मुहर्रम का खिचड़ा (हलीम) बनाना कैसा है
सवाल बाद सलाम अर्ज़ है कि हलीम यानी (खिचड़ा) बनाना कैसा है ? क्या यह कहीं से साबित है ? अगर है तो जवाब इनायत फरमाएं और इसका आगाज़ कब से हुआ हवाला के साथ
साईल मोहम्मद अबू बकर
जवाब 10 वीं मुहर्रम को यानी आशूरा के दिन खिचड़ा पकाना फर्ज़ या वाजिब नहीं
लेकिन इस के हराम व नाजायज़ होने की भी कोई दलीले शरई नहीं है
बल्कि एक रिवायत है की खास आशूरा के दिन खिचड़ा पकाना हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की सुन्नत है।
चुनांचे मनक़ूल है कि जब तूफान ए नूह से निजात पाकर हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती जूदी पहाड़ पर ठहरी तो आशूरा का दिन था। आपने कश्ती में से तमाम अनाजों को बाहर निकाला तो फूल, बड़ी मटर, गेहूं, जौ, मसूर, चना, चावल, प्याज़, सात क़िस्म के गल्ले मौजूद थे आप ने उन सातों अनाजों को एक ही हांडी में मिला कर पकाया।
चुनांचा शहाबुद्दीन क़लयूबी ने फरमाया कि मिस्र में जो खाना आशूरा के दिन (طبیخ الحبوب) (खिचड़ा) के नाम से पकाया जाता है उस के अस्ल दलील यही हज़रत नूह अलैहिस्सलाम का अमल है।(क़लयूबी)
والله تعالی اعلم بالصواب
अज़ क़लम मोहम्मद अल्ताफ हुसैन क़ादरी
हिन्दी ट्रान्सलेट
मौलाना रिजवानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी