मरहूम के नाम से अक़ीक़ा करना कैसा है?

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मरहूम के नाम से अक़ीक़ा करना कैसा है?


 सवाल: अगर किसी मरहूम की औलाद को यह मालूम ना हो कि उसके वालिद का अक़ीक़ा हुआ है या नहीं और वह अपने मरहूम वालिद साहब के नाम से अक़ीक़ा करना चाहे तो अब क्या हुक्म है ?
 साईल: मोहम्मद शकील अख्तर (कटिहार बिहार)

 जवाब: अक़ीक़ा शुक्र ए विलादत का नाम है, जो इज़हार ए मुसर्रत के लिए होता है और मरने के बाद यह मौका ना रहा तो फिर अक़ीक़ा करने का कोई सवाल ही नहीं

 अलबत्ता कुर्बानी हो सकती है

 जैसा कि हुज़ू सदरूश्शरिया बदरूत्तरिक़ा हज़रत अल्लामा मुफ्ती अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा अपनी मशहूर ए ज़माना किताब फतावा अमजदिया में तहरीर फरमाते हैं  मुर्दे का अक़ीक़ा नही हो सकता की अक़ीक़ा दमे शुक्र है, और शुक्राना जिंदा के लिए हो सकता है( फतावा ए अमजदिया जिल्द ३ सफा ३३६ बाबुल अक़ीक़ा दाइरतुल मआरीफुल अमजदिया, क़ादरी मंज़िल घोसी जिला मऊ यूपी)

والله و رسولہ اعلم بالصواب

 अज़ क़लम
 मोहम्मद इमरान रज़ा





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