खिचड़े को हलीम कहना कैसा है

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खिचड़े को हलीम कहना कैसा है

 सवाल  क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में कि खिचड़े को हलीम कहना कैसा है ? बाज़ लोग कहते हैं कि हलीम अल्लाह तआला का नाम है इस लिए हलीम नहीं कहना चाहिए क्या हलीम कहने से अल्लाह तआला के नाम की तौहीन होती है

साईल मौलाना रिज़वानुल क़ादरी

 जवाब  खिचड़े का नाम हलीम है तो खिचड़े को हलीम कहना जायज़ है अगर्चे हलीम अल्लाह तआला के सिफाती नामों में से है फिर भी खिचड़े को हलीम नाम होने की नियत से हलीम कहने में क़बाहत नहीं
 क्यों कि अमल का दारो मदार नियत पर मौक़ूफ है

(کما قال رسول اللہ ﷺ انما الاعمال بالنیات‘‘)


         और अगर मान लिया जाए कि हलीम अल्लाह का नाम है इसलिए हलीम ना कहा जाए तो फिर बहुत ऐसे सिफाती नाम अल्लाह के हैं जो गैरुल्लाह के लिए मुस्तअमल हैं जैसे 

वारिस
वकील
मुतकब्ब्र
 ज़ाहिर
 बातिन
 अहद
 वाहिद
 मुसौव्विर
अज़ीज़
 वली
 हकीम
 मोमिन
 शहीद

 वारिस  यह अल्लाह तआला के सिफाती नामों में से एक नाम है मगर गैरुल्लाह के लिए भी मुस्तअमल है जैसे फुलां मैयत का वारिस है, बहन का वारिस है, औरत का वारिस है, जगह का वारिस है, खेत का वारिस है और इस को कुरआन ने कई मक़ामात पर ज़िक्र किया है चंद आयात दर्ज हैं मुलाहिज़ा हों 

(’’ یٰٓاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا یَحِلُّ لَكُمْ اَنْ تَرِثُوا النِّسَآءَ كَرْهًا‘‘)

 ऐ ईमान वालो तुम्हें हलाल नहीं की औरतों के वारिस बन जाओ जबरदस्ती (कंज़ुल ईमान सूरह निसा १९)

(۲)’’ قَالَ مُوْسٰى لِقَوْمِهِ اسْتَعِیْنُوْا بِاللّٰهِ وَ اصْبِرُوْآ۔اِنَّ الْاَرْضَ لِلّٰهِ  یُوْرِثُهَا مَنْ یَّشَآءُ مِنْ عِبَادِهٖ۔وَ الْعَاقِبَةُ لِلْمُتَّقِیْنَ‘‘)

 मूसा (अलैहिस्सलाम) ने अपनी क़ौम से फरमाया अल्लाह की मदद चाहो और सब्र करो बेशक ज़मीन का मालिक अल्लाह है अपने बंदों में जिसे चाहे वारिस बनाए और आखिर मैदान परहेज़गारों के हाथ है (कंज़ुल ईमान एअराफ १२८)

(۳) وَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا بَعْضُهُمْ اَوْلِیَآءُ بَعْضٍ۔اِلَّا تَفْعَلُوْهُ تَكُنْ فِتْنَةٌ فِی الْاَرْضِ وَ فَسَادٌ كَبِیْرٌ‘‘)

 और काफिर आपस में एक दूसरे के वारिस हैं ऐसा ना करोगे तो ज़मीन में फितना और बड़ा फसाद होगा (कंज़ुल ईमान अनफाल ७३)

(۴) وَ لَا تَقْتُلُوا النَّفْسَ الَّتِیْ حَرَّمَ اللّٰهُ اِلَّا بِالْحَقّ۔وَ مَنْ قُتِلَ مَظْلُوْمًا فَقَدْ جَعَلْنَا لِوَلِیِّهٖ سُلْطٰنًا فَلَا یُسْرِفْ فِّی الْقَتْلِ۔اِنَّهٗ كَانَ مَنْصُوْرًا)

 और कोई जान जिस की हुरमत अल्लाह ने रखी है ना हक़ ना मारो और जो ना हक़ मारा जाए तो बेशक हमने उस के वारिस को क़ाबू दिया है तो क़त्ल में हद से ना बढ़े ज़रूर उसकी मदद होनी है (कंज़ुल ईमान बनी इसराइल ३३)

(۵)’’ وَ لَقَدْ كَتَبْنَا فِی الزَّبُوْرِ مِنْۢ بَعْدِ الذِّكْرِ اَنَّ الْاَرْضَ یَرِثُهَا عِبَادِیَ الصّٰلِحُوْنَ)

 और बेशक हमने ज़बूर में नसीहत के बाद लिख दिया कि उस ज़मीन के वारिस मेरे नेक बंदे होंगे (कंज़ुल ईमान अंबिया १०५)

     देखें मज़कूरा बाला आयत में गैरुल्लाह को वारिस कहा गया है मसलन नंबर १ में औरतों के वारिस, नंबर दो में ज़मीनों के वारिस, नंबर ३ में काफिरों को काफिर का वारिस, नंबर ४ में घर वालों को वारिस, नंबर ५ में भी ज़मीन का वारिस कहा गया है, इस के अलावा कई एक आयाते करीमा है जिस में गैरुल्ला को वारिस कहा गया है, अब अगर यह कहा जाए कि वारिस अल्लाह का नाम है लिहाज़ा दूसरों को ना कहा जाए तो इन आयते करीमा का जवाब क्या होगा ?

(०२) वकील  यह भी अल्लाह तआला के सिफाती नामों में से एक नाम है मगर गैरुल्लाह के लिए भी मुस्तअमल है, जैसे फुलां बंदा वकील है, फुलां वकील बहुत माहिर है हत्ता कि क़ुरआन में है

(هٰٓاَنْتُمْ هٰۤؤُلَآءِ جٰدَلْتُمْ عَنْهُمْ فِی الْحَیٰوةِ الدُّنْیَا۔ فَمَنْ یُّجَادِلُ اللّٰهَ عَنْهُمْ یَوْمَ الْقِیٰمَةِ اَمْ مَّنْ یَّكُوْنُ عَلَیْهِمْ وَكِیْلًا)

 सुनते हो यह जो तुम हो दुनिया की जिंदगी में तो उन की तरफ से झगड़े तो उन की तरफ से कौन झगड़ेगा अल्लाह से क़ियामत के दिन या कौन उनका वकील होगा (कंज़ुल ईमान, सूरह निसा १०९)

(०३) मुतकब्बिर  यह भी अल्लाह तआला के सिफाती नामों में से एक नाम है मगर गैरुल्लाह के लिए भी मुस्तअमल है, जैसे फुलां बंदा मुतकब्बिर है यानी तकब्बुर करने वाला, घमंडी क़ुरआन में कई मक़ामात पर गैरुल्लाह को मुतकब्बिर कहा गया है मुलाहिज़ा हो

(۱) قَالَ الْمَلَاُ الَّذِیْنَ اسْتَكْبَرُوْا مِنْ قَوْمِهٖ لَنُخْرِجَنَّكَ یٰشُعَیْبُ وَ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا مَعَكَ مِنْ قَرْیَتِنَآ اَوْ لَتَعُوْدُنَّ فِیْ مِلَّتِنَا۔قَالَ اَوَ لَوْ كُنَّا كٰرِهِیْنَ)

 उस की क़ौम के मुतकब्बिर सरदार बोले ऐ शुऐब क़सम है कि हम तुम्हें और तुम्हारे साथ वाले मुसलमानों को अपनी बस्ती से निकाल देंगे या तुम हमारे दीन में आ जाओ कहा क्या अगर्चे हम बेज़ार हो (कंज़ुल ईमान, सूरह एअराफ ८८)

(۲)وَ قَالَ مُوْسٰۤى اِنِّیْ عُذْتُ بِرَبِّیْ وَ رَبِّكُمْ مِّنْ كُلِّ مُتَكَبِّرٍ لَّا یُؤْمِنُ بِیَوْمِ الْحِسَابِ)

और मूसा ने कहा मैं तुम्हारे और अपने रब की पनाह लेता हूं हर मुतकब्बिर से कि हिसाब के दिन पर यक़ीन नहीं लाता (कंज़ुल ईमान सूरह मोमिन २७)

(۳) وَ لَقَدْ نَجَّیْنَا بَنِیْٓ اِسْرَآءِیْلَ مِنَ الْعَذَابِ الْمُهِیْنِ  مِنْ فِرْعَوْن ۔اِنَّهٗ كَانَ عَالِیًا مِّنَ الْمُسْرِفِیْنَ)

 और बेशक हमने बनी इसराइल को ज़िल्लत के अज़ाब से निजात बख्शी फिरौन से बेशक वह मुतकब्बिर हद से बढ़ने वालों में से था (कंज़ुल ईमान, सूरह दुख्ख़ान ३१)

(०४) ज़ाहिर  यह भी अल्लाह तआला के सिफाती नामों में से एक नाम है मगर गैरुल्लाह के लिए भी मुस्तअमल है, जैसे फुलां शैय ज़ाहिर है, फुलां शख्स ज़ाहिर में अच्छा है, मैं फुलां की गलतियों को ज़ाहिर कर के रहूंगा, वगैरा  क़ुरआन मजीद में कई मक़ामात पर लफ़्ज़ ज़ाहिर गैरुल्लाह के लिए आया है, मुलाहिज़ा हो 

(۱)’’ قَالَ اِنْ كُنْتَ جِئْتَ بِاٰیَةٍ فَاْتِ بِهَآ اِنْ كُنْتَ مِنَ الصّٰدِقِیْنَ(۱۰۶)فَاَلْقٰى عَصَاهُ فَاِذَا هِیَ ثُعْبَانٌ مُّبِیْنٌ)

      बोला अगर तुम कोई निशानी ले कर आए हो, तो  मूसा (अलैहिस्सलाम) ने अपना आसा डाल दिया वह फौरन एक ज़ाहिर अज़दहा हो गया (कंज़ुल ईमान, सूरह एअराफ १०७)

(۲) وَ اُزْلِفَتِ الْجَنَّةُ لِلْمُتَّقِیْنَ وَ بُرِّزَتِ الْجَحِیْمُ لِلْغٰوِیْنَ)

 और क़रीब लाई जाएगी जन्नत परहेज़गारों के लिए और ज़ाहिर की जाएगी दोज़ख गुमराहों के लिए (कंज़ुल ईमान सूरह शोअरा ९१)

(۳) فَارْتَقِبْ یَوْمَ تَاْتِی السَّمَآءُ بِدُخَانٍ مُّبِیْنٍ یَّغْشَى النَّاسَ۔هٰذَا عَذَابٌ اَلِیْمٌ)

 तो तुम उस दिन के मुंतज़ीर रहो जब आसमान एक ज़ाहिर धुवां लाएगा कि लोगों को ढांप लेगा यह है दर्दनाक अज़ाब (कंज़ुल ईमान सूरह दुख्ख़ान ११)

(०५) बातिन  यह भी अल्लाह तआला के सिफाती नामों में से एक नाम है मगर गैरुल्लाह के लिए भी मुस्तअमल है, जैसे फुलां शख्स ज़ाहिर में तो अच्छा है मगर उसका बातिन बहुत खराब है, वगैरा

(०६ / ०७) अहद । वाहिद  यह भी अल्लाह तआला के सिफाती नामों में से २ नाम हैं मगर गैरुल्लाह के लिए भी मुस्तअमल है जो किसी एक गिनती एक शैय को अहद या वाहिद कहा जाता है

(०८) मुसौव्विर  यह भी अल्लाह तआला के सिफाती नामों में से एक नाम है मगर गैरुल्लाह के लिए भी मुस्तअमल है, जैसे की तस्वीर बनाने वाले को उमूमन मुसौव्विर कहा जाता है

(०९) अज़ीज़  यह भी अल्लाह तआला के सिफाती नामों में से एक नाम है मगर गैरुल्लाह के लिए भी मुस्तअमल है, जैसे फुलां बंदा मेरा बहुत अज़ीज़ है यूं ही मिस्र के गवर्नर को अज़ीज़े मिस्र कहा जाता था जिसका तज़किरा तफसीर में मौजूद है

(१०) वली  यह भी अल्लाह तआला के सिफाती नामों में से एक नाम है मगर गैरुल्लाह के लिए भी मुस्तअमल है, जैसे फुलां बंदा वली है, फुलां मैय्यित का वली है, फुलां उस औरत का वली है

(११) हकीम  यह भी अल्लाह तआला के सिफाती नामों में से एक नाम है मगर गैरुल्लाह के लिए भी मुस्तअमल है, यानी तबीब को उर्फ में हकीम कहा जाता है जैसे लुक़मान हकीम वगैरा

(१२) मोमिन  यह भी अल्लाह तआला के सिफाती नामों में से एक नाम है मगर गैरुल्लाह के लिए भी मुस्तअमल है, जसे ज़ैद मोमिन है, फुलां पक्का मोमिन है, बल्कि एक बरादरी है जो मोमिन के नाम से मशहूर है महाराष्ट्र में ज्यादा तर पाए जाते हैं

(१३) शहीद  यह भी अल्लाह तआला के सिफाती नामों में से एक नाम है मगर गैरुल्लाह के लिए भी मुस्तअमल है, मसलन राहे खुदा में मरने वाले को शहीद कहा जाता है, जैसे शहीद-ए-आज़म वगैरा

         मुज़कूरा बाला नाम ज़ात ए बारी ए तआला के सिफाती नामों में से हैं मगर गैरुल्लाह के लिए भी मुस्तअमल हैं अवाम व ख्वास इस लफ्ज़ का इस्तेमाल करते हैं कोई मअयूब मही जानता ना ही इस से इस्मे बारी ए तआला की तोहीन समझी जाती है

         यूं ही लफ्ज़े हलीम भी है कि अगर्चे बारी ए तआला के नामों में से है मगर यह खिचड़े का भी नाम है, जैसा कि फिरोज़ुल लुगात में है, (एक क़िस्म का खाना जो अनाज गोश्त और मसाला डाल कर पकाया जाता है/खिचड़ा)  (फिरोज़ुल लुगात सफा ३०६)

        नीज़ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने क़ुरआन मजीद में सैय्यिदना इब्राहीम अलैहिस्सलाम को लफ्ज़े हलीम का खिताब दिया है मुलाहिज़ा हो 

(وَ مَا كَانَ اسْتِغْفَارُ اِبْرٰهِیْمَ لِاَبِیْهِ اِلَّا عَنْ مَّوْعِدَةٍ وَّعَدَهَآ اِیَّاهُ۔فَلَمَّا تَبَیَّنَ لَهٗٓ اَنَّهٗ عَدُوٌّ لِّلّٰهِ تَبَرَّاَ مِنْهُ ۔اِنَّ اِبْرٰهِیْمَ لَاَوَّاهٌ حَلِیْمٌ )

 और इब्राहिम का अपने बाप की बख्शीश चाहना वह तो ना था मगर एक वादे के सबब जो उस से कर चुका था फिर जब इब्राहीम को खुल गया कि वह अल्लाह का दुश्मन है उस से तिन्का तोड़ दिया बेशक इब्राहीम ज़रूर बहुत आहें करने वाला मुताहम्मिल  है (कंज़ुल ईमान, तौबा ११४)

     मज़कूरा बाला इबारतों से रोज़ रौशन की तरह वाज़ेह हो गया की खिचड़े को हलीम कह सकते हैं और जो लोग यह कहते हैं कि अल्लाह तआला का नाम है नहीं कहना चाहिए या अल्लाह तआला के नाम की तौहीन होती है वह गलत फहमी में मुब्तिला हैं उन्हें चाहिए कि पहले इल्म सीखे फिर मसअला बयान करें, बगैर इल्म के मसअला नहीं बयान किया किया जाता है हदीस शरीफ में है 

(’من افتی بغیر علم لعنتہ ملائکۃ السماء والارض)

 जो बगैर इल्म के फतवा दे उस पर आसमान व ज़मीन के फरिश्तों की लानत हो(फतावा रज़विया, बहवाला कंज़ुलउम्माल)

واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب

 अज़ क़लम 

 फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी उतरौलवी

५  जनवरी २०२२ बरोज़ सोमवार



 हिंदी ट्रांसलेट 

 मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)

५  जनवरी २०२२ बरोज़ सोमवार



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