सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसला में कि अगर कोई शख्स मुल्के अरब में काम करने गया हो और उसका मालिक बद अक़ीदा हो और उसको वह कुछ पैसे और कपड़े देता हो तो उसको ले सकते हैं या नहीं ?
साईल : मोहम्मद साक़िब रज़ा
जवाब : अगर देवबंदी वहाबी के यहां नौकरी करने पर इस बात का अंदेशा हो कि हमें उनके अकीदे के मुवाफिक़ रहना पड़ेगा या उनके साथ खाना पीना पड़ेगा या उनके जनाज़े में शिरकत करनी पड़ेगी या उनके साथ नमाज़ पढ़नी पड़ेगी या उनके दबाव में आकर शरीयत के खिलाफ बोलना पड़ेगा तो उनके यहां नौकरी जायज़ नहीं
क्योंकि हदीस शरीफ है,
قَا لَ رَسُولُ اللّٰہِ ﷺ اِیَّا کُمْ وَ اِیَّا ھُمْ لَا یُضِلُّو نَکُمْ وَلَا یُفْتِنُو نَکُمْ اِنْ مَرِ ضُوْ فَلَا تَعُوْ دُوْھُمْ وَاِنْ مَا تُوا فَلَا تَشْھَدُوْ ھُمْ وَاِنْ لَقِیْتُمُو ھُمْ فَلَا تُسَلِّمُوْا عَلَیْھِمْ وَلَا تُجَا لِسُو ھُمْ وَلَا تُشَا رِبُوا ھُمْ وَلَا تَوَا کِلُوا ھُمْ وَلَا تُنَا کِحُو ھُمْ وَلَا تُصَلُّوا عَلَیْھِمْ وَلَا تُصَلُّو مَعَھُمْ
नबी करीम ने फरमाया की अगर वह बीमार पड़ जाएं तो उनकी अयादत ना करो, अगर मर जाएं तो उनके जनाज़ा में शरीक ना हो, उनसे मुलाक़ात हो तो उन्हें सलाम ना करो, उनके पास ना बैठो, ना उनके साथ पानी पियो, ना उनके साथ खाना खाओ, ना उनके साथ शादी बियाह करो, ना उनके जनाज़े की नमाज़ पढ़ो, ना उनके साथ नमाज़ पढ़ो(यह हदीस मुस्लिम, अबू दाऊद, इब्ने माजा, अक़ीली और इब्ने हब्बान की रिवायत का मजमुआ है,बहवाला : अनवारूल हदीस)
और अगर इस बात पर यकीन हो कि मज़कूरा बाला बातें ना पाई जाएंगी सिर्फ काम से मतलब रहेगा तो नौकरी करना जायज़ होगा जैसा कि फतवा रज़विया शरीफ में सरकार ए आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से सवाल किया गया कि रंडीयों, डोमनियों के यहां मजदूरी करके काम करना जायज़ है या नहीं ? अगर नहीं जायज़ तो नसारा की नौकरी क्यों जायज़ है ?
तो आपने जवाब में इरशाद फरमाया अस्ल मजदूरी अगर किसी फेल नाजायज़ पर हो सब के यहां नाजायज़, और जायज़ पर हो तो सबके यहां जायज़(फतावा रज़विया जिल्द २३ सफा ५०८, दावते इस्लामी)
और उनका माल बगैर मक्र व फरेब के हासिल हो तो लेना जायज़ है जबकि कोई और वजह ना हो
जैसा कि मुजद्दीदे आज़म इमाम अहमद रज़ा खान फाज़िले बरेलवी अलैहिर्रहमा तहरीर फरमाते हैं
काफिर अगर होली या दिवाली के दिन मिठाई दें तो ना ले हां अगर दूसरे रोज़ दे तो ले लें मगर यह ना समझें कि उनके खुब्सा के तिवहार की मिठाई है बल्कि माले मोज़ी नसीबे गाज़ी जाने(मलफूज़ात ए आला हज़रत हिस्सा १ सफा १६३)
والله و رسولہ اعلم بالصواب
अज़ कलम
ताज मोहम्मद क़ादरी वाहिदी उतरौला
हिन्दी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी