सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में कि अप्रैल फूल मनाना कैसा है ?
साईल : मोहम्मद रिज़वान (गोंडा)
जवाब : अप्रैल फूल मनाना नाजायज़ व हराम है, मगरिब की अंधी तक़लीद के शौक़ में हमारे मुआशरे में जिन रस्मों को रिवाज दिया गया उनमें से एक अप्रैल फूल भी है, इसमें झूठ बोलकर किसी को धोखा देना और धोखा देकर किसी को बेवकूफ बनाना ना सिर्फ जायज़ समझा जाता है बल्कि उसे एक दर्जा ए कमाल क़रार दिया जाता है और काबिले तारीफ और एक अप्रैल से फायदा उठाने वाला समझा जाता है, ना जाने कितने अफराद को बिला वजह जानी व माली नुक़सान पहुंच चुका है, बल्कि उसके नतीजे में बाज़ औक़ात लोगों की जानें चली गई हैं कि उन्हें किसी ऐसे सदमे की झूठी खबर सुना दी गई जिसे सुनने की वह ताब ना ला सके और जिंदगी से हाथ धो बैठे, इस रस्म के सिलसिला में मुअर्रखीन का कहना है कि यहूदियों और ईसाइयों की बयान कर्दा रिवायाते काज़िबा के मुताबिक़ एक अप्रैल वह तारीख है जिसमें रोमियों और यहूदियों की तरफ से हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को तमस्सखुर व इस्तहज़ा का निशाना बनाया गया था,
मौजूदा नाम निहाद इनजीलों में इस वाक़िया की तफसीलात ब्यान की गई है, इसके अलावा और भी बातें इस तरह की किताबों में लिखी हैं जिसकी बिना पर इस तारीख को लोगों को धोखा देने व झूठ व तकलीफ देने का रिवाज आम हो गया है,
इस्लामी नुक़्ता ए नज़र से यह रस्म झूठ बोलना, धोखा देना, दूसरे को अज़ीयत पहुंचाना, दुश्मनाने इस्लाम की पैरवी जैसे बदतरीन गुनाहों का मजमूआ है इसलिए शरअन यह नाजायज़ व हराम है
कुरान व हदीस की रौशनी में अप्रैल फूल मनाने के नुक़सनात ज़ेल में दर्ज किए जाते हैं मुलाहिज़ा करें
(१) > इस दिन सरीह झूठ बोलने को लोग जायज़ समझते हैं, झूठ को अगर गुनाह समझकर बोला जाए तो गुनाहे कबीरा है और अगर उसको हलाल और जायज़ समझ कर बोला जाए तो अंदेशा ए कुफ्र है, झूठ की बुराई और मज़म्मत के लिए यही काफी है कि कुरान करीम ने लअनतुल्लाही अलल काज़िबीन (لَعْنَتُ اللہِ عَلَی الْکَاذِبِیْنْ) फरमाया है
गोया जो लोग अप्रैल फूल मनाते हैं वह कुरान में मलऊन ठहराए गए हैं, और उन पर खुदा ए तआला की लानत है,
(२) > इसमें दूसरे को धोखा देना है यह भी गुनाहे कबीरा है हदीस में हैمن غش فلیس منا जो शख्स हमें (यानी मुसलमानों को) धोखा दे वह हम में से नहीं(मिशकात सफा, ५०३)
(३) > इसमें मुसलमानों को ऐज़ा पहुंचाना है यह भी गुनाहे कबीरा है कुरान करीम में है
اِنَّ الَّذِیْنَ فَتَنُوْا الْمُؤْ مِنِیْنَ وَ الْمُؤْ مِنٰتِ ثُمَّ لَمْ یَتُوْ بُوْافَلَھُمْ عَذَابُ جَہَنَّمَ وَلَھُمْ عَذَابُ الْحَرِیْقِ
बेशक जिन्होंने ऐज़ा दी मुसलमान मर्दों और मुसलमान औरतों को फिर तौबा ना की, उनके लिए जहन्नम का अज़ाब है और उनके लिए आग का अज़ाब,(कंज़ुल ईमान सूरह बुरुज आयत १०)
(४) > अप्रैल फूल मनाना गुमराह और बे दीन क़ौमों की मुशाबिहत है और हुजूर का इरशाद है
من تشبہ بقوم فھو منھم
जिस शख्स ने किसी क़ौम की मुशाबिहत की वह उन्हीं में से होगा
पस जो लोग फैशन के तौर पर अप्रैल फूल मनाते हैं उनके बारे में अंदेशा है कि वह कयामत के दिन यहूद व नसारा के सफ में उठाए जाएँ जब इतने बड़े गुनाहों का मजमूआ है तो जिस शख्स को अल्लाह तआला ने मामूली अक़्ल भी दी हो वह अंग्रेजों की अंधी तक़लीद में उसका इरतिकाब नहीं कर सकता, इसलिए तमाम मुसलमान भाइयों को ना सिर्फ उस से तौबा करनी चाहिए बल्कि मुसलमानों के मुक़्तदा की अहम जिम्मादारी है कि "अप्रैल फूल" पर कानूनी पाबंदी का मुतालबा करें
والله و رسولہ اعلم بالصواب
अज़ कलम
ताज मोहम्मद क़ादरी वाहिदी उतरौला
हिन्दी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी