیم
نحمدہٗ ونصلی علی رسولہ الکریم
اما بعد
मेरे प्यारे इस्लामी भाइयो ! व इस्लाम की मुक़द्दस शहज़ादियो ! जब कहीं का सफर करना हो तो पहले गुस्ल कर लें (गुस्ल का तरीक़ा किताब के आखिर में है) फिर गुस्ल से फारिग हो कर चार (४) रकात नमाज़ नफ्ल अल्हम्दु, व क़ुल, के साथ पढ़ें (मकरूह वक़्तों में ना पढ़ें) नमाज़ से फारिग हो कर खूब दुआ मांगे कि अल्लाह तआला फरमाता है
(فَاِذَا فَرَغْتَ َفانْصَبْ وَ اِلیٰ رَبِّکَ فَارْغَبْ)
तो जब नमाज़ से फारिग हो तो दुआ में मेहनत करो और अपने रब ही की तरफ रगबत करो(कंज़ुल ईमान,सूरह अलम नशरह)
फिर चारों क़ुल और इज़ाजाआ पढ़ें और आखिर बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़ें और आयतुल कुर्सी भी पढ़ लें आराम से रहेंगे (इन शा अल्लाह)फिर घर से पहले दाहिना क़दम निकालें और यह दुआ पढ़ें
(بِسْمِ اللّٰہ ِتَوَکَّلْتُ عَلَی اللّٰہِ لَا حَوْلَ وَلاَقُوَّۃَ اِلاَّ بِا اللَّہ) (مشکوۃ)
फिर दाहिने हाथ की शहादत की उंगली के दरवाज़े के ऊपर ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
(لا الہ الااللہ محمدرسول اللہ ﷺ)
लिखे और दुरूद शरीफ का विर्द करता रहे (बार-बार बढ़ता रहे)फिर जब गाड़ी पर बैठना हो तो यह दुआ पढ़ें कर बैठें
(سُبْحَانَ الَّذِیْ سَخَّرَلَناَ ہٰذَوَمَا کُنّاَ لَہ‘ مُقْرِنِیْنَ وَاِنَّا اِلیٰ رَبِّناَ لَمُنْقَلِبُوْن)
इन शा अल्लाह सवारी हर क़िस्म के हादसे से महफूज़ रहेगी
फिर कुछ वक़्त दुरूद शरीफ का विर्द करते रहें और अगर हो सके तो ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ें, इन शा अल्लाह तआला सही सलामत अपने मंज़िल पर पहुंच जाओगे सफर में खूब दुआ करें कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह तआला मुसाफिर की दुआ कुबूल फरमाता है(अबू दाऊद)
मुसाफिर रोज़ाना या समद १३४ बार पढ़ ले तो भूख और प्यास से अमन में रहेगा,हदीस शरीफ में है कि सफर में जब किसी को मुश्किल में मदद की ज़रूरत पड़े तो इस तरह तीन बार पुकारे आइनू या इबादल्लाह
(اَعِیْنُوْایَا عِبَادَاللّٰہ)
उस को गैबी मदद मिलेगी इन शा अल्लाहरहा किछौछा शरीफ का सफर तो यही तरीक़ा काफी है अलबत्ता घर से निकलते वक़्त यह अपने दिल में तैय कर ले कि मैं किछौछा शरीफ जा रहा हूं किसी क़िस्म की गुस्ताखी और बे अदबी नहीं करूंगा अक्सर मैं ने देखा है कि लोग जाते हैं और फिर शैतान के कहने पर घर आकर अपने भाई और पड़ोसियों से लड़ते हैं और कहते हैं कि तुम ही ने मेरे ऊपर जादू कराया है, मुझे शैतान बताया है जिसकी वजह से काफी लड़ाईयां होती है बल्कि पुलिस चौकी, जेल तक जाने की नौबत आ जाती है, हालांकि उन्हें मालूम होना चाहिए कि कुरआन में अल्लाह फरमाता है
(اِنَّ الشَّیْطَانَ لِلْاِنْسَانِ عَدٌوٌّ مُّبِیْن)
बेशक शैतान इंसानों का खुला दुश्मन है
तो बताओ कि जब शैतान इंसानों का खुला दुश्मन है तो वह भला इंसानों के साथ अच्छा सुलूक करेगा उन्हें सच्ची बात बताएगा नहीं हरगिज़ नहीं बल्कि वह तो इंसानों को आपस में खूब लड़ाता है
लिहाज़ा कभी इस तरह का ख्याल दिल में ना लाना और ना शैतान के कहने पर किसी से लड़ाई झगड़ा करना फिर जब किछौछा शरीफ पहुंचो तो कोई मकान किराया पर ले लो बेहतर तो यह है कि मज़ार शरीफ के क़रीब लो ताकि हाज़री देने में आसानी रहे, फिर सब सामान रख कर इत्मिनान से हो लो अगर नमाज़ का वक़्त हो गया है तो पहले नमाज़ अदा कर लो अगर आपका सफर बानवे (९२) किलो मीटर से ज़्यादा है तो आप मुसाफिर हुए यानी ज़ोहर असर ईशा की फर्ज़ नमाज़ों में क़सर करें यानी ४ रकात ना पढ़ें बल्कि दो ही रकात पढ़ें, लेकिन आपका इरादा पंद्रह (१५) दिन से ज़्यादा ठहरने का है तो फिर आप मंज़िल पर पहुंचने के बाद नमाज़ में क़सर नहीं करेंगे, बल्कि जिस तरह घर पर पूरी नमाज़ पढ़ते थे ठीक उसी तरह पढ़ें क़सर उस वक़्त आपको करना होगा कि १५ दिन से कम ठहरने की नियत हो,फिर नमाज से फारिग हो कर (और अगर नमाज़ का वक़्त ना हुआ हो तो पहुंचने के बाद) फौरन गुस्ल करें फिर नीर शरीफ जाकर वहां अदब के साथ पानी भर कर ऊपर लाएं और इस तरह सर पर डालें कि पूरे बदन पर बह जाए इस तरह जितना हो सके नहाए मगर अदब के साथ,ख्याल रहे की नीर शरीफ से पानी निकालने के लिए वहां मिट्टी का बर्तन (घड़ा) मिलता है वहीं खरीद लें घर के इस्तेमाल किए हुए बर्तन से पानी ना निकाले, जब गुस्ल से फारीग हो लें तो कपड़ा बदल लें और जिस कपड़े को पहन कर गुस्ल किया है उसको एक थैली में रख लें और मकान पर (रूम पर) लाकर सुखा लें बाज़ जाहिल गवांर ऐसा करते हैं कि पहुंचते ही मैला कुचैला कपड़ा पहन कर नहाना शुरू कर देते हैं, मैं ने अपनी आंखों से कई बार देखा है कि इतने मैले कपड़े पहने हुए होते हैं कि मालूम होता है कि १५ दिन से गुस्ल ही नहीं किया है, इसी हालत में नहाने लगते हैं बल्कि कई मर्तबा मैं ने वापस कर दिया और फिर उन्हें समझाया कि यहां नहाना है तो पहले मकान पर गुस्ल कर के पाकीज़गी हासिल कर लो फिर यहां गुस्ल करो मगर जाहिल जो होते हैं अपनी जिहालत पर अड़े रहते हैं,उसी मैले कपड़े में नहाने लगते हैं यहां तक कि बाज़ लोग नापाकी हालत में (जिन पर गुस्ल वफर्ज होता है) नहाने लगते हैं,मैं ने कई लोगों से इसका सबब पूछा तो मालूम हुआ कि यह जिहालत फैली हुई है कि जो पहुंचते ही नीर शरीफ में नहा लेता है उसका केस खत्म हो जाता है (शैतान जल जाता है) बल्कि बाज़ लोग नहाते हैं और नए नए कपड़े वहीं फेंक देते हैं खुद तो जाहिल होते हैं और जाने वाले ज़ाएरीन को जाहिल बना देते हैं, फिर उन से भी कपड़े फेंकवा देते हैं और यह ख्याल करते हैं कि शैतान उसी में था दूर हो गया जब कि बाज़ ऐसे गरीब होते हैं कि एक कपड़ा क्या एक रुमाल खरीदने की ताक़त नहीं रखते मगर जाहिलओं के कहने पर फेंक देते, यह जिहालत अक्सर औरतों के अंदर पाई जाती है कई दफा तो मैं ने कहा कि आप लोग सिर्फ कपड़ा ही क्यों फेंकती हैं बल्कि अपने ज़ेवरात सोने, चांदी को भी फेंक दिया करो कि उसमें भी शैतान रहता है मगर कुछ जवाब ना मिला खामोश रहीं
मेरे प्यारे इस्लामी भाइयो ! कुछ जाहिल तो यह रिवाज निकाल दिए हैं कि नीर में चालीस (४०) घड़ा और एक सौ एक (१०१) घड़ा नहाना चाहिए और उस गिनती को पूरी करने के लिए बेअदबी के साथ पानी को भर कर उसी जगह बैठ कर नहाते हैं और बुलंद आवाज़ से गिनती गिनते जाते हैं, जब कि शरीअत का हुक्म यह है कि खामोशी से गुस्ल करे यहां तक कि गुस्ल करते वक़्त कलमा, दरूद वगैरा भी ना पढ़े,(कुतुबे फिक़्ह)
मेरे इस्लामी भाइयो ! व इस्लाम की मुक़द्दस शहज़ादियो ! बताओ तो सही कि शरीअते मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कलमा दुरुद पढ़ने से मना किया है तो चिल्लाने और गिनती गिनने की इजाज़त कैसे मिल सकती है,इस लिए फक़ीर क़ादरी वाहिदी कहता है कि जाहिलों के चक्कर में ना पड़ो की जाहिल के चक्कर में आकर शरीअत से दूर हो जाओगे और जिहालत के क़रीब हो जाओगे अल्लाह तआला हर बंदे मोमिन मर्द औरत को शरीअत का पाबंद बनाए (आमीन)
मेरे इस्लामी भाइयो ! मेरे आक़ा रहमते आलम नूर ए मुजस्सम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया पाकी निस्फ ईमान है, लिहाज़ा रोज़ाना गुस्ल किया करो जहां तक हो सके सुब्ह नमाज़े फज्र से एक घंटा पहले उठो अपनी ज़रूरत से फारिग हो कर औलिया मस्जिद या अशरफुल मस्जिद या फिर जहां मौक़ा मिले वहीं नमाज़े फज्र अदा कर के हाज़री के लिए बैठ जाओ और औरतें ज़नानी मस्जिद में जाकर नमाज़ पढ़ें,
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(हाज़री के औक़ात)
हाज़री के लिए मंदर्जा ज़ेल औक़ात हैं जिसकी पाबंदी हर आने वाले ज़ाएरीन के लिए (जो हाज़री के गर्ज़ से आया है) ज़रूरी है औक़ात की पाबंदी के बगैर हाज़री का मक़सद फौत हो जाएगा और उसे फायदा ना हो पाएगा
पहली हाज़री : फज्र की नमाज़ से तुलू ए आफताब तक
दूसरी हाज़री : दस बजे दिन से लेकर बारह बजे दिन तक है
तीसरी हाज़री : नमाज़ असर से मगरिब की अज़ान तक
(हाज़री के लिए किस तरह बैठना चाहिए?)
हाज़री के लिए दोनों घुटनों को तोड़ कर ज़ानों के सहारे बैठे जैसे नमाज़ में अत्ताहियात पढ़ने के लिए बैठते हैं
नज़र नीची रखें,
चेहरा ऊपर उठा होना चाहिए,
दोनों हाथ ज़ानों पर रखे रहें हां जब ज़्यादा देर हो जाए और दर्द करने लगे तो जिस तरह हो सके बैठ जाएं मगर आराम होने पर फिर उसी तरह बैठ जाएं,
बाज़ लोग वहां जाकर अदालत के वक़्त सो जाते हैं और पूछने पर जवाब देते हैं कि मेरा गुप्ति में हाज़री चलता है,हालांकि यह अदब के खिलाफ है और जो ऐसा करते हैं उनका केस महीनों बल्कि सालों में नहीं खत्म होता,लिहाज़ा ऐ मेरे इस्लामी भाइयो ! व इस्लाम की मुक़द्दस शहज़ादियो ! खबरदार कोई ऐसा काम ना करना जिस से बेअदबी हो और खुद तुम को नुक़सान पहुंचे बल्कि वह काम करो जिस से अल्लाह तआला और उस के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम राज़ी हों, और हुजूर मखदूम अशरफ जहांगीर सिम्नानी रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू की रूह खुश हो,
काम वह ले लीजिए तुमको जो राज़ी करे
ठीक हो नामे रज़ा तुम पे करोड़ो दरूद
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(हाज़री के शराईत)
हाज़री की गर्ज़ से आए हुए ज़ाएरीन को मंदर्जा ज़ेल शर्तों की पाबंदी ज़रूरी है,
रोज़ाना गुस्ल करना,
हाज़री से पहले वज़ू करना,
हाज़री से पहले दो रकात नमाज़ नफ्ल पढ़ना,अलबत्ता नमाज़े फज्र और नमाज़े असर के बाद नमाज़े नफ्ल ना पढ़ें की मना है (बहारे शरीअत)
हाँ अगर किसी की नमाज़ क़ज़ा हो वह क़ज़ा नमाज़ पढ़ ले और जिस की नमाज़ क़ज़ा ना हो वह कुछ देर तक दुरूद शरीफ पढ़ कर उसका सवाब हुजूर सैयद मखदूम अशरफ जहांगीर सिम्नानी रहमतुल्लाह
अलैह की बारगाह में नज़र करदें
दौराने हाज़री किसी की तरफ ना देखें
दौराने हाज़री दिल में गलत खयालात ना लाएं
ऐसा लिबास ना पहनें जो बारीक हो या दौराने हाज़री सत्र खुल जाए,
खुशबू से परहेज़ करें
किसी से बात चीत ना करें और ना किसी की गीबत करें
बालों में इस तरह का तेल ना लगाएं कि जिस से महक निकले
क़ीमती ज़ेवर का इस्तेमाल ना करें
अगर मरीज़ा जवान है तो उसके साथ मोहरम कभी रहे
अय्यामे हैज़ में हाज़री के लिए ना जाएं , यहां तक कि अहात ए दरगाह में भी आना मना है
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(दौराने हाज़री क्या करें)
मेरे इस्लामी भाइयो ! व इस्लाम की मुक़द्दस शहज़ादियो ! जब हाज़री के लिए बैठें दो ज़ानो बैठें जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, दौराने हाज़री किसी से बात चीत ना करें और ना किसी की गीबत करें कीअल्लाह तआला फरमाता है कि
(یٰٓاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوا اجْتَنِبُوْا كَثِیْرًا مِّنَ الظَّنِّ اِنَّ بَعْضَ الظَّنِّ اِثْمٌ وَّ لَا تَجَسَّسُوْا وَ لَا یَغْتَبْ بَّعْضُكُمْ بَعْضًا اَیُحِبُّ اَحَدُكُمْ اَنْ یَّاْكُلَ لَحْمَ اَخِیْهِ مَیْتًا فَكَرِهْتُمُوْهُ وَ اتَّقُوا اللّٰهَ اِنَّ اللّٰهَ تَوَّابٌ رَّحِیْمٌ(۱۲)
ए ईमान वालो बहुत गुमान से बचो बेशक कोई गुमान गुनाह हो जाता है और ऐब ना ढूंढो और एक दूसरे की गीबत ना करो क्या तुम में कोई पसंद रखे गा कि अपने मरे भाई का गोश्त खाए तो यह तुम्हें गवारा ना होगा,और अल्लाह से डरो बेशक अल्लाह बहुत तोबा कुबूल करने वाला महर बानहै (कंज़ु ईमान सूरे हुजरात १२)
और हदीस शरीफ में हज़रत जाबिर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है की नबी करीम रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने फरमाया कि गीबत ज़िना से बदतर है, (मिशकात शरीफ)
हालांकि अक्सर औरतें दौरान हाज़री एक दूसरे की गीबत में सारा वक़्त खत्म कर देती हैं जिस से फायदा के बजाए नुक़सान पहुंचता है, इस्लाम की बांदियो ! खबरदार खबरदार किसी की गीबत ना करें, और पर्दे का खास ख्याल रखें बाज़ औरतें इतना बारीक कपड़ा पहनती हैं जिस से सत्र पोशी नहीं हो पाती, जब कि इस तरह का लिबास पहनना शरीयत ए मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में हराम है, और बाज़ औरतें बहुत बारीक दुपट्टा (ओढ़नी) ओढ़ती हैं इस तरह का दुपट्टा ओढ़ना हराम है, (बहारे शरीअत)
हदीस शरीफ में है कि हज़रत हफ्सा बिन्त अब्दुर्रहमान हज़रते आईशा रज़ि अल्लाहू तआला अन्हा के पास बारीक दुपट्टा ओढ़ कर आईं तो हज़रते आईशा रज़ि अल्लाहू तआला अन्हा ने उन का दुपट्टा फाड़ दिया और मोटा दुपट्टा ओढ़ा दिया, (मिशकात)
लिहाज़ा ऐ इस्लाम की मुक़द्दस शहज़ादीयो ! इस तरह के लिबास से परहेज़ करें और ना किसी को तकलीफ दें कि बैठने के लिए अक्सर औरतें झगड़ा कर लेती है यहां तक कि गाली गलौज भी बक देती हैं जब कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मुसलमान को गाली देना फिस्क़ व गुनाह है, (बुखारी शरीफ)
इस लिए किसी से ना बातें करें और ना झगड़ा करें बल्कि कुरआन शरीफ की सूरत या आयत जो भी याद हो उसे बार-बार पढ़ती रहें और अगर ना पढ़ी हों तो कलमा शरीफ व दुरूर शरीफ कसरत से पढ़ती रहें कि दुरूद शरीफ के बहुत फज़ाईल है,हदीस शरीफ में है
हज़रत अनस रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने कहा कि रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जो शख्स मुझ पर एक बार दुरूद शरीफ भेजेगा अल्लाह उस पर १० मर्तबा रहमते नाज़िल फरमाएगा और उसके १० गुनाह को माफ फरमाएगा और १० दर्जे बुलंद फरमाएगा (निसाई)
(صَلَّی اللّٰہُ عَلَی النَّبِّیِ الْاُمِّیِّ وَاٰلِہٖ ﷺصَلٰوۃًوَّسَلَاماً عَلَیْکَ یَا رَسُوْلَ اللّٰہ)
और हज़रते इब्ने मसऊद रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने कहा कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि कयामत के दिन लोगों में सब से ज़्यादा मेरे क़रीब वह शख्स होगा जिस ने सब से
ज़्यादा मुझ पर दुरूद भेजा है, (तिर्मीजी)
(صَلَّی اللّٰہُ عَلَی النَّبِّیِ الْاُمِّیِّ وَاٰلِہٖ ﷺصَلٰوۃًوَّسَلَاماً عَلَیْکَ یَا رَسُوْلَ اللّٰہ)
हज़रत फारूक़ ए आज़म रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने फरमाया दुआ ज़मीन व आसमान के दरमियान मुअल्लक़ (लटकी) रहती है उस में से कुछ ऊपर नहीं चढ़ता जब तक कि तू अपने नबी पर दुरूद ना
भेजे(तिर्मीजी)
(صَلَّی اللّٰہُ عَلَی النَّبِّیِ الْاُمِّیِّ وَاٰلِہٖ ﷺصَلٰوۃًوَّسَلَاماً عَلَیْکَ یَا رَسُوْلَ اللّٰہ)
ऐ मेरे प्यारे इस्लामी भाइयो ! अदालत के वक़्त अगर किसी की हाज़री चलने लगे तो खबरदार खबरदार उसे मोबाइल वगैरा में रिकॉर्ड (record) ना करें और ना वीडियो रिकॉर्ड (video record) करें कि इस में झगड़ा फसाद का अंदेशा है और आखिरत की अज़ाब की गिरिफ्त,जैसा की हदीस शरीफ में हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने फरमाया कि मैंने रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को फरमाते हुए सुना कि खुदा ए तआला के यहां सब से ज़्यादा अज़ाब उन लोगों को दिया जाएगा जो जानदार की तस्वीरबनाते हैं, (बुखारी)
मेरे प्यारे इस्लामी भाइयो ! जानदार की तस्वीर बनाना या फोटो खींचना या खिंचवाना सब हराम है लिहाज़ा इस काम से बचें ताकि आखिरत के अज़ाब से छुटकारा मिले अल्लाह तआला हर बंदे मोमिन मर्द औरत को समझने की तौफीक़ अता फरमाए (आमीन)
और ना हाज़री चलने की ख्वाहिश करें बल्कि इस तरह दुआ करें कि ए मेरे परवरदिगार ! ऐ मेरे पालनहार ! ए मेरे मौला ! तू ही सबको रोज़ी देता है, तू ही सब को शिफा देता है मेरे मअबूद मुझे (घर वालों को या जिस के लिए दुआ करनी हो उन का नाम लें बल्कि गादा ए वाहिदी कहता है कि हर बंद ए मोमिन के लिए दुआ करें मुझ फक़ीर को भी याद कर लें और कहें मौला) अपने प्यारे महबूब के महबूब हुजूर सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिम्नानी रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू के सदक़ा व तुफैल में शिफा अता फरमा, और शैतान के शर से ज़ालिमों को ज़ुल्म से हासिदों के हसद से महफूज़ फरमा और तमाम बला व मुसीबत से महफूज़ फरमा और जो बला और मुसीबतें आ चुकी हैं उन्हें दूर फरमा और आने वाली बलाओं को महफूज़ फरमा सुन्नियत पर क़ाएम व दाएम रख और खात्मा ईमान पर फरमा वगैरा (आमीन)
मगर हरगिज़ हरगिज़ कभी हाज़री चलने के लिए दुआ ना करें और ना कभी किसी के लिए बद्दुआ करें बल्कि दुश्मनों के लिए दुआ ए हिदायत करें कि इसी में कामयाबी है, जब अदालत का वक़्त खत्म होने वाला हो तो फातिहा पढ़ कर खूब दुआ मांगे कि मज़लूम और बीमार की दुआ अल्लाह रद्द नहीं करता बल्कि क़ुबूल करता है,
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(हाज़री के बाद क्या करे)
हाज़री (अदालत) खत्म होने के बाद नमाज़ का वक़्त हो गया हो तो नमाज़ पढ़ लें और अगर नमाज़ का वक़्त ना हुआ हो कि कुरान शरीफ की तिलावत करें कि हदीस शरीफ में है हज़रत इब्ने मसऊद रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने कहा कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जो शख्स किताबुल्लाह में एक हर्फ पढ़े तो उस को हर एक के बदले एक नेकी मिलेगी और हर नेकी दस नेकीयों के बराबर होगी (फिर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि) मैं अलिफ़ लाम मींम को को एक हर्फ नहीं कहता बल्कि अलिफ एक हर्फ है और लाम एक हर्फ है और मीम एक हर्फ है, यानी तीन हुरुफ हैं और पढ़ने पर तीस नेकिया मिलेंगी (मिशकात)
मज़ार शरीफ पर कब हाज़री देनी चाहिए?:.मज़ार शरीर पर हाज़री देने के लिए कोई वक़्त मुकर्रर नहीं जब भी मौक़ा मिले हाज़री दें लेकिन मंदर्जा ज़ेल बातों का खास ख्याल रखें
औरतें आस्तान ए आलिया पर नहीं जा सकती हैं बल्कि ज़ीना के बगल में ज़नानी मस्जिद है उसी में जाकर इबादत करें,
हाज़री देने से पहले वज़ू कर के २ रकात नमाज़े नफ्ल पढ़ कर हुजूर सैयद मखदूम अशरफ जहांगीर सिम्नानी रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू के रूह पाक को सवाब पहुंचा दें,खयाल रहे नमाज़ फज्रऔर असर के बाद व ज्वाल के वक्त नमाज़े नफ्ल ना पढ़ें कि मना है(बहारे शरीअत)
आस्ताना ए आलिया पर जाते वक़्त किसी को तकलीफ ना दें बल्कि अदब व एहतराम के साथ जाएं,
जब मज़ार पर जाएं तो नज़र नीची रखें और दुरूद शरीफ का विर्द करते हुए जाएं कुछ गुलाब का फूल ले जाकर पेश कर दें अगर चादर पेश करनी है तो फूल ही का चादर पेश करें कि हदीस शरीफ में हज़रत इब्ने अब्बास रज़ि अल्लाहू तआला अन्हुमा से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना तैयबा या मक्का मुअज़्ज़मा के बागात में से किसी बाग में तशरीफ ले गए तो दो आदमियों की आवाज़ सुनी जिन पर उनकी क़ब्र में अज़ाब हो रहा था, आपने फरमाया उन दोनों पर अज़ाब हो रहा है मगर किसी बड़ी बात पर नहीं फिर फरमाया हां (यानी खुदा ए तआला के नज़दीक बड़ी बात है) इन में से एक तो अपने पेशाब से नहीं बचता था और दूसरा चुगली किया करता था फिर आपने खजूर कि एक तर शाख मंगवाई और उसके दो टुकड़े किए और हर एक के क़ब्र पर एक एक टुकड़ा रख दिया, हुजूर से अर्ज़ किया गया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आपने क्यों किया ? फरमाया उम्मीद है कि जब तक यह शाखें खुश्क ना हो जाएं इन दोनों पर अज़ाब कम रहेगा(बुखारी शरीफ)
बरादराने इस्लाम ! इस हदीस से यह मालूम हुआ कि जब कोई पत्ता या शाख हरा हो तो तस्बीह पढ़ता है और जब उसको क़ब्र के ऊपर डाल दिया जाए तो उसकी तस्बीह से गुनाहगारों को राहत मिलती है,और ताकि पत्ते की तस्बीह से औलिया अल्लाह के मरातिब बुलंद हों इस लिए हमारे उलमा ए किराम फरमाते हैं की मज़ार या क़ब्र पर
फूल पेश करो कि हरा भी रहता है और खुशबू भी रहती है,
इस तरह से वह लोग भी सबक़ सीखें जो खड़े होकर पेशाब करते हैं, और छीटों से नहीं बचते और वह लोग जो एक दूसरे की चुंगली करते हैं
ऊपर जाते वक़्त बाज़ हज़रत झुक झुक कर चौखट को चूमते हैं बाज़ हज़रात मज़ार शरीफ की पाएती की जानिब चुमते हैं और चुमने में हद रुकूअ तक झुक जाते हैं बाज़ हज़रात सजदे की हालत में आ जाते हैं जब कि यह ममनूअ व नाजायज़ है,बल्कि अदब से जाकर सलाम पेश करें उस के बाद जहां जगह मिले खड़े हो कर जो कुछ हो सके पढ़ें और उसका सवाब हुज़ूर सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिम्नानी रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू और आपके भांजे अलहाज अब्दुल रज़्ज़ाक़ नूरुल ऐन रहमतुल्लाह अलैह के रुह पाक को पहुंचाएं,
मज़ार शरीफ के अंदर खुद्दाम रहते हैं उन्हें भी कुछ दे दें कि वह खिदमत करते हैं,अगर कोई बहस करे तो खबरदार खबरदार किसी से बहस व मुबाहसा ना करें और ना किसी से तकरार करें बल्कि ऐसे वक़्त में खामोशी एख्तियार करें कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया
(مَنْ صَمَتَ نَجَا)
यानी जो खामोश रहा उसने निजात पाई (तिर्मीजी)
लिहाज़ा ए नबी के गुलामों ! किसी से मत उलझना कि वह दरबार है मखदूम अशरफ है वहां खामूश रहना ही बेहतर है,
फातिहा पढ़ कर अदब के साथ वापस चले आएं की मज़ार शरीफ को या चादर को बोसा ना दें बल्कि यह ख्याल करें कि पाक दयारे अशरफ और कहां मुझ हक़ीर का मुंह, (यानी अपने आप को उस लाएक़ ना समझे कि मैं हुज़ूर के चादर को बसा दूं)
पश्चिम जो मज़ार है वह हुज़ूर सैयद मखदूम अशरफ रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू का है और जो पूरब (मज़ार) है आप के भांजे अलहाज अब्दुर रज़्ज़ाक़ नूरुल ऐन का है,
बाज़ लोग आते वक़्त मज़ार शरीफ से गुलाब का फूल उठा लेते हैं ऐसा हर्गिज़ ना करें अगर लेना हो तो जो फूल सूख चुका है उसी को लें ताज़ा फूल हर्गिज़ ना लें कि ताज़ा फूल अल्लाह की तस्बीह करता है कि ताज़े फूल को उठाना साहिबे क़ब्र के हक़ को मारना है,
हाज़री देने में यह ख्याल रखें कि जब ज़्यादा भीड़ हो तो ऊपर ना जाएं बल्कि नीचे ही से फातिहा पढ़ लें बाज़ लोग धक्का देकर जाते हैं जिस से लोगों को तकलीफ होती है अक्सर बच्चों और ज़ईफों को तकलीफ होती है लिहाज़ा जब भीड़ हो तो अशरफुल मस्जिद से या जहां जगह मिले वहीं से फातिहा पढ़ लें,जैसा कि हज़रत वारिसे पाक रहमतुल्लाह अलैह सलामी गेट से फातिहा पढ़ कर वापस चले जाते थे, कई दफा फक़ीर वाहिदी भीड़ की वजह से अंदर दाखिल नहीं हुआ बल्कि अशरफुल मस्जिद से फातिहा पढ़ कर वापस चला आया कि बुजुर्गों से सुना था,बा अदब बा नसीब - बे अदब बे नसीब
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(क्या शैतान के कहने पर अमल करना ज़रूरी है)
बाज़ दफा ऐसा होता है कि हाज़री चलती है और शैतान उल्टी-सीधी बातें बकता है लोग उसे शरीअत समझ लेते हैं और उस पर अमल करना शुरू कर देते हैं जब कि बाज़ काम ऐसे होते हैं जो शरअन नाजायज़ व हराम होते हैं और बाज़ कुफ्र मसलन शैतान ने कहा कि आज मज़ार शरीफ का चक्कर लगाओ तो लोग मज़ार के गिर्द चक्कर लगाना शुरू कर देते हैं जब कि खाने काबा के अलावा किसी भी क़ब्र या मज़ार का तवाफ नहीं कर सकते कि शरीअत ए मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में मना है,(माखूज़ : फतावा रज़विया शरीफ)
मगर लोग मानते नहीं कभी तो ऐसा होता है कि शैतान के कहने पर उस तालाब में नहाते हैं जिसको बैठका कहते हैं जब के मज़ार शरीफ के इर्द-गिर्द जो मकानात हैं उन सब का और बैतूल खुला का पानी उसी तालाब में गिरता है,अफसोस सद अफसोस की नीर शरीफ के पानी को छोड़ कर (जिसमें आबे ज़मज़म का पानी मिलाया गया जो मरीज़ों के लिए शिफा है) उस गंदे तालाब में नहाते हैं जो नापाक है कुछ लोग तो बिलाई बीबी जाकर वहां के तालाब में नहाते हैं जबकि वहां का भी पानी गंदा हैं
मअज़ अल्लाह बाज़ लोग कमाल पंडित मंदिर पर जाकर घंटा बजाते हैं, और पूजा करते हैं और शैतान के कहने पर वहां भी चक्कर लगाते हैं जब कि यह कुफ्र है,बाज़ लोग शैतान के कहने पर मां, बाप, भाई, बहन से रिश्ता तोड़ देते हैं फिर हमेशा हमेशा के लिए तअल्लुक़ खत्म कर देते हैं, बाज़ लोग झगड़ा लड़ाई भी कर लेते हैं जिसकी वजह से थाना कोर्ट कचहरी जाना पड़ता है, जब कि उन्हें मालूम होना चाहिए कि अल्लाह ने कुरआन में फरमाया की "शैतान इंसान का खुला दुश्मन है" उसके बावजूद भी लोग शैतान के बातों को मानते हैं,
ऐ नबी करीम के गुलामों ! व इस्लाम के मुक़द्दस शहज़ादियो होश में आओ अक़्ल से काम लो वरना कहीं के ना रह जाओगे
ना खुदा ही मिला ना विसाले सनम
ना इधर के रहे ना उधर के रहे
ठीक यही होगा कि दुनिया तो बर्बाद हो जाएगी और आखिरत भी लिहाज़ा जब शैतान कोई बयान दे (ख्वाह वह कहे कि मैं मुवक्किल हूं या जिन हूं) तो उसको गौर से सुन लो फिर किसी आलिम से पूछ लो कि यह शरीअत के खिलाफ तो नहीं है अगर शरीअत के खिलाफ है तो उस का कहना ना मानो और अगर शरीअत के दायरे में है तो उसको कर डालो कि उस में फायदा है मगर शैतान के कहने पर नहीं बल्कि शरीअत समझ कर
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(गुस्ल शरीफ)
हुजूर सरकार मखदूम अशरफ जहांगीर सिम्नानी रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू व आपके भांजे अलहाज अब्दुर रज़्ज़ाक़ नूरुल एन रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार मुक़द्दसा को अत्र गुलाब के पानी और केवड़े से धोया जाता है और वह पानी हिफाज़त से रख लिया जाता है कि मरीज़ों के लिए शिफा है और शयातीन के लिए ज़हर है वह पानी आसेब ज़दा को पिलाया जाए तो आसेब खत्म हो जाए उस पानी को हासिल करने के लिए गुस्ल शरीफ से पहले गुलाब का पानी खरीद कर लहद खाना में जमा कर दें और रसीद ले लें लेकिन ख्याल रहे कि जब लें तो देखभाल कर लें फिर जब गुस्ल शरीफ हो जाए तो सुब्ह रसीद लेकर लहद खाना में जाएं (जहां जमा किए थे) और जितना बाटल जमा किए थे वह हासिल कर लें फिर हिफाज़त से रख कर घर ले आएं,
गुस्ले शरीफ किस तारीख में होता है :.इस के लिए कोई तारीख मुक़र्रर नहीं है बल्कि सज्जादा नशीन हज़रत अल्लामा सैय्यद फखरुद्दीन साहब क़िबला व सैयद मोहम्मद मोहिउद्दीन साहब क़िबला की मर्ज़ी से तारीख मुक़र्रर किया जाता है अलबत्ता इतना ज़रूर है कि ईद और बक़रा ईद के दरमियान (बीच) गुस्ल शरीफ होता है जुमेरात दिन गुज़ार कर शाम में खिताब होता है जिस में तमाम उलमा व शोअरा की तशरीफ आवरी होती है इस फक़ीर क़ादरी वाहिदी को भी हाज़री देने का शर्फ हासिल होता है और फिर तक़रीर करने का मौक़ा भी मिलता है दुआ है मौला करीम हर साल इस मजलिस में शिरकत की सआदत नसीब फरमाए (आमीन)
दो तीन बजे तक यह मजलिस चलती है फिर सज्जादा नशीन का आखिरी खिताब होता है और अवाम व ख्वास के लिए हज़रत दुआ करते हैं इसी रात में दो बजे के बाद हुज़ूर के मज़ारे मुक़द्दसा को (उसी पानी से जो अवाम जमा करते हैं) गुस्ल दिया जाता है उस में सिर्फ सज्जादा नशीन के अहल व अयाल होते हैं फिर उसके बाद अवाम मिट्टी के घड़े में नीर शरीफ का पानी भर कर मज़ार मुक़द्दसा पर हाज़िर होकर मज़ार के बाहरी हिस्सा को गुस्ल देते हैं और जो बाहर सज्जादा नशीन के मज़ारात हैं उनको गुस्ल देते हैं, जिस से काफी भीड़ होती है यहां तक कि कई घड़े गिर जाते हैं और लोगों को तकलीफ पहुंचती है,लिहाज़ा जब भीड़ हो तो ऊपर जाने की कोशिश ना करो जिस से लोगों को तकलीफ हो कि मज़ार पर जाकर गुस्ल देना तुम्हारे ज़िम्मा ना फर्ज़ है ना वाजिब बल्कि मुसलमान को तकलीफ पहुंचाना हराम है, लिहाज़ा भलाई इसी में है कि ऊपर ना जाएं बल्कि नीचे ही रह कर दुआ मांग लें और उम्मीद रखें कि हुजूर हमारी फरियाद को भी सुनेंगे और फैज़ान से माला माल करेंगे,फिर जब नमाज़े फज्र का वक़्त हो जाए तो नमाज़ अदा कर लो बाज़ लोग उपर भीड़ में फंस जाते हैं जिस की वजह से नमाज़ फज्र क़ज़ा हो जाती है, लिहाज़ा नमाज़ का खास ख्याल रखें की नमाज़ छोड़ कर आप फैज़ाने अशरफ से माला माल नहीं हो सकते, फिर सुब्ह यानी जुम्मा के दिन संदल पोशी होती है और बाद नमाज़ जुम्मा गुस्ल का पानी लेकर ज़ाएरीन अपने-अपने घर रुखसत हो जाते हैं, अल्लाह तआला सब के सफर को कामियाब बनाएं (आमीन)
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उर्से अशरफी
साल में एक दफा इस्लामी तारीख के हिसाब से छब्बीस (२६) सत्ताइस (२७) अठाइस (२८) मुहर्रमुल हराम को उर्स होता है, लेकिन अस्ल तारीख २८ मोहर्रमुल हराम है कि हुजूर सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिम्नानी रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू का विसाल २८ मुहर्रमुल हराम को हुआ है इस तारीख में सज्जादा नशीन हुजूर का खिरक़ा शरीफ पहन कर मज़ार शरीफ के बाहर चौखट पर तशरीफ लाते हैं अवाम व ख्वास के लिए दुआ करते हैं फिर रुखसत हो जाते हैं, बाज़ लोग उस लिबास और छड़ी को बोसा देते हैं जब कि यह माना है कि भीड़ काफी होती है हर कोई बोसा देने की कोशिश करता है जिस से लोगों को तकलीफ पहुंचती है यहां तक कि साहिबे सज्जादा को तकलीफ होती है रास्ता चलना दुशवार हो जाता है,लिहाज़ा हर्गिज़ हर्गिज़ ऐसा ना करें बल्कि यह खयाल करें कि कहां वह पाक लिबास पाक छड़ी को जिस को हुज़ूर सैय्यद मखदूम अशरफ रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू के जिस्म ने बोसा दिया हो भला हम कैसे गुनहगार हाथों से छू सकते हैं फिर अवाम को धक्का देकर तकलीफ पहुंचाना खुद साहिबे सज्जादा को ऐज़ा पहुंचाना क्या यह दुरुस्त है ?नहीं हरगिज़ नहीं बल्कि शरीअत का हुक्म तो यह है कि किसी मुसलमान को तकलीफ ना पहुंचाओ बताओ तो सही कि साहिबे सज्जादा जो आले रसूल सैय्यद हैं उनको तकलीफ पहुंचाने के लिए शरीअत कैसे इजाज़त दे सकती है,अल्लाह तआला हर बंद ए मोमिन को समझ आता फरमाए, जिहालत से बचाए, शरीअत ए मुस्तफा रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू का पाबंद बनाए, शरीअत की रौशनी में जिंदगी गुज़ारने की तौफीक़ अता फरमाए, खात्मा ईमान पर फरमाए, शैतान के शर से ज़ालिमों के जुल्म से और हासिदों के हसद से महफूज़ फरमाए
آمین بجاہ سیدالمرسلین
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(वज़ू करने का तरीक़)
. वज़ू करने का तरीक़ा यह है कि पहले नियत करे फिर बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम पढ़ कर मिस्वाक करे अगर मिस्वाक ना हो तो उंगली से दांत मले, फिर दोनों हाथों को गट्टों तक तीन बार धोए पहले दाहिने हाथ पर पानी डाले फिर बाएं हाथ पर दोनों को एक साथ ना धोए, फिर दाहिने हाथ से तीन बार कुल्ली करे और दाहिने हाथ से तीन बार नाक में पानी चढ़ाए, फिर पूरा चेहरा धोए, यानी पेशानी पर बाल उगने की जगह से थोड़ी के नीचे तक एक कान की लौ से दूसरे कान की लौ तक हर हिस्से पर पानी बहाए और दाढ़ी के बाल व खाल को धोए, हां अगर दाढ़ी के बाल घने हो तो खाल का धोना फर्ज़ नहीं बल्कि मुस्तहब है, फिर दोनों हाथों को केहनियों समेत तीन बार धोए उंगलियों की तरफ से केहनियों के ऊपर तक पानी डाले केहनियों की तरफ से ना डालें, फिर एक बार दोनों हाथों से पूरे सर का मसह करे, फिर दोनों पांव टखनो समेत तीन बार
नोट:बाज़ लोग चेहरे को धोने में लापरवाही करते हैं और सिर्फ आंख, नाक, गाल, धो लेते हैं इस तरह धोने से वज़ू ना होगा बल्कि पूरा चेहरा धोए कि यह वज़ू का पहला फर्ज़ है, अगर एक बाल के बराबर धोने से रह गया तो वज़ू ना होगा,
बाज़ लोग दोनों हाथों को मिला करके थोड़ा सा पानी चुल्लू में लेकर हाथ टेढ़ा कर लेते हैं इस तरह पूरा हाथ नहीं धुलता और ना हर अज़ू पर पानी पहुंचता है, इस तरह धोने से वज़ू ना होगा कि यह दूसरा फर्ज़ है,
बाज़ औरतें मस्ह करने के बजाए सर से दुपट्टा हटा कर ओढ़ लेती हैं, इस तरह मस्ह ना होगा, बल्कि चौथाई सर का मस्ह करे कि यह तीसरा फर्ज़ है,
बाज़ लोग पैर को रख कर लापरवाही से पानी डाल देते हैं इस तरह वज़ू ना होगा, बल्कि पैर को उठा लें की एड़ी के नीचे पानी बह जाए और उंगलियों का खिलाल करे ताकि पानी हर अज़ू से बह जाए, अगर एक बाल के बराबर धुलने से रह गया तो वज़ू ना होगा कि यह चौथा फर्ज़ है,
धोने से मुराद हर आज़ा पर कम से कम दो बूंद पानी बह जाना ज़रूरी है,
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(गुस्ल करने का तरीक़ा)
गुस्ल करने का तरीक़ा यह है कि पहले गुस्ल की नियत करे फिर दोनों हाथ गट्टों तक तीन मर्तबा धोएं फिर इस्तिंजा की जगह ख्वाह निजासत लगी हो या ना लगी हो फिर बदन पर जहां कहीं ले निजासत लगी हो उसको धोए फिर नमाज़ की तरह वज़ू करे,अलबत्ता पैर ना धोए हां ऊंची जगह तख्त वगैरा पर नहाता हो तो पैर भी धो ले फिर बदन पर तेल की तरह पानी चपड़े, फिर तीन मर्तबा दाहिने मोंढ़े पर और तीन मर्तबा बाए मोंढ़े पर फिर तीन मर्तबा सर पर और तमाम बदन पर पानी बहाए, इस तरह की पूरा जिस्म भीग जाए फिर पैर ना धोया हो तो अलग हटकर पैर धो ले,ध्यान रहे कि गुस्ल में तीन चीजें फर्ज़ है
कुल्ली करना(२) नाक में पानी डालना(३) पूरे बदन पर पानी बहाना
कुल्ली इस तरह करे कि मुंह के हर पुर्जे़ हर गोशे होंट से हालक़ के जड़ तक हर जगह पानी बह जाए, अगर दांत में कोई चीज़ अटकी हुई हो जैसे गोश्त का रेशा पान की पत्ती वगैरा तो उसको छुड़ाना ज़रूरी है कि बे छुड़ाए गुस्ल ना होगा और ना नमाज़ होगी,
नाक में पानी इस तरह चढ़ाए की हथेली पर रखकर नाक के क़रीब ले जाए और सुन्घ कर ऊपर चढ़ाए की बाल के बराबर भी जगह धुलने से ना रह जाए वरना गुस्ल ना होगा, औरतें नाक कान में किल वगैरा पहनती हैं इसका भी खास ख्याल रखें और सुराख में भी पानी पहुंचाएं, अगर नाक में बाल हो तो उसका धोना फर्ज़ है, और अगर रींठ सुखी हो तो उसे भी छुड़ाएं कि उसका छुड़ाना फर्ज़ है, बगैर छुड़ाए गुस्ल ना होगा,
पूरे बदन पर पानी बहाना इस तरह की सर से लेकर पांव के तलवे तक हर रोंगटे हर पुर्ज़े पर पानी बहे अगर एक बाल की नोक भी धुलने से रह गया तो गुस्ल ना होगा
नोट बहुत लोग नापाक कपड़े को पहनकर गुस्ल करते हैं मसलन एहतिलाम हुआ और उसी कपड़े में गुस्ल करते हैं और यह ख्याल करते हैं कि नहाने में सब पाक हो जाएगा हालांकि ऐसा नहीं है बल्कि पानी डालकर तहबंद और बदन पर हाथ फेरने से निजासत फैलती है और सारे बदन और नहाने के बर्तन तक को नजिस कर देती है, इसलिए हमेशा नहाने में बहुत ख्याल से नहाना चाहिए पहले बदन और से और उस कपड़े से जिसको पहनकर नहाना है निजासत दूर कर ले तब गुस्ल करे वरना गुस्ल तो किया होगा बल्कि उस तर हाथ से जिन चीजों को छूएंगे सब नजिस हो जाएंगी,
बाज़ लोग नहाते वक़्त गुफ्तगू करते रहते हैं यह भी मना है यहां तक कि नहाते वक़्त कलमा दरूद शरीफ वगैरा भी ना पढ़ें बल्कि खामोश होकर नहाएं,
बाज़ लोग रान खोलकर नहाते हैं इस तरह नहाना हराम है बल्कि मर्द को घुटने से नाफ तक छुपाना फर्ज़ है और औरत को पूरा जिस्म छिपाना फर्ज़ है, हां गुस्ल खाना में नहाता हो तो कोई हर्ज नहीं बल्कि गुस्ल खाना में नंगा भी नहा सकता है लेकिन एहतियात करनी चाहिए,
बाज़ औरतें सर से दुपट्टे को हटाकर मर्दो के सामने नहाती हैं इस तरह नहाना हराम है,
गुस्ल करते वक़्त खामोश रहे कोई दुआ वगैरा ना पढ़े(माखूज़ अज़: बहारे शरीअत हिस्सा२)
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(मज़ाराते औलिया पर औरतों का जाना कैसा है)
सवाल:. क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में मज़ाराते औलिया पर औरतों का जाना कैसा है ? और अगर कोई औरत सही मानों में आसेब ज़दा हो तो क्या वह जा सकती है?
साईल :.मोहम्मद सलमान रज़ा वाहिदी जवाब सरकार आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू तहरीर फरमाते हैं कि गुनिया में है यह ना पूछ कि औरतों का मज़ार पर जाना जायज़ है या नहीं ? बल्कि यह पूछो कि उस पर किस क़द्र लानत होती है अल्लाह तआला की तरफ से और किस क़द्र साहिबे क़ब्र की जानिब से जिस वक़्त वह घर से इरादा करती है लानत शुरू हो जाती है और जब तक वापस आती है मलाईका लानत करते रहते हैं सिवा ए रोज़ा ए रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के किसी मज़ार पर जाने की इजाज़त नहीं वहां की हाज़री अलबत्ता सुन्नते जलीला अज़ीमा क़रीब बवाजिबात है और क़ुरआन करीम ने उसे मगफिरत का ज़रिया बनाया(अलमलफूज़ सफा २४०/रज़वी किताब घर दिल्ली)
फतावा रज़विया शरीफ में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं
(عن ﷲ زوارت القبور)
क़ब्रों की ज़ियारत को जाने वाली औरतों पर अल्लाह की लानत है (मुसनद अहमद बिन हंबल हदीस ए हस्सान बिन साबित दारुल फिक्र बैरुवत / ३ / ४४२)
और फरमाते हैं सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम
(کنت نھیتکم عن زیارۃ القبور الافزوروھا )
मैंने क़ब्रों की ज़ियारत से मना किया था सुन लो अब उनकी ज़ियारत करो (सुनन इब्ने माजा अबवाबुल जनाएज़ एच एम सईद कंपनी कराची)
उलमा को एख्तिलाफ हुआ कि आया इस इजाज़त बादे इलाही में औरात भी दाखिल हुई या नहीं, असह यह है की दाखिल हैं कमा फिल बहरुर्राईक़ मगर जवान औरतों को ममनूअ है जैसे मसाजिद से और अगर तजदीदे हुज़्न मक़सूद हो तो मुतलक़न हराम
अक़ूलू (सरकारे आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू फरमाते हैं मैं कहता हूं) क़ुबूरे अक़रबा पर खुसूसन बहाले क़ुर्बे अहद मिम्मात तजदीदे हुज़्न लाज़िमे निसा है और मज़ाराते औलिया पर हाज़री में अहदिश्शनाअतैन का अंदेशा या तर्के अदब या अदब में अफरात नाजायज़ तो सबील इतलाक़ मना है व लिहाज़ा गुनिया में कराहत पर जज़म फरमाया अलबत्ता हाज़री व खाक बोसी आस्ताने अर्शे निशाने सरकारे आज़म सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आज़मुल मंदुबात बल्कि क़रीब वाजिबात है, इससे ना रोकेंगे और तअदीले अदब सिखाएंगे (फतावा रज़विया जिल्द ९ सफा ५३८/दावते इस्लामी)
एक दूसरी जगह फरमाते हैं : अब ज़्यारते क़ुबूर औरतों को मकरुह ही नहीं बल्कि हराम है, यह ना फरमाया कि वैसी को हराम है ऐसी को हलाल है, वैसी को तो पहले भी हराम था, इस ज़माना की किया तखसीस
नोट : मज़ीद मालूमात के लिए फतावा रज़विया जिल्द९ सफा ५२४से मुताला करें
मज़कूरा बाला इबारत से वाज़ेह हो गया कि औरतों का मज़ाराते औलिया पर जाना नाजायज़ व हराम है लेकिन अगर कोई औरत आसेब ज़दा हो तो बगर्ज़ ए इलाज जा सकती है, जब कि किसी और तरीक़े से ठीक ना हो, जैसा कि आज कल आमिलीन हैं कि रुपये का सवाल पहले करते हैं काम कुछ नहीं इल्ला माशा अल्लाह फिर बहुत से गरीब ऐसे हैं कि पैसा भी नहीं दे सकते तो अगर सही मानों में आसेबी है और मज़ाराते औलिया पर जाने से शिफा मिल रहा है, जैसे किछौछा शरीफ या दीगर मज़ाराते औलिया से लोगों को फायदा पहुंचता है तो शरअन इजाज़त है क्योंकि यह मजबूरी है जैसे गैर महरम को सत्र दिखाना हराम है मगर बगर्ज़ ए इलाज डॉक्टर को दिखाने की इजाज़त है और उसका सबूत क़ुरआन करीम से है इरशाद ए रब्बानी है
(اِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيْکُمُ الْمَيْتَةَ وَالدَّمَ وَلَحْمَ الْخِنْزِيْرِ وَمَآ اُهِلَّ بِهٖ لِغَيْرِ اللّٰهِ ۚ فَمَنِ اضْطُرَّ غَيْرَ بَاغٍ وَّلَا عَادٍ فَلَا اِثْمَ عَلَيْهِ اِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ)
उस ने यही तुम पर हराम किए हैं मुर्दार और खून और सूअर का गोश्त और वह जानवर जो गैर खुदा का नाम लेकर ज़िबह किया गया तो जो नाचार हो ना यूं की ख्वाहिश से खाए और ना यूं की ज़रूरत से आगे बढ़े तो उस पर गुनाह नहीं बेशक अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है (कंज़ुल ईमान, सूरह बक़रा आयत नंबर १७३)
यानी अल्लाह तआला ने मुर्दार खून और सूअर का गोश्त हराम फरमाया मगर साथ ही इरशाद फरमाया कि जो कोई ना चार हो यानी मजबूर तो खा सकता है, इस मिक़दार में कि उसकी जान बच जाए यानी ज़रूरत से ज़्यादा ना खाए और ना बगैर ज़रूरत यानी ख्वाहिश से खाए यूं ही वह ख्वातीन जो सही मानों में आसेब ज़दा हैं और उनका इलाज किसी और तरीक़े से नहीं हो पा रहा है तो वह इतने दिन के लिए मज़ाराते औलिया पर जा सकती हैं कि उनकी परेशानी दूर हो जाए मगर इसमे भी शर्तें हैं जो मुंदरजा ज़ैल हैं
शौहर या किसी मोहरम के साथ हों
बेहतर उम्दा लिबास में ना हों जिस से गैरों का दिल उनकी तरफ माइल हो
बगैर ज़ीनत के हों ना कि सिंगार वगैरा कर के जाना जैसे कि अक्सर औरतें कर के जाती हैं
मर्द औरत का खलत मलत ना हो
पर्दे का मुकम्मल इंतज़ाम हो इन शर्तों के साथ अगर कोई औरत जाती है तो बवजहे मजबूरी रुखसत यानी इजाज़त है मगर याद रहे कि वहां जाकर अपनी मर्ज़ी से हाज़री ना लगाए, (यानी मकर कर के चिल्लाए शोर व गुल करे) जैसा कि मुशाहिदा है कि अक्सर औरतें मकर करती हैं और झूठ बोल कर भाई रिश्तेदार को बदनाम करती हैं, हां अगर शैतान उपर हाज़िर हो कर कुछ चिल्लाए तो कोई बात नहीं मगर उस वक़्त भी पर्दे का मुकम्मल खयाल रखा जाए और अगर कुछ ना हुआ हो यूं ही हाज़री लगाना औरतों को क़तअन जायज़ नहीं, जैसा कि अक्सर औरतें हर जुमेरात को मज़ाराते औलिया पर हाज़री लगाती रहती हैं वह भी उम्दा उम्दा लिबास पहन कर मुकम्मल सिंगार कर के यह शरअन जायज़ नहीं जैसा कि मज़कूरा बाला इबारत से ज़ाहिर है
آمین یا رب العلمین بجاہ سید المرسلین ﷺ
अज़ क़लम
फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी
गायडीह पोस्ट चमरुपुर जिला बलरमपुर यू पी
१ रबीउल अव्वल १४३५ हिजरी
मुताबिक़ ३ जनवरी २०१४ ई०
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी
(दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)
२७ जमादिल अव्वल १४४३ हिजरी
०१ जनवरी २०२२ ईस्वी
दिन शनिवार